वाणिज्य मंत्री कमलनाथ ने निर्यात को लेकर ऐसे कई प्रक्रियात्मक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है, जिनका लेन-देन लागत भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धा पर असर पड़ता है।
उन्होंने 26 फरवरी को अंतरिम विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) को सालाना सप्लीमेंट के तौर पर पेश किया है जिसमें नकदी प्रोत्साहनों के तौर पर निर्यातकों को काफी कम रियायत प्रदान की गई है, जिसकी वे मांग कर रहे थे। साथ ही, नाथ ने उस नुकसान पर भी चुप्पी साधे रहना पसंद किया, जो डेरिवेटिव कारोबार में निर्यातकों को उठाना पड़ा है।
निर्यात से संबद्ध प्राप्तियों का इंतजार किए बगैर विभिन्न निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं के तहत ट्रांसफरेबल डयूटी क्रेडिट दिए जाने के लिए यह फैसला निर्यातकों के नकदी प्रवाह में बड़ा सुधार लाएगा।
हालांकि निर्यात प्राप्ति की शर्त अभी भी बरकरार है। यह प्रावधान कि निर्यातकों को बैंक गारंटी देनी चाहिए, का असर बहुत कम एक्सपोर्ट हाउसों पर पड़ेगा और 5 करोड़ रुपये के निर्यात वाले निर्यातकों को इस प्रावधान के दायरे में नहीं लाया जाएगा। लेकिन फिर भी इस प्रावधान की समीक्षा की जा रही है।
शुल्क छूट स्कीम और एक्सपोर्ट प्रमोशन कैपिटल गुड्स (ईपीसीजी) स्कीम के तहत निर्यात दायित्व अवधि में इजाफा समय की मांग को पूरा करेगा, क्योंकि ज्यादातर निर्यातकों के पास ऑर्डर नहीं हैं और वे निर्यात दायित्व पूरा नहीं कर सकते।
सीमा शुल्क अधिसूचनाओं, कालीन, स्टैपलर मशीनों, टेक्स्टाइल आदि के लिए अतिरिक्त डयूटी क्रेडिट एंटाइटलमेंट्स के साथ एफटीपी के प्रावधानों को व्यवस्थित किए जाने जैसे अन्य उपाय मददगार साबित होंगे, लेकिन इनसे निर्यात पर ज्यादा प्रभाव नहीं पडेग़ा।
ईपीसीजी स्कीम के तहत अपेक्षाएं काफी अधिक हैं। शुल्क दर को 3 फीसदी से समाप्त कर शून्य किया जाएगा और विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) की इकाइयों को समान उत्पाद शुल्क के बराबर राशि का भुगतान कर डोमेस्टिक ट्रैरिफ एरिया (डीटीए) में सामानों की अनुमति दी जाएगी। निर्यात आधारित इकाइयों (ईओयू) को आय कर रियायतों को 2010 से आगे बढ़ाए जाने की उम्मीद है।
हालांकि यह स्पष्ट है कि नाथ वित्त मंत्रालय को राजी नहीं कर सके हैं। कमलनाथ शुल्क वापसी या डयूटी एंटाइटलमेंट पासबुक दरों को बढ़ाए जाने की मांगों के सामने नहीं झुके हैं। इन दरों में इजाफे की मांग का मामला कमजोर बना हुआ है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि मौजूदा दरों में पहले से ही 20 फीसदी से भी अधिक की सब्सिडी शामिल है।
एफटीपी का यह सालाना सप्लीमेंट उत्पाद शुल्क दरों को 10 फीसदी से घटा कर 8 फीसदी और सेवा कर दरों को 12 फीसदी से घटा कर 10 फीसदी किए जाने के महज दो दिन बाद आया है। अब वाणिज्य एवं वित्त मंत्रालयों में नौकरशाहों का काम है वे इस व्यवस्था को कुशलतापूर्वक लागू करें। निर्यात संभावनाएं बहुत अच्छी दिखाई नहीं दे रही हैं।
एफटीपी के उद्देश्यों और मौजूदा सरकार के चार साल के दौरान सफलताओं की समीक्षा करते हुए वाणिज्य मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि किस तरह से नीतियों ने ‘समग्र विकास’ के विचार में भूमिका अदा की है।
निर्यातक इस संकटग्रस्त समय में अब सरकार की ओर देखना बंद कर सकते हैं। नए ऑर्डरों के नहीं मिलने और मौजूदा ऑर्डरों को पूरा नहीं कर पाने की वजह से निर्यातक पूरी क्षमता का दोहन नहीं कर पाएंगे। श्रेष्ठ रास्ता है, गुणवत्ता सुधार पर ध्यान केंद्रित करना और नए बाजारों की तलाश करना।