मार्च में कमल नाथ के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार के पतन के बाद शिवराज सिंह चौहान रिकॉर्ड चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। भले ही कांग्रेस सरकार के पतन में नरोत्तम मिश्रा (मौजूदा गृहमंत्री) की अहम भूमिका थी लेकिन गुटबाजी से जूझ रही प्रदेश भाजपा में चौहान स्वाभाविक दावेदार बनकर उभरे।
राजनीतिक गुणा-गणित भी इसका कारण बना। जिन 24 सीटों पर उपचुनाव होना है उन पर जीत के लिहाज से भी चौहान को अधिक बेहतर माना गया। भाजपा को आराम से सत्ता में बने रहने के लिए 24 में से कम से कम 15 सीटों पर जीत हासिल करनी होगी। प्रदेश की सत्ता संभालने के ढाई महीने बाद चौहान के सामने कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती है कोविड-19 महामारी से निपटना। प्रदेश में अब तक 10,000 से अधिक लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं। परंतु राजनीतिक चुनौतियां और भी दुष्कर हैं।
सबको साथ लेकर चलना
भाजपा ने कांग्रेस 22 विधायकों के पाला बदलने के बाद सरकार बनाई थी। उनमें से कई मंत्री भी थे। शिवराज के सामने उन्हें समायोजित करना सबसे बड़ी चुनौती है। मंत्रिमंडल विस्तार में हो रही देरी की एक प्रमुख वजह यह भी है। राजनीतिक विश्लेषक संदीप पौराणिक कहते हैं, ‘मंत्रिमंडल में 29 सीटें खाली हैं जबकि दावेदारों की तादाद बहुत ज्यादा है। दल बदलने वाले स्वाभाविक रूप से पुरस्कार की लालसा रखते हैं।’
भाजपा के एक नेता कहते हैं कि चौहान को न केवल कांग्रेस से आए नेताओं का ध्यान रखना है बल्कि स्वयं भाजपा में कई बड़े नेता हैं जो मंत्री पद के आकांक्षी हैं। यही कारण है कि चौहान को मंत्रिमंडल विस्तार दो बार स्थगित करना पड़ा। भाजपा के एक पूर्व मंत्री कहते हैं, ‘सिंधिया के साथ हुए समझौते के मुताबिक कम से कम 10 लोगों को मंत्रिमंडल में जगह देनी है। ऐसे में उन्हें अपने कुछ पुराने साथियों को मनाना होगा। ऐसी सूचना है कि उन्होंने गोपाल भार्गव जैसे कद्दावर नेता को विधानसभा अध्यक्ष पद की पेशकश की थी जिसे उन्होंने ठुकरा दिया।’ पार्टी के भीतर इस विषय पर हो रहा विवाद उस समय सामने आ गया था जब रीवा विधायक राजेंद्र शुक्ला ने मुंबई में फंसे कुछ लोगों की मदद के लिए ट्विटर पर अभिनेता सोनू सूद से गुहार लगा दी। जबकि चौहान लगातार दावा कर रहे थे कि उनकी सरकार प्रवासी श्रमिकों को लाने का पूरा बंदोबस्त कर रही है। सूत्रों की मानें तो चौहान के करीबी माने जाने वाले शुक्ला का नाम संभावित मंत्रियों की सूची से बाहर होने के कारण उन्होंने ऐसा किया।
उपचुनाव करीब
भले ही 24 सीटों के विधानसभा उपचुनाव की तिथि अब तक घोषित न की गई हो लेकिन भाजपा ने चुनाव प्रबंधन समिति तथा संसाधन समिति का गठन कर तैयारी शुरू कर दी है। इसमें मध्य प्रदेश से आने वाले चार केंद्रीय मंत्री- नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल, थावरचंद गहलोत और फग्गन सिंह कुलस्ते शामिल हैं। स्वयं शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी डी शर्मा और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इसमें शामिल हैं।
कुल 24 सीटों में से 16 सीटें सिंधिया के प्रभाव वाले इलाके में स्थित हैं। कांग्रेस भी अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ रही है। पूर्व मंत्री बालेंदु शुक्ला और पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू की पार्टी में वापसी को इसी नजर से देखा जा रहा है। दोनों नेता सिंधिया के भाजपा में प्रवेश से नाखुश थे और इसलिए उन्होंने वापस कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस उपचुनाव में अजय ङ्क्षसह राहुल (पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे), मीनाक्षी नटराजन और गुड्डू जैसे बड़े नेताओं को उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बनाना चाहती है। कांग्रेस प्रवक्ता सैयद जाफर कहते हैं कि उपचुनाव के नतीजे चौंकाने वाले होंगे। वहीं भाजपा नेता पंकज चतुर्वेदी इस बात को खारिज करते हुए कहते हैं कि कांग्रेस दिन में सपने देख रही है। हकीकत तो यह है कि उसके पास उपचुनाव के लिए प्रत्याशी ही नहीं हैं।