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कार्य अनुबंध : कर से बंधा डेवलपर

Last Updated- December 07, 2022 | 11:00 AM IST

आवासीय कॉम्प्लेक्स निर्माण को सेवा कर के दायरे में पहली बार 16 जून 2005 में लाया गया था। इसे लाने का मुख्य उद्देश्य था कि आवासीय परिसंपत्ति के साथ-साथ निर्माण गतिविधियों पर भी सेवा कर आरोपित किया जाए।


इस मामले में एक सवाल उठा कि ऐसे डेवलपर जो एक आवासीय परियोजना का निर्माण करने के बाद एक यूनिट बेच देते हैं, उसे सेवा कर के दायरे में लाया जाना चाहिए या नहीं। इस तरह का मुद्दा तब खड़ा हुआ जब के रहेजा डेवलपमेंट कॉरपोरेशन बनाम कर्नाटक राज्य  (2005) 2 एसटीटी 178 (एससी)) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपना निर्णय सुनाया था।

यह निर्णय कर्नाटक बिक्री कर कानून 1957 के आधार पर सुनाया गया था, जिसमें कार्य अनुबंध की सीमाओं और परिभाषाओं का जिक्र किया गया है। इस मामले में मुद्दा था कि रियल एस्टेट और इससे जुड़ी सहयोगी कार्यों में संलग्न एक कंपनी ने जमीन के मालिक से एक भूखंड खरीदा। कंपनी की योजना थी कि इस जमीन की मंजूरी मिलने के बाद इस पर आवासीय अपार्टमेंट या वाणिज्यिक कॉम्प्लेक्स बनाया जाए।

इस अनुबंध में इस बात का भी उल्लेख किया गया था कि आवासीय अपार्टमेंट या वाणिज्यिक कॉम्प्लेक्स के बनने के बाद इसे जमीन के मालिक को जमीन की कीमत घटाकर बेच दी जाएगी। उसके बाद वह इसे सोसाइटी के हवाले कर देगा। अब इस मामले में यह प्रश्न उठा कि याचिकाकर्ता एक डीलर था और उसे कर्नाटक बिक्री कर कानून 1957 के तहत इस पूरे निर्माण कार्य के लिए कार्य अनुबंध के अंतर्गत कर का भुगतान करना चाहिए।

वैसे भी किसी चीज को बेचना कार्य अनुबंध का एक हिस्सा होता है। न्यायालय ने इसपर सुनवाई करते हुए कहा कि चूंकि बिल्डर या डेवलपर फ्लैटों को बेचकर किश्तों में पैसा लेता है और यह प्रक्रिया कार्य अनुबंध के तहत आता है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि डेवलपर ने फ्लैट का निर्माण कार्य खरीदार की निगरानी में किया है। इसमें एक बात और स्पष्ट तौर पर कही गई कि यह मामला पूरी तरह से बने बनाए फ्लैट को बेचने की है, जो कार्य अनुबंध के अंतर्गत नहीं आता है।

इस निर्णय के अनुसार किसी भी मुद्दे को कार्य अनुबंध के  तहत कैसा व्यवहार किया जाए जब उस पर कर का अधिरोपण किया जाता हो। साथ ही पार्टी की इच्छा पर यह निर्भर करता है कि इस पर किन शर्तों के आधार पर कर लगाया जाए। वैसे ये सारी बातें कुछ तथ्यों और शर्तों पर निर्भर करती है। इस मामले के आधार पर सेवा कर प्राधिकरण ने एक सर्कुलर जारी किया। इसमें यह कहा गया कि आवासीय इकाइयों की बिक्री कार्य अनुबंध के अंतर्गत आती है।

चूंकि कार्य अनुबंध में भी सेवाएं शामिल होती है, इसलिए इस तरह के अनुबंध सेवा कर के दायरे में आने चाहिए। प्राधिकरण ने कहा कि आवासीय निर्माण सेवाओं के मद में इसे शामिल कर इस पर कर लगाने की व्यवस्था है। इस सर्कुलर को बम्बई उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। जबकि यह मामला न्यायालय में लंबित था, सीबीईसी ने एक घोषणा के तहत यह स्पष्ट किया कि अगर कोई बिल्डर किसी कॉन्ट्रेक्टर को शामिल करते हुए आवासीय कॉम्प्लेक्सों का निर्माण करता है, तो कॉन्ट्रेक्टरों को इसके लिए कर देना होगा।

यह कराधान कॉम्प्लेक्स निर्माण के मद में होगा। इस सर्कुलर में यह भी कहा गया कि अगर इस निर्माण कार्य में कोई दूसरा व्यक्ति शामिल नहीं होता है और बिल्डर अपने दम पर सारा निर्माण कार्य करता है, तो उस मामले में कोई सेवा कर आरोपित नहीं किया जाएगा।इसके बाद एसोटेक रियल्टी प्राइवेट लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2007 (7) एसटीआर 129) के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर किसी आवासीय कॉम्पलेक्स को उसके निर्माण कार्य पूरा होने से पहले ही खरीदा जाए, तो यह कार्य अनुबंध के तहत नहीं आता है।

इस मामले के तथ्यों के आधार पर न्यायालय ने कहा कि डेवलपर तब तक उस निर्माण कार्य का सर्वेसर्वा है जब तक बिक्री और तत्पश्चात हस्तांतरण कार्य अनुबंध के दायरे में नहीं आता है। और अगर यह कार्य अनुबंध के दायरे में आ जाता है, तो उस पर सेवा कर आरोपित किया जाना चाहिए। न्यायालय ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय से थोड़ा हटकर निर्णय सुनाया। इसमें कहा गया कि खरीदार की निगरानी में डेवलपर ने निर्माण कार्य को अधिग्रहीत नहीं किया था और उसने ये सारा काम अपने जिम्मे किया था। अगर तकनीकी हिसाब से सोचा जाए, तो उच्च न्यायालय का यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय से हटकर था।

हरेकृष्णा डेवलपर्स (2008- टीआईओएल -03-एआरए-एसटी) के मामले में अथॉरिटी ऑफ एडवांस रूलिंग ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि अगर कोई रियल एस्टेट डेवलपर उपभोक्ता से बुकिंग राशि चार्ज करता है और निर्माण कार्य अपनी देख-रेख में ही करता है और उसके बाद इस आवासीय इकाइयों को उक्त उपभोक्ताओं को बेचता है, तो यह सेवा कर के दायरे में आएगा। प्राधिकरण ने भी इस बात को स्वीकार किया कि सीबीईसी की घोषणाएं अस्पष्ट हैं और इसमें यह नहीं कहा गया है कि डेवलपर सेवा कर के दायरे में नहीं आता है।

पिछले निर्णयों के आलोक में हाल ही में गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने मेगस कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लि. बनाम भारत संघ (2008-टीआईओएल-321-एचसी-गुवाहाटी-एसटी) एक निर्णय सुनाया है। इसमें कहा गया कि अगर कोई बिल्डर फ्लैट के निर्माण का कार्य कर रहा हो और उसके पूरा होने के बाद अगर वह उसकी बिक्री करता है, तो वह सेवा कर के दायरे में नहीं आएगा। न्यायालय ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि बने बनाए मकान को खरीदने और इसका किश्तों में भुगतान करने की प्रक्रिया कार्य अनुबंध के अंतर्गत नहीं आता है। इसमें एक बात कही गई कि अगर इच्छुक व्यक्ति अकेले किसी निर्मित फ्लैट को खरीदता है, तो भी यह सेवा कर के दायरे में नहीं आता है।

यहां एकबार फिर के रहेजा के मामले से अलग निर्णय सामने आया। इसके पश्चात यह अवलोकन किया गया कि उस मामले में डेवलपर न सिर्फ निर्माण कार्य की निगरानी स्वयं कर रहा था बल्कि प्रस्तावित खरीदार भी उसमें शामिल था। हालिया मामले में इच्छुक खरीदार की निगरानी में डेवलपर निर्माण नहीं देख रहा है। इस मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता कि निर्माण खरीदार के वास्ते और उसकी निगरानी में किया जा रहा है। उच्च न्यायालय ने सीबीईसी के सर्कुलर की व्याख्या करते हुए कहा कि किसी इकाई की बिक्री के मामले में डेवलपर पर सेवा कर नहीं लगाया जाना चाहिए।

First Published - July 13, 2008 | 11:48 PM IST

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