दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी एमेजॉन को आज सर्वोच्च न्यायालय से बड़ी राहत मिली। शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ एमेजॉन की अपील स्वीकार कर ली, जिसमें 24,713 करोड़ रुपये (3.4 अरब डॉलर) के फ्यूचर-रिलायंस सौदे में फ्यूचर समूह की कंपनियों और किशोर बियाणी की संपत्तियों की कुर्की पर रोक लगा दी गई थी।
न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और बीआर गवई के पीठ ने कहा कि आपात मध्यस्थ का आदेश भारत में मध्यस्थता अधिनियम की धारा 17(2) के तहत लागूू हो सकता है। अदालती कार्यवाही एवं फैसलों पर नजर रखने वाले बार ऐंड बेंच के मुताबिक न्यायमूर्ति नरीमन ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘हमने दो सवाल तय किए हैं और उनके जवाब दिए हैं क्योंकि आपात मध्यस्थ का फैसला वैध है और धारा 17(2) के तहत लागू किया जा सकता है, इसलिए अपील स्वीकार की जाती है।’
दिल्ली उच्च न्यायालय के खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश पर रोक लगा दी थी। एकल पीठ ने फ्यूचर-रिलायंस सौदे के संबंध में फ्यूचर समूह की कंपनियों और किशोर बियाणी की संपत्तियों को कुर्क करने का आदेश दिया था। उस आदेश में आपात मध्यस्थ के फैसले को सही ठहराया गया था। इसमें संपत्तियों को कुर्क करने का आदेश दिया गया था और फ्यूचर रिटेल लिमिटेड तथा रिलायंस रिटेल के 24,713 करोड़ रुपये के विलय सौदे पर भी रोक लगा दी थी। बाद में खंडपीठ ने इस आदेश पर रोक लगा दी, जिसके खिलाफ एमेजॉन सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गई। एमेजॉन के प्रवक्ता ने आज कहा, ‘आपात मध्यस्थ के निर्णय को बरकरार रखने के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हम स्वागत करते हैं। हमें उम्मीद है कि इससे फ्यूचर समूह के साथ विवाद का जल्द समाधान होगा।’
विधि विशेषज्ञों ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने रिलायंस समूह में फ्यूचर रिटेल के विलय पर फ्यूचर रिटेल लिमिटेड के साथ लंबे अरसे से चल रहे विवाद में एमेजॉन के पक्ष में फैसला दिया है। टेकलेजिस एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर्स में मैनेजिंग पार्टनर सलमान वारिस ने कहा, ‘सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में आपात मध्यस्थ के निर्णय को भारतीय कानून के तहत लागू करने योग्य माना है। यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय, एनसीएलटी (राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण) और सर्वोच्च न्यायालय में कभी इधर और कभी उधर धकेला जाता रहा है।’
अदालत ने दो सवाल बनाए और उनका जवाब दिया। आपात मध्यस्थ का आदेश मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम की धारा 17(1) के तहत वैध है और ऐसे आदेशों को धारा 17(2) के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती है।
वारिस ने कहा, ‘इस फैसले से अंतरराष्ट्रीय उद्यमियों और विदेशी कंपनियों को सकारात्मक संकेत मिले हैं। इससे साबित हुआ है कि उनके अधिकारों की भारतीय कानूनों के तहत रक्षा होगी। इसका भविष्य के निवेश सौदों और निवेशकों पर दीर्घकालिक असर होगा।’