उच्चतम न्यायालय ने भारत में राजनीतिक नेताओं, अदालत के कर्मियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित विभिन्न लोगों की निगरानी के लिए इजरायली स्पाईवेयर पेगासस के इस्तेमाल के आरोपों की जांच के लिए बुधवार को साइबर विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की। इस समिति में साइबर विशेषज्ञ, डिजिटल फॉरेंसिक, नेटवर्क एवं हार्डवेयर के विशेषज्ञ शामिल हैं। जांच की निगरानी शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर वी रवींद्रन करेंगे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि पूर्व आईपीएस अधिकारी आलोक जोशी और संदीप ओबेरॉय (अध्यक्ष, उप समिति (अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन/अंतरराष्ट्रीय इलेक्ट्रो-तकनीकी आयोग/ संयुक्त तकनीकी समिति) न्यायमूर्ति रवींद्रन समिति के कामकाज की निगरानी करने में मदद करेंगे।
अदालत ने कहा कि सरकार हर बार राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देकर बच नहीं सकती और इसे हौवा नहीं बनाया जा सकता जिसका जिक्र होने मात्र से न्यायालय खुद को मामले से दूर कर ले।
नागरिकों के निजता के अधिकार के विषय पर पिछले कुछ सालों के एक महत्त्वपूर्ण फैसले में मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली के तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देने मात्र से न्यायालय मूक दर्शक बना नहीं रह सकता। पीठ ने केंद्र के स्वयं विशेषज्ञ समिति गठित करने के अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि ऐसा करना पूर्वाग्रह के खिलाफ स्थापित न्यायिक सिद्धांत का उल्लंघन होगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सात बाध्यकारी परिस्थितियों में अदालत को आदेश जारी करना पड़ा। पीठ ने कहा कि एक बाध्यकारी परिस्थिति यह थी कि नागरिकों के निजता और बोलने की आजादी के अधिकार प्रभावित होने के आरोप हैं जिनकी पड़ताल जरूरी है। पेगासस जासूसी मामले में स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली याचिकाओं पर अपने 46 पन्नों के आदेश में शीर्ष अदालत ने यह बात कही। उसने कहा कि संभावना है कि कुछ विदेशी प्राधिकरण, एजेंसी या निजी संस्था इस देश के नागरिकों की निगरानी करने में शामिल हैं। अदालत ने कहा कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देती रहे तो न्यायालय मूक दर्शक बना नहीं रह सकता।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रेस की आजादी लोकतंत्र का महत्त्वपूर्ण स्तंभ है और पेगासस मामले में अदालत का काम, पत्रकारीय सूत्रों की सुरक्षा के महत्त्व के लिहाज से अहम है। अदालत ने प्रेस की आजादी से संबंधित पहलू पर जोर देते हुए कहा कि वह सच का पता लगाने और आरोपों की तह तक जाने के लिए मामले को लेने के लिए बाध्य है। शीर्ष अदालत ने कहा कि पत्रकारीय सूत्रों का संरक्षण प्रेस की आजादी के लिए एक बुनियादी शर्त है और इसके बिना सूत्र जनहित के मामलों पर जनता को सूचित करने में मीडिया की मदद करने से पीछे हट सकते हैं।
कौन करेंगे जांच
तकनीकी समिति के पहले सदस्य नवीन कुमार चौधरी, प्रोफेसर (साइबर सुरक्षा और डिजिटल फॉरेंसिक) एवं डीन राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय, गांधीनगर, गुजरात हैं।शीर्ष अदालत ने कहा कि चौधरी को शिक्षाविद के रूप में और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ के रूप में दो दशक से अधिक का अनुभव है तथा साइबर सुरक्षा नीति, नेटवर्क में विशेषज्ञता हासिल है। तकनीकी समिति के दूसरे सदस्य केरल के (इंजीनियरिंग स्कूल), अमृता विश्व विद्यापीठम, अमृतापुरी के प्रोफेसर, प्रभारन पी हैं। पीठ ने कहा, ‘उनके पास कंप्यूटर विज्ञान और सुरक्षा क्षेत्र में दो दशक का अनुभव है।’ तकनीकी समिति के तीसरे सदस्य अश्विन अनिल गुमाश्ते हैं जो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई में एसोसिएट प्रोफेसर (कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग) हैं। अदालत ने कहा, ‘उन्हें 20 अमेरिकी पेटेंट मिले हैं और उनके 150 से अधिक पत्र प्रकाशित हुए हैं तथा उन्होंने अपने क्षेत्र में तीन पुस्तकें लिखी हैं।’
समिति यह भी जांच करेगी कि स्पाईवेयर के पेगासस सूट का उपयोग कर भारतीय नागरिकों के व्हाट्सऐप खातों की हैकिंग के बारे में वर्ष 2019 में रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद केंद्र ने क्या कदम उठाए और क्या भारत के नागरिकों के खिलाफ इस्तेमाल के लिए भारत संघ, या किसी भी राज्य सरकार, या किसी भी केंद्रीय या राज्य एजेंसी ने स्पाईवेयर के किसी पेगासस सूट की खरीद की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि गठित समिति जांच में जो उचित समझे, अपनी प्रक्रिया तैयार करने के लिए अधिकृत होने के साथ ही जांच के संबंध में किसी भी व्यक्ति के बयान लेने के लिए अधिकृत है। इसने कहा कि समिति से अनुरोध है कि वह पूरी जांच के बाद रिपोर्ट तैयार करे।
पेगासस क्यों है सुर्खियों में?
जुलाई में बहुराष्ट्रीय स्तर की जांच में जासूसी का एक मामला सामने आया जिसमें यह बात सामने आई कि कई देश अपने नागरिकों की व्यापक स्तर पर कथित अवैध निगरानी करा रहे हैं। पूरी जांच पेगासस स्पाईवेयर के ‘लक्षित’ लोगों की एक सूची पर केंद्रित थी जिनकी जासूसी कराई जा रही थी। पेगासस के जरिये सांसदों, न्यायाधीशों और अन्य लोगों के अलावा तकरीबन 40 भारतीय पत्रकारों की कथित जासूसी कराई जा रही थी।
पेगासस क्या है?
पेगासस इजरायल की कंपनी एनएसओ द्वारा तैयार किए गए एक स्पाईवेयर का नाम है।
इसे कौन खरीद सकता है?
एनएसओ का दावा है कि वह केवल सरकारी एजेंसियों को पेगासस सॉफ्टवेयर बेचती है जिसके लिए विशेष अनुबंध शर्त भी होती है कि स्पाईवेयर का इस्तेमाल केवल संदिग्ध अपराध या आतंकी गतिविधियों की जांच के मामले में किया जा सकता है। हालांकि व्यावहारिक स्तर पर यह शर्त लागू नहीं हैं और कोई भी खरीदार इसका अपने हिसाब से इस्तेमाल कर सकता है।
इसकी लागत क्या होती है?
इसके लाइसेंस की कीमत 2016 में न्यूनतम करीब 650,000 डॉलर थी। इसके अलावा, खरीदार को डेटा हासिल करने और निगरानी आदि के लिए बुनियादी ढांचा स्थापित करने के लिए बड़ी राशि खर्च करनी होती है। इसकी कीमत भी लगभग 350,000 डॉलर हो सकती है।
यह क्या कर सकता है?
स्पाइवेयर कई तरह की अनुमति लेता है जिसमें यह लोकेशन, ईमेल, संपर्क सूचियों तक पहुंचने, स्क्रीनशॉट लेने, मीडिया फाइल में जाने, तत्काल मेसेज और एसएमएस देखने, ब्राउजर की सूची खंगालने के साथ ही फोन के माइक और कैमरों आदि तक पहुंच बना लेता है। पेगासस को दूर से डिलीट भी किया जा सकता है।
इसका पता लगाना बहुत मुश्किल है और एक बार यह डिलीट कर दिया जाए तो इसके कुछ ही निशान मौजूद रहते हैं।