आमतौर से पोस्टर, बैनर और कटआउट संस्कृति से दूर रहने वाली मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) भी अब तड़क-भड़क की राह पर चल निकली है।
कटआउट या पोस्टर से आम तौर पर परहेज करने वाली यह पार्टी भी ‘कटआउट किंग’ रजनीकांत के शहर कोयंबटूर में आकर उन्हीं के रंग में रंगर् गई है। तमिलनाडु के इस औद्योगिक शहर में चल रहे पार्टी के 19 वें सम्मेलन में नजारा कुछ बदला-बदला सा नजर आ रहा है। पूरे शहर को पार्टी के महासचिव प्रकाश करात, वृंदा करात और सीताराम येचुरी के बैनर-पोस्टर और कटआउटों से पाट दिया गया है।
पहले इस तरह के बड़े आयोजन के अवसरों पर पार्टी की ओर से कार्ल मार्क्स, वी. आई. लेनिन और एफ. एंग्लस के ही पोस्टर-बैनर लगाए जाते थे। हालांकि वर्ष 2005 में दिल्ली में आयोजित पार्टी कांग्रेस से ही इसमें बदलाव नजर आने लगा था, लेकिन उस समय पार्टी के दो वरिष्ठ नेता ज्योति बसु और हरकिशन सिंह सुरजीत को ही बैनर-पोस्टर में स्थान मिल पाया है।
ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि ये दोनों नेता 1964 से (जब से सीपीआई-एम का गठन हुआ) ही पोलित ब्यूरो के सदस्य रहे हैं। पार्टी की ओर से इन्हें ‘लिविंग लीजेंड’ का नाम दिया गया था और पूरी दिल्ली को इनके पोस्टरों से पाट दिया गया था।
लेकिन कोयंबटूर में नजारा कुछ और ही बयां कर रहा है। हावईअड्डे के बाहर वृंदा करात और कैप्टन लक्ष्मी सहगल के पोस्टर-कटआउट सम्मेलन में आने वाले पार्टी नेताओं का स्वागत करते नजर आए। साथ ही प्रतिनिधियों के स्वागत में जगह-जगह पर तमिल भाषा में लिखे पोस्टर-बैनर भी लगाए गए हैं।
खास तौर से जिन होटलों में पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति के नेता रुके हैं, उसके बाहर भी वृंदा-लक्ष्मी के बैनर लगाए गए हैं। इसके साथ ही पूरे शहर में प्रकाश करात और सीताराम येचुरी के पोस्टर मार्क्स और लेनिन के साथ लगाए गए हैं।