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मंदिर निर्माण के बाद हिंदुत्व की राजनीति

Last Updated- December 15, 2022 | 4:01 AM IST

देश की शीर्ष अदालत से अयोध्या के विवादित स्थल पर फैसला सुनाए जाने के बाद अब 5 अगस्त को वहां भव्य राममंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन कर मंदिर की नींव रखी जाने वाली है जिसके लिए जोर-शोर से तैयारी की जा रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रदेश कार्यकारिणी के एक सदस्य कहते हैं, ‘भाजपा के लिए अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का सपना सच हो गया है। लेकिन अब जब हम मंदिर का निर्माण कर ही रहे हैं तो चुनाव में इसका क्या फायदा मिलेगा? शून्य।’
उन्होंने कहा, ‘जब उच्चतम न्यायालय के फैसले ने मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया तो क्या आपने कोई प्रतिक्रिया देखी? लोगों के लामबंद होने और इसे एक मुद्दा बनाने, सभी भारतीयों के बीच हिंदुओं को इस मुद्दे के लिए ज्यादा सजग होने की प्रक्रिया इस आंदोलन के सफर में जारी रही। लेकिन अब हम गंतव्य तक पहुंच गए है और इस पड़ाव पर केवल इस बात की संतुष्टि है कि हमने जो करने का तय किया था उसे हमने हासिल कर लिया है।
5 अगस्त के भूमिपूजन समारोह का समय अब नजदीक है ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और इससे संबद्ध भाजपा सहित अन्य संगठनों के भीतर इस बात को लेकर गहन चर्चा जारी है कि आखिर यह युगांतकारी घटना किस बात का प्रतिनिधित्व करती है। देश की आजादी के बाद सबसे बड़ा आंदोलन राममंदिर निर्माण को लेकर किया गया जिसमें हिंदुओं के बीच जाति और अन्य विभाजन क्रम टूटते नजर आए और इसकी परिणति राम शिला पूजन, रथ यात्रा और अंत में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के रूप में हुई। इस आंदोलन में हिंदुओं की लामबंदी की वजह से राममंदिर के निर्माण के संघर्ष में सफलता मिल चुकी है तो ऐसे में इस लामबंदी के लाभ को किस तरह संरक्षित करते हुए उसे पुख्ता तौर पर आगे भी बढ़ाया जाना चाहिए?
संघ और नरेंद्र मोदी की जीवनी पर प्रकाशित पुस्तक के लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय कहते हैं, ‘बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा था कि यह उनके जीवन का सबसे दुखद दिन था और उन्होंने उस दिन खुद को जितना दुखी और निराश महसूस किया उतना उन्होंने कभी महसूस नहीं किया था। वह यह आसानी से देख सकते थे कि उस दिन ही यह मुद्दा खत्म हो गया था। इसके बाद आडवाणी कुछ ऐसी बात करने लगे जो हमने पहले कभी नहीं सुनी थी। उन्होंने इस आंदोलन को लेकर सहानुभूति रखने वालों और कार्यकर्ताओं को इस बात से अवगत कराया कि राम जन्मभूमि आंदोलन केवल राम मंदिर को एक रियल एस्टेट के तौर पर स्थापित करने के लिए नहीं था। यह आंदोलन सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के लिए था। ऐसी बातें हमलोगों ने पहले कभी नहीं सुनी थी।’
5 अगस्त के इस कार्यक्रम का देश में सीधा प्रसारण किया जाएगा और इस आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी उत्साहपूर्ण भागीदारी के लिए हामी भर चुके हैं। जिन लोगों ने भाजपा को एक राजनीतिक पार्टी के तौर पर स्थापित होते हुए और देश की राजनीति में एक खास जगह बनाते हुए उसके लंबे सफर को देखा है वे भी 5 अगस्त के इस कार्यक्रम का तात्कालिक राजनीतिक लाभ कम मिलने की बात पर सहमति जताते हैं। उदाहरण के लिए इस बात की संभावना बिल्कुल नहीं है कि साल के अंत में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव या इसके बाद पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में होने वाले चुनाव में राम मंदिर केंद्रीय मुद्दा बन पाएगा।
लेकिन दूसरे स्तर पर मंदिर निर्माण को एक अवसर और खतरा दोनों के रूप में देखा जाता है। संघ के सूत्रों ने कहा कि जब आडवाणी ने पहली बार अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे को उठाया था तब से लेकर हाल तक भाजपा के खिलाफ आरोप लगते रहे कि पार्टी केवल मंदिर निर्माण की बात करती है और वास्तव में वह इसका निर्माण नहीं कराना चाहती है क्योंकि यह चुनावी राजनीति के लिए इस मुद्दे को बनाए रखना चाहती है। अब इस तरह के आरोप निराधार हो गए हैं और भाजपा ने इस बात को पुख्ता तौर पर स्थापित किया है कि पार्टी जो वादा करती है उसे पूरा भी करके दिखाती है। इससे निश्चित तौर पर पार्टी की विश्वसनीयता बनती है जो एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक पूंजी है।
लेकिन इसका एक दूसरा पहलू यह है कि भाजपा की लोकप्रियता खासतौर पर उत्तर भारत में शीर्ष स्तर पर है। ऐसे में राम मंदिर निर्माण की शुरुआत से दक्षिण भारत या पूर्व में पार्टी की स्वीकार्यता दर थोड़ी सी और बढ़ जाएगी लेकिन चुनावी फायदे के तौर पर इससे कुछ ठोस निकलता हुआ नहीं दिखता है। संघ के सूत्रों का कहना है कि अगर अदालती फैसला इतने स्पष्ट रूप से हिंदुओं के पक्ष में नहीं आया होता और मोदी मंदिर के लिए एक आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए हस्तक्षेप करते तब यह संभव था कि उनकी लोकप्रियता में और बढ़ोतरी होगी लेकिन मौजूदा स्थिति यही है कि वह बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं।
संघ के सूत्रों का मानना है कि इन बातों से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण आंतरिक तनाव है जिस पर ध्यान दिया जाना जरूरी है और यह भाजपा के भीतर ही है। संघ के एक सूत्र ने बताया, ‘भाजपा का हिंदुत्व वोट अब तक ठोस स्वरूप नहीं ले पाया है और पार्टी के समर्थन आधार में व्यक्ति की लोकप्रियता का आधार सबसे अहम रहा है। मतदाताओं के बीच पार्टी की अपील हिंदुत्व केंद्रित होने के बजाय व्यक्ति केंद्र्रित है इसीलिए पार्टी नरेंद्र मोदी या पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोकप्रिय नेताओं के नेतृत्व में ज्यादा जनाधार हासिल कर पाई। इन हालात में पार्टी के पास नया वोट बैंक तलाशने के लिए संघर्ष जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इसी दुविधा की वजह से दूसरे दलों के लोगों को भाजपा में शामिल कराने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है ताकि पार्टी को नया चेहरा मिले। निश्चित तौर पर पार्टी पर अपनी वोट हिस्सेदारी बढ़ाने का दबाव है। लेकिन हिंदुत्व का यह रास्ता नहीं है।’
ऐसे में पार्टी के पास राष्ट्रवाद की ओर रुख करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। लेकिन भाजपा के ही कुछ लोगों का मानना है कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद हिंदुत्व के संदर्भ में चल सकता है और यह सांगठनिक संदर्भ में भी कारगर हो सकता है लेकिन राजनीतिक लामबंदी के रूप में इसका दिखना मुश्किल है।
संघ के भीतर यह भावना बन रही है कि भाजपा पर संघ का प्रभाव कम हो रहा है। इसके विपरीत पार्टी में दूसरे समूह के लोगों और उनकी विचारधाराओं का प्रभाव बढ़ रहा है। जबकि संघ और भाजपा में एक बुनियादी फर्क यह है कि संघ अपने हिसाब से पहले समाज को बदलकर सत्ता की राजनीति में बदलाव लाना चाहता है जबकि भाजपा सत्ता की राजनीति का इस्तेमाल करते हुए समाज में बदलाव चाहती है। निश्चित तौर पर इससे एक अपरिहार्य तनाव की स्थिति बनती है। नब्बे के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ी प्रमुख हस्तियों में से एक रहे और पार्टी के पूर्व विचारक गोविंदाचार्य कहते हैं, ‘भाजपा अब वह भाजपा नहीं रही बल्कि यह 1980 के दशक की कांग्रेस का ही एक संस्करण बन गई है।’
लेकिन पार्टी के इन अस्तित्वपरक सवालों से इतर भाजपा और संघ दोनों के भीतर इस बात को लेकर लगभग सर्वसम्मति है कि राम मंदिर निर्माण का फायदा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मिलने जा रहा है जिन पर ठाकुरवाद को बढ़ावा देने का आरोप है जिससे राज्य के ब्राह्मणों में नाराजगी बढऩे की बात कही जाती है। गोविंदाचार्य कहते हैं, ‘मुझे नहीं पता कि योगी आदित्यनाथ व्यक्तिगत रूप से ब्राह्मण विरोधी हैं या नहीं लेकिन ब्राह्मणों को निश्चित रूप से लगता है कि वह ब्राह्मण विरोधी हैं। हालांकि मंदिर निर्माण परियोजना से संभवत: यह टकराव कम होता दिख सकता है।’
जी बी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में प्रोफेसर बदरी नारायण भी इस बात पर सहमति जताते हैं। उनका कहना है, ‘आदित्यनाथ ही मंदिर निर्माण की निगरानी करेंगे। अगले दो सालों तक वहां उत्साह बना रहेगा ऐसे में संभावित तौर पर सवर्ण लोगों की लामबंदी बनी रहेगी और इसका लाभ आदित्यनाथ को मिलेगा।’
अब भाजपा के पास मंदिर है, ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि अब वह इसकी बदौलत आगे क्या करने जा रही है?

First Published - August 2, 2020 | 10:47 PM IST

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