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चाय कंपनियों पर आयकर के साथ-साथ कृषि कर भी लगेगा

Last Updated- December 07, 2022 | 8:05 AM IST

उच्चतम न्यायालय ने आदेश जारी किया है कि जब एक चाय कंपनी को कृषि और उत्पादन दोनों से आय मिलती है तो इस मिश्रित आय पर राज्य के आधार पर आयकर और कृषि कर दोनों ही लगाया जाना चाहिए।


अदालत दार्जिलिंग की एक पब्लिक लिमिटेड चाय कंपनी बेलगाची टी कॉरपोरेशन लिमिटेड से जुड़े कर निर्धारण के मामले की सुनवाई कर रही थी। इस कंपनी के पास चाय के बागान के साथ चाय उत्पादन की फैक्ट्री भी है। कंपनी चाय की पत्तियां भी बेचा करती थी। अदालत ने फैसला सुनाया कि कंपनी को चाय की पत्तियां उगाने और उनके उत्पादन से आय प्राप्त होती है।

आय कर की धारा के अनुसार इस आय के 40 फीसदी हिस्से पर कर लगाया जाना चाहिए। हालांकि कंपनी की शेष 60 फीसदी आय पर राज्य सरकार के बंगाल कृषि आयकर के तहत कर वसूला जाना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि कंपनी को यह आय कृषि के जरिए हुई है। वहीं दूसरी ओर कंपनी चाय की हरी पत्तियों को बेचकर जो धन कमाती है, उसे भी कृषिगत कार्य समझकर उस पर कृषि के तहत ही कर वसूले जाने का आदेश दिया गया।

संपत्ति की नीलामी अवैध

उत्तर प्रदेश सरकार की एक याचिका को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि स्वदेशी पॉलिटेक लिमिटेड की संपत्ति की नीलामी वैध प्रक्रियाओं को ध्यान में रखकर नहीं की गई है और यही वजह है कि इसे अमान्य करार दिया गया। कंपनी की संपत्तियों को 27 करोड़ रुपये में खरीदा गया जो बाजार मूल्य के आधे से भी कम थी।

बीमारू कंपनी अपने कर्मचारियों को बकाया वेतन नहीं दे पाई थी और इस तरह उसने यूपी इंडस्ट्रियल पीस कानून का उल्लंघन किया था। यूपी स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने सबसे अधिक की बोली लगाई थी। तब स्वदेशी ने बोली की प्रक्रिया में खामियों का उल्लेख करते हुए इसे अदालत में चुनौती दी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने याचिका को स्वीकार करते हुए नीलामी से जुड़े सरकारी अधिकारियों से मामले में सफाई देने को कहा।

कर में छूट वापस नहीं

सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अगर सरकार ने किसी उद्योग को कर में छूट दी है तो इसे पिछले प्रभाव से वापस नहीं लिया जा सकता है। कुसुमाम होटल्स लिमिटेड बनाम केरल विद्युत बोर्ड के मामले में सुनवाई के दौरान अदालत ने यह फैसला सुनाया। पर्यटन उद्योग की श्रेणी में शामिल करते हुए कंपनी के होटलों को कर में काफी रियायतें दी गई थीं। सरकार ने विद्युत बोर्ड को भी निर्देश दिया था कि होटल को सस्ती दर पर बिजली दी जाए।

चूंकि राज्य बिजली बोर्ड नुकसान में जा रहा था, इसलिए उसने होटल को दी जा रही रियायतों को खत्म कर दिया और साथ ही जो रियायतें दी गई थीं, उसकी वापसी के भी आदेश जारी किए गए। होटल समूह ने उच्च न्यायालय के पास इसकी अपील की पर उसे यहां कोई खास राहत नहीं मिल पाई। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में फैसला सुनाया कि राज्य बिजली बोर्ड तत्काल प्रभाव से ही यह आदेश जारी कर सकता है और पहले जो छूट दी जा चुकी है उसकी वापसी नहीं हो सकती।

खराब बीजों के लिए भरपाई

राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने इंडिया सीड हाउस की अपील को खारिज कर दिया जिसमें राजस्थान उपभोक्ता आयोग के आदेश को चुनौती दी गई थी। कंपनी ने किसानों को गाजर के बीज बेचे थे जो अच्छी किस्म के नहीं थे और उससे पैदावार पर असर पड़ा था। किसानों ने इसके खिलाफ जयपुर के कृषि उपायुक्त के पास अपील की। जांच के बाद किसानों की शिकायत को सही पाया गया।

किसानों ने कंज्यूमर फोरम के पास आवाज लगाई जिसने कंपनी और डीलर के खिलाफ आदेश जारी किए। तब राजस्थान उपभोक्ता आयोग ने कंपनी को किसानों को मुआवजा देने का आदेश दिया। कंपनी ने इस आदेश के खिलाफ अपील करते हुए कहा कि गाजर के बीजों की जांच प्रयोगशाला में नहीं की गई थी। राष्ट्रीय आयोग ने कंपनी की अपील को खारिज करते हुए कहा कि हर किसान से यह अपेक्षित नहीं है कि वह बीजों की जांच के लिए खुद की प्रयोगशाला तैयार करे।

दरी कालीन के लिए बीमा नहीं

सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के फैसले के खिलाफ न्यू इंडिया एश्योरेंस कॉरपोरेशन लि की अपील को सही ठहराया। आयोग ने उन निर्यातकों के दावे को सही ठहराया जो उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में इन्हें तैयार करते थे और अमेरिका के अटलांटा में इनका निर्यात किया करते थे।

आयोग ने इस मामले में फैसला सुनाया था कि निर्यातकों के पास नुकसान के खिलाफ वैध मरीन बीमा कार्गो पॉलिसी है और बीमा कंपनियों की जिम्मेदारी है कि वे निर्यातकों को हुए नुकसान की भरपाई करें। बीमा कंपनी की अपील पर उच्चतम न्यायालय ने आयोग के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि बीमा कंपनी को इस मामले में मुआवजा भरने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।

First Published - June 30, 2008 | 12:22 AM IST

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