facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

सुरक्षा गार्डों को पक्की नौकरी की अर्जी खारिज

Last Updated- December 07, 2022 | 8:05 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के एक आदेश को निरस्त कर दिया है।


उसने व्यवस्था दी है कि मध्यस्थ मामले में सिविल जज के निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और इसे सर्वोच्च न्यायालय में लाने की जरूरत नहीं है।

पंजाब कृषि उद्योग कॉरपोरेशन और के एस ढिल्लों के मामले में, जिसमें कि कॉरपोरेशन एक संयुक्त उद्यम स्थापित करना चाहता था, समझौता रद्द होने का माहौल बना और किसी मध्यस्थ के चयन पर आम सहमति नहीं बन पाई। इसलिए कॉरपोरेशन मध्यस्थ के चयन को लेकर चंडीगढ़ के सिविल जज की शरण में गया। इसे खारिज कर दिया गया।

उसके बाद कॉरपोरेशन उच्च न्यायालय की शरण में गया। उच्च न्यायालय में भी उसकी अर्जी को अस्वीकार कर दिया गया। उसके बाद कॉरपोरेशन सर्वोच्च न्यायालय की शरण में गया। इसमें यह व्याख्या दी गई कि कॉरपोरेशन मध्यस्थ और सुलहकारी कानून के तहत आगे बढ़ रहा है।

निर्णय में कहा गया कि अगर किसी पार्टी के पास उच्च न्यायालय के पास जाने का विकल्प हो, तो उसे सीधे तौर पर सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल नहीं करनी चाहिए।

एल ऐंड टी पर दोहरा कर!

सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्रप्रदेश सरकार की अपील को खारिज कर दिया है। इसके तहत लार्सन एंड टुर्बो को राज्य वैट कानून 2005 के अंतर्गत कर अदा करना था। इस निर्माण कंपनी ने एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किया और एक दूसरे कॉन्ट्रेक्टर के माध्यम से एक निर्माण कार्य शुरू किया।

एल ऐंड टी ने उस कॉन्ट्रेक्टर को सभी करों सहित एक तय राशि पर वह कॉन्ट्रेक्ट दे दिया। राजस्व प्राधिकरण ने एल ऐंड टी को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें यह कहा गया कि उसने अपने दूसरे कॉन्ट्रेक्टर का ब्योरा अपने आयकर रिटर्न भरते समय नहीं किया। इसके जवाब में कंपनी ने कहा कि यह आरोप बेबुनियाद है और यहां कॉन्ट्रेक्टर महज एक डीलर है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कंपनी के इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि अगर राजस्व विभाग का तर्क सही साबित होता है, तो अनुच्छेद 366 (29ए) (बी) के तहत कंपनी पर दोहरा कराधान भी हो सकता है।

स्याही उत्पादों पर शुल्क नहीं

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह कैमलिन लिमिटेड के पक्ष को स्वीकार करते हुए कहा कि उसके द्वारा निर्मित लेखन इंक पर उत्पाद शुल्क नहीं लगना चाहिए। उत्पाद प्राधिकरण ने कंपनी के खिलाफ उत्पाद शुल्क लगाने की बात कर रहा था, जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया। प्राधिकार ने कहा था कि मार्कर के साथ कंपनी की अन्य स्याही उत्पादों पर कर लगना चाहिए, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसे निरस्त कर दिया।

हरियाणा सरकार का तर्क सही

सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया है। उच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार और मेसर्स एएस फ्यूल्स लिमिटेड के एक विवाद में बिक्री कर के संबंध में जारी प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया था।

कंपनी ने कुछ सालों के लिए बिक्री कर में रियायत का प्रमाण पत्र प्राप्त किया था और फिर इसे कुछ अवधि के लिए जारी किया गया था। इसके बाद जब कंपनी ने उत्पादन बंद कर दिया, तो इस प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया गया। प्राधिकरण ने कंपनी से ब्याज सहित कर की मांग की।

कंपनी ने कोयले की अनुपलब्धता को उत्पादन बंद करने का कारण बताया। इसके बाद कंपनी से पुराने करों को भी भरने की बात कही गई। उच्च न्यायालय ने कहा कि डिफॉल्टिंग वर्ष में मात्र रियायत प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं था। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के विचारों को स्वीकार किया।

पूर्णकालिक नियुक्ति की मांग

उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र में सुरक्षा गार्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले कारोबारी संगठनों की अपील को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने मांग की थी कि गार्डों को अपने नियोक्ताओं से पूर्णकालिक नियुक्ति मिलनी चाहिए।

क्रांतिकारी सुरक्षा रक्षक बनाम भारत संचार निगम लिमिटेड के मामले में कारोबारी संगठनों ने तर्क दिया था कि एक बार अगर महाराष्ट्र निजी सुरक्षा गार्ड कानून 1981 के तहत गठित सुरक्षा गार्ड बोर्ड गार्डों को किसी नियोक्ता के पास भेजता है और नियोक्ता उन्हें नियुक्त कर लेता है तो उन गार्डों को दोबारा से किसी नियोक्ता के पास नहीं भेजा जा सकता और न ही उन्हें वापस बुलाया जा सकता है क्योंकि वे मूल नियोक्ता के कर्मचारी हो जाते हैं।

बंबई उच्च न्यायालय ने पहले भी कई दूसरे मामलों में कारोबारी संगठनों की दलीलें ठुकराई थीं। इस बार भी उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। आगे जाकर उच्चतम न्यायालय ने भी उनकी अपील खारिज कर दी।

First Published - September 7, 2008 | 11:15 PM IST

संबंधित पोस्ट