उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न राज्यों द्वारा कोरोनावायरस रोधी टीकों की खरीद के लिए वैश्विक निविदाएं जारी करने के बीच आज केंद्र से पूछा कि उसकी टीका प्राप्त करने की नीति क्या है? इसके साथ ही उसने टीकाकरण से पहले कोविन ऐप पर पंजीकरण कराने की अनिवार्यता पर भी सवाल उठाए और कहा कि नीति निर्माताओं को जमीनी हकीकत से वाकिफ होना चाहिए तथा डिजिटल इंडिया की वास्तविक स्थिति को ध्यान में रखना चाहिए।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट्ट का तीन सदस्यीय विशेष पीठ कोरोना मरीजों को आवश्यक दवाओं, टीकों तथा चिकित्सीय ऑक्सीजन की आपूर्ति से जुड़े मामले का स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने कहा कि केंद्र ने टीकाकरण के लिए कोविन ऐप पर पंजीयन अनिवार्य किया गया है, ऐसे में देश में मौजूद डिजिटल खाई को पाटने के लिए सरकार क्या करेगी? पीठ ने सरकार से पूछा, ‘आप लगातार यही कह रहे हैं कि हालात पल-पल बदल रहे हैं लेकिन नीति निर्माताओं को जमीनी हालात की खबर रहनी चाहिए। आप बार-बार डिजिटल इंडिया का नाम लेते हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में हालात अलग हैं। झारखंड का एक अनपढ़ मजदूर राजस्थान में पंजीयन किस तरह न्यायालय ने कहा, ‘आपको देखना चाहिए कि देश भर में क्या हो रहा है। जमीनी हालात आपको पता होने चाहिए और उसी के मुताबिक नीति में बदलाव किए जाने चाहिए। यदि हमें यह करना ही था तो 15-20 दिन पहले करना चाहिए था।’
सोलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सूचित किया कि पंजीयन अनिवार्य इसलिए किया गया है क्योंकि दूसरी खुराक देने के लिए व्यक्ति का पता लगाना आवश्यक है। जहां तक ग्रामीण इलाकों की बात है तो वहां पर सामुदायिक केंद्र हैं, जहां टीकाकरण के लिए व्यक्ति पंजीयन करा सकते हैं। पीठ ने मेहता से पूछा कि क्या सरकार को ऐसा लगता है कि यह प्रक्रिया व्यवहार्य है। पीठ ने उसने नीति संबंधी दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया।