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विकास के लिए कर संधियों में संशोधन जरूरी

Last Updated- December 10, 2022 | 6:37 PM IST

दोहरे कराधान से बचने के लिए किए गए समझौते विदेशी पूंजी और प्रौद्योगिकी आकर्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ाने के लिए दोहरे कराधान की रोकथाम या इसे समाप्त किया जाना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यताप्राप्त घटना है।
समान आय के संदर्भ में एक ही करदाता पर, दो या इससे अधिक देशों में समान कर थोपा जाना दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों के विकास के लिए नुकसानदायक समझा जाता है और यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार, निवेश के मुक्त प्रवाह और प्रौद्योगिकी के स्थानांतरण के लिए उत्साह को समाप्त करने का काम करता है।
विकसित देशों और विकासशील देशों के बीच कर संधियां इसलिए बनाई गई हैं ताकि दोहरे कराधान को थोपे जाने से बचा जा सके। भारत ने दुनिया के लगभग सभी प्रमुख देशों के साथ कर संधियां की हैं। कर संधियां निरपवाद रूप से यानी हमेशा के लिए दोहरे कराधान को समाप्त करती हैं।
इस उद्देश्य के लिए, कर संधियों में एक विशेष प्रावधान रखा गया है कि अगर भारत के साथ-साथ अन्य किसी देश में कुछ आय पर कर का भुगतान किया गया है, तो भारत में चुकाए गए कर के क्रेडिट को अपने देश में विदेशी उद्यम की अनुमति होगी।
हालांकि कुछ विशेष परिस्थितियों में टैक्स क्रेडिट का लाभ दूसरे देश में उस स्थिति में भी उपलब्ध है जब भारत में कोई कर नहीं चुकाया गया हो। यह सिद्धांत विकास गतिविधियों के लिए दिए गए कर प्रोत्साहनों पर आधारित है।
उदाहरण के लिए, भारत में नए औद्योगिक उपक्रम की स्थापना 5 से 10 वर्षों की शुरुआती अवधि के लिए कर छूट आकर्षित करता है। कर छूट की अवधि के दौरान इस नए औद्योगिक उपक्रम द्वारा कमाए गए मुनाफे पर भारत में कर लागू नहीं होगा। लेकिन यह कथित मुनाफा विदेशी उद्यमी के निवास वाले देश में कर के दायरे में आ सकता है।
उस स्थिति में विदेशी उद्यमी के भारत में ऐसे गतिविधियों में शामिल रहने पर यह सुविधा नहीं मिलेगी। ज्यादातर कर संधियों में एक प्रावधान रखा गया है कि ‘भारत में कर देय’ टर्म किसी भी राशि, जो भारतीय कर के रूप में देय होगी, को शामिल करने के लिए समझा जाएगा।
विकासशील देशों और विकसित देशों के बीच कर संधियों के लिए उपर्युक्त सिद्धांत ऑर्गनाइजेशन फॉर इकनॉमिक कोऑपरेशन ऐंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) मॉडल कन्वेंशन और यूनाइटेड नेशंस मॉडल कन्वेंशन दोनों द्वारा मान्यताप्राप्त है। उपयुक्त लाभ कर संधियों में प्रोत्साहन प्रावधानों के लिए विशेष संदर्भ दिए जाने पर हासिल होता है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई कर संधियों में भारत को आय कर अधिनियम के उन प्रावधानों का संदर्भ शामिल करना अभी भी बाकी है जो निरर्थक बने हुए हैं या जिनमें संशोधन कर दिया गया है या अन्य प्रावधानों के विकल्प हैं।
आयकर अधिनियम के ताजा प्रावधानों के लिए संदर्भ शामिल करने के लिए जब तक कर संधियों में संशोधन नहीं किया जाता है, कर प्रोत्साहन का उद्देश्य पूरा नहीं होगा, क्योंकि विदेशी उद्यम अपने गृह देश में ऐसी गतिविधियों से मुनाफे पर कर चुकाने के लिए जिम्मेदार होंगे।
उपर्युक्त संदर्भ में, जापान, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, ग्रेट ब्रिटेन, मॉरिशस, डेनमार्क, फिनलैंड, इटली, मलेशिया, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, सिंगापुर और स्पेन के साथ कर संधियों की ओर ध्यान दिया जाना जरूरी है जहां भारतीय आय कर अधिनियम की पुरानी धाराओं के संदर्भ अभी भी मौजूद है।
दूसरी तरफ कुछ ऐसी खास कर संधियां भी हैं जिनमें विदेशी उद्यमियों के लिए कर प्रोत्साहन प्रावधानों के लाभ से जुड़े किसी प्रावधान को शामिल नहीं किया गया है। ऐसी कर संधियों में आस्ट्रेलिया, ब्राजील, हंगरी, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की और अमेरिका के साथ की गई कर संधियां शामिल हैं।
अंत में यह सुझाव दिया जाता है कि सरकार द्वारा सुझाए गए आधारों पर कर संधियों की समीक्षा की जानी चाहिए। यह भी उल्लेख किया जा सकता है कि कर संधियों में बदलाव से भारतीय खजाने पर कोई विपरीत वित्तीय असर नहीं पड़ेगा।
(लेखक एसएस कोठारी मेहता ऐंड कंपनीज में पार्टनर हैं।)
दोहरे कराधान से बचाव
विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ाने के लिए दोहरे कराधान से बचने के लिए समझौते (कर संधियां) करना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यताप्राप्त घटना है।
कर संधियों में एक विशेष प्रावधान रखा गया है कि समान आय पर कर का भारत के साथ-साथ अन्य देश में भुगतान किया गया है, तो भारत में चुकाए गए कर के क्रेडिट को अपने देश में विदेशी उद्यम की अनुमति होगी।
हालांकि कई कर संधियों में भारत को आय कर अधिनियम के उन प्रावधानों का संदर्भ शामिल करना अभी भी बाकी है जो निरर्थक बने हुए हैं या जिनमें संशोधन कर दिया गया है या अन्य प्रावधानों के विकल्प हैं।

First Published - March 2, 2009 | 4:08 PM IST

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