भारत, 12 अन्य देशों के साथ, सोमवार को हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचे (आईपीईएफ) में शामिल हो गया, जो अमेरिका के नेतृत्व में इस क्षेत्र में एक व्यापारिक समूह स्थापित करना चाहता है। यह पहला बहुपक्षीय करार है जिसमें शामिल होने के लिए भारत ने सहमति जताई है। इससे पहले भारत ने 2019 में अंतिम समय में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसेप) से निकलने का फैसला कर लिया था। सवाल यह है कि आईपीईएफ क्या है और इसमें भारत के लिए क्या संभावनाएं हैं?
अमेरिका हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचे (आईपीईएफ) के लिए क्यों जोर दे रहा है?
बराक ओबामा ने 2009 में ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) के माध्यम से एशिया-प्रशांत में एक व्यापार समझौते की कल्पना की जो इस क्षेत्र की ओर ध्यान केंद्रित करने के मकसद के साथ-साथ चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने की एक कवायद थी। हालांकि, 2017 में ट्रंप प्रशासन ने व्यापार समझौते से बाहर निकलने का फैसला कर लिया क्योंकि उसका मानना था कि यह अमेरिका के श्रमिकों के हित में नहीं है। हालांकि बाइडन प्रशासन ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के व्यापक और प्रगतिशील समझौते (सीपीटीपीपी) से नहीं जुड़ा क्योंकि शुल्क में कटौती के माध्यम से बाजार पहुंच से जुड़ा घरेलू दबाव दिया गया था और उसका मानना है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शुल्क में कटौती न हो लेकिन एक कारोबारी ब्लॉक क्वॉड का ही एक तार्किक विस्तार है जिसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान भी शामिल हैं। कई मायनों में आईपीईएफ बाइडन का टीपीपी ही है।
आईपीईएफ के जरिये क्या किया जाना है?
आईपीईएफ ने चार स्तंभ का प्रस्ताव रखा है जिसमें व्यापार: आपूर्ति शृंखला, स्वच्छ ऊर्जा, अकार्बनीकरण और बुनियादी ढांचा, कर एवं भ्रष्टाचार शामिल है। व्यापार स्तंभ के तहत, आईपीईएफ ‘उच्च मानक, समावेशी, मुक्त एवं निष्पक्ष व्यापार प्रतिबद्धताओं’ पर काम करना चाहता है। एक संयुक्त बयान में प्रस्तावित व्यापार समझौते के तहत शुल्क वार्ता को खारिज किए बिना कहा गया, ‘हमारे प्रयासों में डिजिटल अर्थव्यवस्था में सहयोग शामिल है लेकिन यह बस इतने तक ही सीमित नहीं है।’
आपूर्ति शृंखला के माध्यम से सदस्य देशों के लिए प्रमुख कच्चे और संसाधित सामग्रियों, अर्धचालकों, महत्त्वपूर्ण खनिजों और स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी तक पहुंच सुनिश्चित की जाएगी।’ स्वच्छ ऊर्जा, अकार्बनीकरण और बुनियादी ढांचे’ में रियायती वित्त सहित वित्त जुटाना तथा टिकाऊ बुनियादी ढांचे के विकास का समर्थन करके कनेक्टिविटी बढ़ाना शामिल है। कर और भ्रष्टाचार विरोधी स्तंभ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कर चोरी और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मौजूदा बहुपक्षीय दायित्वों के अनुरूप कर, धन शोधन तथा रिश्वत पर नियंत्रण करने की व्यवस्था को लागू करके निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना चाहता है। सदस्य देशों की तुरंत व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू करने की योजना नहीं है। उन्होंने केवल महत्त्वाकांक्षी सूची के साथ ‘भविष्य की वार्ताओं के लिए सामूहिक चर्चा’ शुरू करने का वादा किया है।
अमेरिका आईपीईएफ के माध्यम से क्या हासिल करना चाहता है?
व्हाइट हाउस द्वारा जारी एक तथ्य पत्र के जरिये आईपीईएफ के बारे में अधिक जानकारी मिली है। इसमें कहा गया, ‘हम डिजिटल अर्थव्यवस्था में उच्च-मानक नियमों पर जोर देंगे जिसमें सीमा पार डेटा प्रवाह और डेटा स्थानीयकरण का मानक शामिल है। हम मजबूत श्रम, पर्यावरण मानकों और कॉरपोरेट जवाबदेही प्रावधानों की भी तलाश करेंगे जिससे व्यापार के माध्यम से श्रमिकों को शीर्ष स्तर पर जाने के लिए बढ़ावा दिया जा सके।’
आईपीईएफ से कौन जुड़ रहे हैं?
प्रस्तावित आर्थिक ब्लॉक में अब तक 13 सदस्य हैं और अधिक देशों के शामिल होने की उम्मीद है। चार क्वाड सदस्यों के अलावा, आईपीईएफ में ब्रुनेई, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं।
आईपीईएफ पर भारत का क्या रुख है?
भारत ने औपचारिक तौर पर आईपीईएफ का स्वागत किया है। आईपीईएफ की शुरुआत के दौरान मोदी ने कहा कि भारत एक ‘समावेशी और लचीला’ ईपीईएफ बनाने के लिए अन्य सदस्यों के साथ काम करेगा। उन्होंने कहा, ‘हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचा इस क्षेत्र को वैश्विक आर्थिक विकास का इंजन बनाने के लिए हमारी सामूहिक इच्छा शक्ति का परिणाम है। मेरा मानना है कि लचीली आपूर्ति शृंखलाओं के तीन मुख्य स्तंभ होने चाहिए। विश्वास, पारदर्शिता और समयबद्धता। मुझे विश्वास है कि यह ढांचा इन तीन स्तंभों को मजबूत करने में मदद करेगा, और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विकास, शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा।’ मोदी ने प्रस्तावित व्यापार समझौते के अन्य तीन स्तंभों का उल्लेख किए बिना यह बात कही।