शीर्ष न्यायालय तीन नए कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा सकता है। न्यायालय ने पिछले एक महीने से दिल्ली और उसकी सीमाओं पर चल रहे किसानों का प्रदर्शन समाप्त करने के लिए एक समिति गठित करने का भी संकेत दिया। यह विशेष अधिकार प्राप्त समिति आंदोलन खत्म कराने के लिए इन ‘विवादित’ कानूनों पर विचार करेगी। तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली और दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले किसानों को हटाने के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन के पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए संकेत दिए कि अगर सरकार इन कानूनों का अमल स्थगित नहीं करती है तो वह उन पर रोक लगा सकती है।
उच्चतम न्यायालय ने इन कानूनों को लेकर किसानों के विरोध प्रदर्शन से निबटने के तरीके पर केंद्र को आड़े हाथों लिया और कहा कि किसानों के साथ उसकी बातचीत के तरीके से वह बहुत निराश है। न्यायालय ने कहा कि अब तक सरकार और किसान प्रतिनिधियों के बीच आठ चरणों की वार्ता बेनतीजा रही है, इसलिए वह अब सरकार को मामले का हल खोजने के लिए और समय नहीं दे सकता। न्यायालय ने कहा कि इस विवाद का समाधान खोजने के लिए वह अब एक समिति गठित करेगा।
सूत्रों ने कहा कि केंद्र सरकार अब इस विषय पर आगे बढऩे से पहले न्यायालय के आदेश का इंतजार कर सकता है, जो अगले एक या दिनों में आ सकता है। इस बारे में वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा, ‘हम न्यायालय के अंतिम आदेश की प्रतीक्षा करेंगे। अगर न्यायालय चाहे तो सरकार और किसान पक्ष दोनों अपनी तरफ से कुछ नाम सुझा सकते हैं और उन्हें मिलाकर एक समिति गठित की जा सकती है।’ अधिकारी ने कहा कि मौजूदा हालात में यह सबसे श्रेष्ठ विकल्प लग रहा है।
विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों का पक्ष रखने वाले वकील से न्यायालय ने पूछा कि क्या वे महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को घर वापस जाने के लिए मना सकते हैं। इसके जवाब में वकील ने कहा कि वे जल्द ही न्यायालय को इस बारे में अवगत कराएंगे।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने टिप्पणी की, यह सब क्या हो रहा है? पीठ ने कहा कि वह बातचीत की प्रक्रिया से बेहद निराश हैं। पीठ ने कहा, ‘हम अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ नहीं हैं। आप हमें बताएं कि क्या सरकार इन कृषि कानूनों को स्थगित रखने जा रही है या हम ऐसा करेंगे। हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि केंद्र इस समस्या और किसान आंदोलन को नहीं सुलझा पाया।’ महाधिवक्ता के के वेणुगोपाल ने दलील दी कि किसी भी कानून पर उस समय तक रोक नहीं लगाई जा सकती जब तक न्यायालय यह नहीं महसूस करे कि इससे मौलिक अधिकारों या संविधान की योजना का हनन हो रहा है। पीठ ने यह भी आशंका जताई कि इस आंदोलन के दौरान शांतिभंग करने वाली कुछ घटनाएं भी हो सकती हैंन्यायालय ने कहा कि वह किसी भी कानून तोडऩेवाले को संरक्षण देने नहीं जा रहे हैं। हम जान माल के नुकसान को बचाना चाहते हैं।