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डीएलपी : बदलकर रख देगा सिनेमा का मजा

Last Updated- December 05, 2022 | 5:31 PM IST

अब न तो पर्दा उठता है और न ही कोई रोल को हाथ से घुमाकर फिल्म रोल को गति दी जाती है। 21वीं सदी में सब कुड डिजिटल होने की कगार पर है।


डॉल्बी डिजिटल आवाज, डिजिटल फोटो और तो और डिजिटल लाइट प्रोसेसिंग (डीएलपी) भी। सैकड़ों थिएटर स्क्रीनों के साथ वर्ष 2009 फिल्मों की स्क्रीनिंग के लिहाज से काफी अहम रहने वाला है। टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स (टीआई) प्रमुख सेमीकंडक्टर तकनीक कंपनी भारतीय सिनेमा बाजार पर अपनी नई डिजिटल लाइट प्रोसेसिंग तकनीक के साथ आंखें गढ़ाए बैठी है।


टीआई ने अपनी डीएलपी तकनीक को पेटेंट भी करवा लिया है। डीएलपी प्रोजेक्टरों में, कोई भी तस्वीर छोटे-छोटे शीशों पर एक सेमीकंडक्टर चिप में जाल के रूप में एक खाका तैयार कर लेती है। इस प्रत्येक चिप में लगभग 20 लाख के करीब शीशे होते हैं। एक तीन चिप वाला प्रोजेक्टर 350 खरब रंग पैदा कर सकता है, जो हमारी आंखों की पहचान में आने वाले रंगों से कई सौ गुणा अधिक रंग हैं।


टीआई तेजी से भारतीय बाजार की ओर रुख कर रही है। भारतीय डिजिटल सिनेमा समूह, स्क्रैबल एंटरटेनमेंट ने क्रिस्टी, डिजिटल सिनेमा सॉल्यूशन मुहैया करवाने वाली कंपनी, के साथ 200 डीएलपी प्रोजेक्टरों के लिए करार कर लिया है। स्क्रैबल, कन्टेंट मालिकों (स्टूडियो) और स्वतंत्र वितरकों और एग्जिबिटरों के बीच कड़ी का काम करेगी। वर्चुअल प्रिंट फ्री (वीपीएफ) कारोबारी प्रारुप के तहत, स्क्रैबल एग्जिबिटरों के डिजिटल परिवर्तन को वित्तीय सुविधाएं भी मुहैया कराएगी।


इसमें कंपनी फिल्म वितरकों से वीपीएफ पर मोल-भव कर, उन्हें एग्जिबिटरों को मुहैया कराएगी। टीआई के डीएलपी उत्पादों के कारोबारी विकास प्रबंधक गणेश एस. का कहना है, ‘हमें उम्मीद है कि अगले 12 महीनों में हमें लगभग 250 इंस्टॉलेशन मिल जाएंगे। एडलैब्स ने 20 प्रोजेक्टर वाली पायलट परियोजना की घोषणा कर दी है। चेन्नई के सत्यम सिनेमा के पास पहले ही 6 इंस्टॉलेशन है और हम अन्य कई पोस्ट-प्रोडक्शन कंपनियों से इस सिलसिले में बात चल रही है।’


स्क्रैबल ने बतौर पहले एग्जिबिटर, पीवीआर सिनेमा के साथ अपनी तकनीक के लिए करार किया है। पीवीआर इस तकनीक का इस्तेमाल अपने सभी नए बनाए जाने वाले मल्टीप्लेक्सेस में करेगी। टीआई ने तीन निर्माता कंपनियों बाक्रो, क्रिस्टी और एनईसी को लाइसेंस दिया है।


अभी भी यह तकनीक कई फिल्म एग्जिबिटरों द्वारा कुछ फिल्मों के लिए इस्तेमाल की जा रही है। उदाहरण के लिए शृंगार सिनेमा ने इस तकनीक का परीक्षण पिछले साल फिल्म सलाम-ए-इश्क के लिए किया था।शृंगार सिनेमा के मार्केटिंग प्रमुख अभिषेक रैना का कहना है, ‘हमने इस तकनीक का इस्तेमाल दर्शकों के लिए बढ़िया दृश्य अनुभव के लिए किया था। ‘

First Published - April 2, 2008 | 12:54 AM IST

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