सर्वोच्च न्यायालय ने यह घोषणा की है कि उत्तर प्रदेश गन्ना किसान संस्थान एक सरकारी निकाय है और इसका सरकार के प्रति संवैधानिक दायित्व है। इसका मतलब है कि इसके कर्मचारी सरकारी नियमों के दायरे में आएंगे।
न्यायालय संस्थान के एक सरकारी निकाय होने के निष्कर्ष तक इस आधार पर पहुंचा कि इसका लगभग 90 फीसदी कोष राज्य सरकार से आता है। बड़ी संख्या में इसके अधिकारी सरकारी अधिकारी हैं और इस संस्था पर व्यापक रूप से सरकारी नियंत्रण है।
हालांकि बाहरी तौर पर यह एक पंजीकृत सोसायटी है। न्यायालय ने राज्य सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया है जिसमें दलील दी गई थी कि संस्थान सरकार का हिस्सा नहीं है और इसलिए वह इस सोसायटी में पदों के एक वर्ग को समाप्त किए जाने के लिए जिम्मेदार नहीं है।
ब्याज दर वाजिब हो
सर्वोच्च न्यायालय ने धनलक्ष्मी बैंक लिमिटेड के मामले में फैसला सुनाया कि ऋण वसूली न्यायाधिकरण जो ब्याज दर तय करे, उसे वाजिब होना चाहिए तथा उसे निर्धारित करते समय मुद्रास्फीति और बैंक ब्याज दरों में गिरावट को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इस मामले में कर्जदार सी के शशांकन ऋण अदायगी में विफल रहे थे। बैंक न्यायाधिकरण के पास चला गया।
न्यायाधिकरण ने बैंक को गिरवी रखी गई देनदार की संपत्ति बेचने की अनुमति दे दी। बैंक 25 फीसदी की दर पर ब्याज वसूल सकता था। अपील न्यायाधिकरण और मद्रास उच्च न्यायालय ने शशांकन की अपील ठुकरा दी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 34 का हवाला देते हुए अपील को स्वीकार कर लिया। इस धारा के अनुसार ब्याज दर वाजिब होनी चाहिए। न्यायालय ने यह दर घटा कर 9 फीसदी कर दी।
मुआवजे के लिए वैध लाइसेंस जरूरी
सर्वोच्च न्यायालय ने दो मामलों में फैसला दिया है कि अगर मोटर वाहन दुर्घटना उस ड्राइवर के द्वारा हुई है जिसके पास वैध लाइसेंस नहीं है तो बीमा कंपनी न्यायाधिकरण द्वारा तय किए गए मुआवजे का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार नहीं होगी। ‘
ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम अंगद कोल’ मामले में न्यायालय ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले को दरकिनार कर दिया है जिसमें बीमा कंपनी से मुआवजा चुकाए जाने को कहा गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चूंकि ड्राइवर के पास हल्के वाहन के लिए लाइसेंस था, न कि मालवाहक वाहन के लिए, इसलिए बीमा अनुबंध का उल्लंघन हुआ।
ऐसे में बीमा कंपनी दुर्घटना न्यायाधिकरण के मुआवजे के आदेश को मानने के लिए जिम्मेदार नहीं है। हालांकि वाहन का मालिक यह रकम चुकाने के लिए जिम्मेदार होगा। एक और मामले ‘भुवन सिंह बनाम ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी’ में भी न्यायालय ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के ऐसे ही एक फैसले को वैध ठहराया है।
कर की दर इस्तेमाल पर निर्भर
सर्वोच्च न्यायालय ने झारखंड उच्च न्यायालय के उस फैसले को निरस्त कर दिया है जिसमें बीओसी इंडिया लिमिटेड द्वारा निर्मित और टाटा स्टील लिमिटेड को आपूर्ति की गई ऑक्सीजन पर बिक्री कर में रियायत देने से इनकार कर दिया गया था।
फाइनैंस ऐक्ट और अधिसूचनाओं के मुताबिक अगर गैस का इस्तेमाल निर्माण के लिए किया जाता है तो कर दर 3 फीसदी होगी जबकि उत्पादों के निर्माण या प्रसंस्करण के लिए इसका इस्तेमाल कच्चे पदार्थ के तौर पर किया गया हो तो इसके लिए कर की दर 2 फीसदी होगी। कर आकलन अधिकारियों और उच्च न्यायालय ने इस्पात के निर्माण में गैस की भूमिका की पड़ताल नहीं की। इसलिए उच्च न्यायालय के फैसले को अमान्य करार देते हुए कर विभाग से कर थोपे जाने से पहले इस प्रक्रिया से संबद्ध सभी पक्षों पर विचार करने को कहा गया है।
मध्यस्थता मामले के निपटान में लगे 25 साल
मध्यस्थता मामलों के निबटारा होने में भी कई दशकों का समय लग सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के एक ताजा फैसले से यह बात स्पष्ट होती है। सर्वोच्च न्यायालय ने 25 साल पुराना एक मध्यस्थता मामला सुलझाया है जो विशाखापत्तनम पोर्ट ट्रस्ट द्वारा कॉन्टिनेंटल कंस्ट्रक्शन कंपनी को 75,000 रुपये के भुगतान से संबध्द था। यह विवाद 1975 में शुरू हुआ और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय होते हुए सर्वोच्च न्यायालय में आया था।