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आवासीय परिसंपत्ति के निर्माण और बिक्री पर सेवा कर

Last Updated- December 10, 2022 | 1:56 AM IST

संपत्ति के निर्माण और बिक्री पर सेवा कर लगाए जाने का मुद्दा रियल एस्टेट और निर्माण उद्योग के अलावा आवासीय संपत्ति के खरीदारों के लिए भी चिंता का विषय बना हुआ है।
केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) ने 29 जनवरी, 2009 को एक सर्कुलर (परिपत्र) जारी किया था जिसमें इस मामले पर बोर्ड का नजरिया स्पष्ट किया गया था। 

हालांकि यह सर्कुलर स्वागत योग्य है, क्योंकि इसमें निर्दिष्ट परिस्थितियों में सेवा कर से राहत दी गई है। लेकिन यह देखना अभी बाकी है कि इसे जमीनी आधार पर किस तरह से कार्यान्वित किया जाएगा।
हालांकि सर्कुलर पर नजर डालने से पहले उन तरीके पर विचार करना उपयुक्त होगा जिनमें सेवा कर अधिकारियों ने आवासीय संपत्ति से जुड़ी निर्माण गतिविधियों के लिए कर की मांग की थी। 

शुरू में यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि कई मामलो में निर्माण गतिविधि कार्य अनुबंध की प्रकृति में आती है और उस पर बिक्री कर या वैट पूरी तरह लागू है।
दरअसल, आवासीय संपत्ति के निर्माण और बिक्री की गतिविधियों को सेवा कर के दायरे में लाए जाने का विवाद ‘के रहेजा डेवलपमेंट कॉरपोरेशन बनाम स्टेट ऑफ कर्नाटक (2005) 1 एसटीटी 178 (एससी)’ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की वजह से पैदा हुआ है।
यह फैसला कर्नाटक बिक्री कर अधिनियम, 1957 के प्रावधानों पर आधारित था। इस फैसले पर एक खास समझौते के आधार पर सेवा कर महानिदेशक ने फरवरी 2006 में एक सर्कुलर जारी किया था जिसमें कहा गया कि आवासीय संपत्ति का निर्माण और बिक्री सभी परिस्थितियों में कर योग्य है।
इस सर्कुलर का खास मतलब है कि सभी परिस्थितियों, जब डेवलपर या बिल्डर ऐसी गतिविधियों में लिप्त रहा हो, भले ही तब अचल संपत्ति की बिक्री की गई हो, में सेवा कर अनिवार्य रूप से लागू होगा। यह सर्कुलर एक महत्त्वपूर्ण मुकदमे और बंबई उच्च न्यायालय में एक याचिका के लंबित मामले से संबद्ध था।
इस बीच, सीबीईसी ने अगस्त 2007 में एक स्पष्टीकरण जारी किया था जिसमें आवासीय संपत्ति के निर्माण के मामले में स्थिति स्पष्ट की गई थी। इसमें कहा गया था कि एक ठेकेदार, जो एक बिल्डर की ओर से निर्माण गतिविधि में लगा हुआ है और अंत में बिल्डर इस आवासीय संपत्ति की विभिन्न खरीदारों को बिक्री करता है तो वह निर्माण गतिविधि के संबंध में सेवा कर के दायरे से बाहर है।
यदि किसी ठेकेदार को कर-मुक्त कर दिया जाता है तो बिल्डर से आवासीय परिसंपत्ति की खरीदने वालों से सेवा कर वसूले जाने का अधिकार नहीं है। सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि अगर बिल्डर स्वयं निर्माण गतिविधि से जुड़ा होता है और निर्मित फ्लैटों की बिक्री खरीदारों को करता है तो वह सेवा कर की देयता के दायरे में नहीं आएगा।
हरेकृष्णा डेवलपर्स (2008-टीआईओएल-03-एआरए-एसटी) के मामले में एडवांस रूलिंग अथॉरिटी द्वारा फैसला सुनाया गया कि आवासीय परिसर के निर्माण की परिभाषा प्रासंगिक और संबद्ध गतिविधियों की परिधि में शामिल है।
अगस्त 2007 का सीबीईसी सर्कुलर एएआर को ध्यान में रख कर जारी किया गया था, लेकिन विरोध के साथ यह कहा गया कि इसमें स्पष्टता का अभाव है। किसी भी घटना में यह उस तर्क पर निर्भर करेगा कि ऐसी स्थितियों में डेवलपर को सेवा कर से मुक्त किए जाने की जरूरत नहीं है।
मैगस कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2008-टीआईओएल-321-एचसी-गुव-एसटी) मामले में गौहाटी उच्च न्यायालय ने कहा था कि निर्मित इकाई की खरीद के लिए किया गया समझौता, जिसमें निर्माण की अवधि के दौरान खरीद कीमत के आधार पर भुगतान की अदायगी किस्तों में किए जाने का उल्लेख किया गया है, एक कार्य अनुबंध नहीं है, क्योंकि संबद्ध पार्टियों का इरादा हमेशा पूरी तरह निर्मित अचल संपत्ति की खरीद-बिक्री में कारोबार करना था।
उपरोक्त कानूनी स्थिति के बावजूद भी इस मामले पर मुकदमेबाजी अनियंत्रित थी और अधिकारी बिल्डरडेवलपर द्वारा चलाई जाने वाली विशेष गतिविधियों पर कर थोपे जाने की संभावना लगातार तलाशते रहे हैं।
ताजा सर्कुलर में यह स्पष्ट किया गया कि बिल्डर या डेवलपरों द्वारा संपत्ति की बिक्री से पूर्व चलाई जाने वाली गतिविधियां ग्राहकों को मुहैया कराई जाने वाली सेवाएं नहीं हैं। इसलिए बिल्डरोंप्रमोटरों की निर्माण गतिविधियों के संबंध में सेवा कर लागू नहीं होगा। इस सर्कुलर से निर्माण उद्योग और अचल संपत्ति के खरीदारों को लाभ पहुंचने की उम्मीद है।
लेखक प्राइसवाटरहाउस कूपर्स में अप्रत्यक्ष कर मामलों के विशेषज्ञ हैं।

First Published - February 22, 2009 | 11:40 PM IST

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