अप्रैल में स्वास्थ्य खर्च में अचानक से उछाल आने के बाद मई में सालाना आधार पर इसमें भारी गिरावट आने की घटना ने विशेषज्ञों को चकित कर दिया है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के खर्च में मई में पिछले साल के मुकाबले करीब 50 फीसदी की गिरावट आई है। महालेखा नियंत्रक के आंकड़ों से पता चलता है कि मंत्रालय ने पिछले वर्ष जहां मई महीने में 7,816 करोड़ रुपये खर्च किए थे वहीं इस वर्ष उसने मई में 3,948 करोड़ रुपये ही खर्च किए।
दूसरी ओर अप्रैल महीने में खर्च पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले करीब 200 फीसदी बढ़कर 12,930 करोड़ रुपये रहा। यह 2019-20 की समान अवधि में 4,327 करोड़ रुपये रहा था।
यदि महीने के हिसाब से तुलना करें तो अप्रैल के मुकाबले मई के खर्च में लगभग 70 फीसदी की कमी आई है।
मंत्रालय के भीतर परिव्यय का मुख्य हिस्सा स्वास्थ्य विभाग और परिवार कल्याण विभाग को आवंटित किया जाता है। इस वर्ष मई में यह खर्च पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले करीब 50 फीसदी घटकर 3,925 करोड़ रुपये रहा। 2019-20 के मई महीने में यह 7,785 करोड़ रहा था। अप्रैल में 11,928 करोड़ रुपये के साथ सालाना आधार पर इसमें 200 फीसदी की उछाल आई थी।
इन फंडों के एक छोटे हिस्से का आवंटन स्वास्थ्य संबंधी शोध के लिए किया जाता है। मई महीने में इस मद में खर्च एक वर्ष पहले के 30.53 करोड़ रुपये के मुकाबले 24 फीसदी घटकर 23.08 करोड़ रुपये रहा। इस साल अप्रैल में इसमें सालाना आधार 179 फीसदी की वृद्धि हुई थी और यह 1001.48 करोड़ रुपये रहा था। महीने दर महीने के आधार पर खर्च में 97.69 फीसदी की कमी आई।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को आवंटित परिव्यय भी इसी मद में आता है। आईसीएमआर ने 15 अगस्त तक कोविड-19 का टीका लाने की बात कही है। सरकार के एक पूर्व अधिकारी ने पहचान जाहिर नहीं करने की इच्छा जताते हुए कहा कि मई महीने में खर्च में आई यह कमी अप्रैल में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगने से सभी कार्यालयों के बंद रहने के कारण से हो सकती है। ऐसा होने की संभावना इसलिए है कि कार्यालयों के बंद रहने से फाइलों पर कार्रवाई नहीं हुई होगी, जिससे पैसा खर्च नहीं हुआ। मूलरूप से उनके कहने का मतलब यह है कि हो सकता है कि मई महीने के खर्च की मंजूरी अप्रैल में नहीं दी जा सकी होगी।
उन्होंने कहा, ‘इसको लेकर दूसरा स्पष्टीकरण यह हो सकता है कि धन की कमी है। सरकार ने महसूस किया होगा कि श्रमिकों के संकट और आर्थिक परिस्थिति को देखते हुए लोगों के हाथ में पैसा देना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।’ उदाहरण के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने बजट में आवंटित रकम का करीब आधा हिस्सा मई तक खर्च कर दिया है। विशेषज्ञों की राय में ऐसे समय पर जब कोरोनावायरस से मुकाबले के लिए प्रयास किए जा रहे हैं तब स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए खर्च के रुझान में तेजी से वापसी की उम्मीद नहीं है।
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, ‘यह अस्पष्ट है कि क्या विभिन्न स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मांग में लॉकडाउन से असर पड़ा था, जिसने मई, 2020 में केंद्र से विभिन्न योजनाओं के लिए जारी होने वाले फंडों को प्रभावित किया था।’
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण में आयुष मंत्रालय के पास अपने समकक्षों के मुकाबले अधिक पैसा नहीं है। इसमें इस साल मई में खर्च महज 7.28 करोड़ रुपये रहा था जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह खर्च 200.6 करोड़ रुपये रहा था। अप्रैल में इसमें सालाना आधार पर 500 फीसदी से अधिक का इजाफा हुआ था और यह 270.95 करोड़ रुपये पर पहुंच गया था।