गुजरात में हुए 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार बनाने के सपने के करीब पहुंच गई थी और 1995 में सत्ता में आने के बाद से पहली बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की विधानसभा सीटों की संख्या दो अंकों में पहुंची थी। गुजराज में कांग्रेस को 77 सीटों पर जीत हासिल हुई।
इस समय भाजपा के 103 विधायक हैं और कांग्रेस के 65 विधायक। कांग्रेस के 12 विधायक टूटकर भाजपा में चले गए। पार्टी अपने विधायकों को बचाने के संघर्ष कर रही है और उसके पास सिर्फ आरोप हैं। पार्टी ने अपने 20 विधायकों को राजस्थान के एक रिसॉर्ट में भेज दिया है, जिससे 19 जून को प्रस्तावित राज्यसभा चुनाव के पहले पार्टी में और टूट न हो। गुजरात विधानसभा राज्यसभा के 4 सांसद चुनेगी।
कांग्रेस की समस्या 2017 मेंं ही शुरू हो गई, जब पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल दोबारा राज्य से राज्यसभा के लिए खड़े हुए। उस समय भाजपा अध्यक्ष अमित शाह केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी के लिए लड़ रहे थे। उस समय कांग्रेस के 6 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था और अन्य 9 ने अहमद पटेल को वोट नहीं दिया। इस बार भी यही हाल है। कांग्रेस व भाजपा के पास 2-2 राज्यसभा सदस्य चुनने के लिए पर्याप्त विधायक थे। एक प्रत्याशी को जीतने के लिए 37 तरजीही मतों की जरूरत है और निर्दल विधायक जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस का साथ देने को कहा है। कांग्रेस के 8 विधायकों के इस्तीफा देने के बाद तरजीही मतों की संख्या 34 रह गई है। कांग्रेस के अब 65 विधायक हैं और जिग्नेश का मत उसे मिलेगा। हालांकि राकांपा के एक विधायक कांधल जडेजा ने अब तक कोई फैसला नहीं किया है।
भाजपा अगर जडेजा का मत पा जाती है तो उसे 3 सीटें मिल सकती हैं और पार्टी ने कांग्रेस नेता नरहरि अमीन को तीसरे प्रत्याशी के रूप में उतारा है, जिसके दो पहले प्रत्याशी अभय भारद्वाज और रमिला बारा हैं। संकेत साफ है कि अमीन अपने संबंधों के इस्तेमाल से सीट जीत सकते हैं। कांग्रेस ने शक्ति सिंह गोहिल और भरत सिंह सोलंकी को उतारा है। कांग्रेस को विश्वास नहीं है कि वह दोनों सीटें जीत सकती है, अगर वह हारती है तो बड़ी शर्मिंदगी होगी।