रतन मेल्टिंग मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद बेहद आक्रामक स्थिति पैदा हो गई।
मेरे एक पूर्व सहयोगी, जो एक प्रखर जानकार माने जाते हैं, ने कुछ चिंताओं के साथ मुझे फोन किया और कहा कि यह फैसला अब केंद्रीय उत्पाद एवं सीमाशुल्क बोर्ड (सीबीईसी) को उसके स्वयं के सर्कुलर के अनुसरण में कार्रवाई के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करने का अधिकार प्रदान करता है। यह चिंता फैसले के पैरा 7 को पढ़ने के बाद पैदा हुई है जो इस प्रकार है:
‘स्पष्ट तौर पर, करदाता सर्कुलर के प्रतिकूल सवाल उठाते हुए कोई अपील दायर नहीं करेगा। यह राजस्व प्राधिकरण ही होगा जो इस पर सवाल उठाएगा। यह उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के दायरे में नहीं होगा। यह संविधान के अनुच्छेद 141 की शर्तों के मुताबिक न्यायालय द्वारा घोषित कानून की अवधारणा के खिलाफ होगा।’
यह थोड़ा असामान्य दिखता है कि सीबीईसी अपने ऑर्डर के आधार पर की गई कार्रवाई के खिलाफ अपील दायर करेगा। हालांकि परिस्थिति, जिसके तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह ऑर्डर पास किया गया, पर सही तरह से नजर डालने से ऐसे हालात का पता चल सकेगा और यह कोई विसंगति नहीं है।
इस खास मामले में बोर्ड का मौजूदा सर्कुलर करदाता के हित में था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय का फैसला बोर्ड के सर्कुलर के खिलाफ था। इसलिए सर्कुलर को प्रभावी नहीं बनाए जाने के लिए बोर्ड ने कमिश्नर की मदद से सर्वोच्च न्यायालय में एक अपील दायर कर दी।
इस मामले को लेकर करदाता न्यायालय में पहुंच गया और उसने दलील दी कि एक बार जब बोर्ड कोई सर्कुलर जारी करता है तो राजस्व प्राधिकरण सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का लाभ नहीं उठा सकता। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णायक रूप से फैसला दिया कि बोर्ड के सर्कुलर जब अधिनियमों के तहत प्राधिकरणों की बाध्यता है, वे न्यायालय पर बाध्यकारी नहीं हैं।
‘न्यायालय को यह स्पष्ट करना होगा कि कानून का यह खास प्रावधान क्या कहता है और यह किसी अधिकारी का काम नहीं है। दूसरे कोण से यह देखा गया है कि सर्कुलर, जो सांविधिक प्रावधान के विपरीत है, का कानून में वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं है।’
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का सार या मर्म यह है कि यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत बाध्यकारी है। बोर्ड का सर्कुलर अगर यह न्यायालय के फैसले के खिलाफ है तो यह निश्चित तौर पर विभाग पर बाध्यकारी है। रतन मेल्टिंग जैसे मामले में अब यह सर्कुलर करदाता के पक्ष में है। अदालत का फैसला करदाता के खिलाफ है। इसलिए सीबीईसी को अदालत के फैसले का अनुसरण करना होगा।
जाहिर है कि सीबीईसी अदालत के फैसले के मुताबिक अपने सर्कुलर में बदलाव ला सकता है। लेकिन अगर इसने पहले से ही ऐसा नहीं किया है और यदि करदाता ने सर्कुलर के मुताबिक लाभ हासिल किया है तो बोर्ड निश्चित रूप से इस लाभ को अवैध बनाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है।
यह उस मामले में होगा जो सर्वोच्च न्यायालय में आता हो और ट्रिब्यूनल या उच्च न्यायालय ने बोर्ड के मौजूदा सर्कुलर का अनुसरण करते हुए करदाता को लाभान्वित किया हो। इसलिए यह कोई विसंगति वाली स्थिति नहीं है, लेकिन यह काफी आक्रामक दिखता है।
इसका सिर्फ यही मतलब है कि यह सिद्धांत केवल विशेष परिस्थितियों में ही लागू है जैसा कि मैं ऊपर इसका जिक्र कर चुका हूं। निष्कर्ष यह है कि सीबीईसी को अपने सर्कुलरों में तुरंत संशोधन करना चाहिए। या फिर कम से कम उसे उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ जल्द से जल्द अपील करनी चाहिए।