भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) इन दिनों गर्दिश में नजर आ रहा है। दरअसल, आईआईएम अहमदाबाद और आईआईएम बेंगलुरू ने फीस में बढ़ोतरी कर दी है।
इससे न केवल छात्र, बल्कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय और दूसरे आईआईएम संस्थान भी आहत हैं। इनका कहना है कि फीस में बढ़ोतरी जैसे महत्वपूर्ण फैसले लिए जाने से पहले उनसे सलाह तक नहीं ली गई।
हालांकि इस बारे में आईआईएम बेंगलुरू और अहमदाबाद के अधिकारियों का कहना है कि फीस बढ़ाने का फैसला लेने का अधिकार संस्थान की गवर्निंग बॉडी के पास है। आईआईएम को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों की वजह से भी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि सिफारिश लागू होने के बाद फैकल्टी का वेतन, रिटायरमेंट बेनिफिट आदि में संस्थान को करोड़ों रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़ सकते हैं।
दूसरी ओर, संस्थान शिक्षकों की कमी से भी जूझ रहा है, वहीं कई विशेषज्ञों के निजी क्षेत्रों में चले जाने से भी संस्थान पर असर पड़ा है। जानकारों का कहना है कि अगर छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू भी हो जाती हैं, तब भी यहां पढ़ाने वाले शिक्षकों का वेतन अंतरराष्ट्रीय स्तर के संस्थानों के शिक्षकों से कम ही रहेगा। ऐसे में आईआईएम के पास क्या विकल्प रह जाएगा?
इसके साथ ही 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण कोटा लागू करने का दबाव भी संस्थान के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। दरअसल, इसके लिए संस्थान में आवश्यक बुनियादी सुविधाओं में बढ़ोतरी करनी पड़ेगी। वर्तमान में 800 छात्रों की क्षमता वाले आईआईएम की सालाना आय करीब 40 से 50 करोड़ रुपये है।