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केंद्र को शीर्ष न्यायालय का नोटिस

Last Updated- December 12, 2022 | 5:36 AM IST

स्वास्थ्य सेवा तंत्र की गंभीर स्थिति से चिंतित उच्चतम न्यायालय ने देश में दूसरी कोविड-19 लहर से पैदा हुई स्थिति का गुरुवार को स्वत: संज्ञान लिया। इस समय में देश में तबाही जैसी स्थिति बनी हुई है और लाखों लोग जरूरी दवाएं और ऑक्सीजन पाने के लिए काफी मशक्कत कर रहे हैं।
उच्चतम न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह ऑक्सीजन की अनियमित आपूर्ति, आवश्यक दवाओं की आपूर्ति, टीकाकरण की विधि और तरीके तथा न्यायिकआदेश के बजाय लॉकडाउन लगाने के लिए केवल राज्य को अधिकार देने जैसे चार महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर जवाब दे क्योंकि लॉकडाउन के न्यायिक आदेश में उच्च न्यायालय द्वारा मानवाधिकारों के दुरुपयोग की कोई मिसाल नहीं मिलती।
देश के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे शुक्रवार सुबह इस मामले की सुनवाई करेंगे और इस मामले में उनके सहयोग के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे को नियुक्त किया गया है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘इस वक्त अराजकता का माहौल बना हुआ है। कुछ लोग असंयमी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं और यहां तक किउच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने भी अपना धैर्य खो दिया है। अदालत ने यह भी संज्ञान लिया कि कम से कम छह उच्च न्यायालय, हताश नागरिकों द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे हैं क्योंकि देश भर में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति चरमरा गई।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘उच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का सही प्रयोग कर रहे हैं लेकिन इससे काफी भ्रम की स्थिति बन रही है और संसाधनों को भी सही जगह पहुंचाने में दिक्कत आ रही है। एक उच्च न्यायालय सोचता है कि अन्य अधिकार क्षेत्रों के मुकाबले यह उनकी ज्यादा प्राथमिकता हो सकती है लेकिन यह संभवत: निष्पक्ष नहीं हो सकता है।’ अदालत के पीठ ने कहा कि उसका इरादा किसी भी राज्य के आदेश के अधिकार को नजरअंदाज करने का नहीं है। उन्होंने कहा, ‘अगर केंद्र के पास कोई राष्ट्रीय योजना तैयार की गई थी तो वह संबंधित उच्च न्यायालयों के समक्ष इसे पेश कर सकता था।’
चूंकि राज्य और केंद्र सरकारें देश भर में मरीजों के जीवन की रक्षा करने में विफल रही हैं, इसलिए कई उच्च न्यायालयों, दिल्ली, बंबई, कलकत्ता, कर्नाटक, तमिलनाडु, सिक्किम, मध्य प्रदेश और इलाहाबाद उच्च न्यायालयों ने अपने-अपने राज्यों में कोविड प्रबंधन पर जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए स्थिति को नियंत्रित करने में विफल रहने पर संबंधित राज्य सरकारों से अपनी नाराजगी जताई है।
कई मरीजों ने कई स्थानों पर कोविड जांच कराने में अपनी असमर्थता जताई खासतौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य में जिसके बाद न्यायिक हस्तक्षेप की बात आई। कर्नाटक उच्च राज्य में कोविड-19 संक्रमित मरीजों ने विभिन्न कठिनाइयों की वजह से अदालत को पत्र लिखा था जिसके बाद कर्नाटक उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कोविड की स्थिति पर सुनवाई की। अदालत ने कहा कि बेड मिलने और जांच कराने का मौजूदा तंत्र काफी बोझिल है और कर्नाटक सरकार से एक सप्ताह के भीतर अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है।
इस बीच, दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन अस्पतालों द्वारा दायर याचिकाओं पर भी सुनवाई की जिन्होंने ऑक्सीजन की कमी और लॉजिस्टिक्स में कमी की शिकायत की थी क्योंकि पड़ोस की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राज्य सरकारों हरियाणा और उत्तर प्रदेश ने दिल्ली में ऑक्सीजन ले जाने वाले टैंकरों को रोक दिया। दिल्ली में विपक्षी दल आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र को निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करे कि राष्ट्रीय राजधानी को आवंटन आदेश के अनुरूप निर्बाध रूप से ऑक्सीजन की आपूर्ति हो। अदालत ने कहा कि केंद्र के ऑक्सीजन आवंटन आदेश का कड़ा अनुपालन होना चाहिए और ऐसा न करने पर आपराधिक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली के पीठ ने कहा कि हरियाणा जैसे दूसरे राज्यों के संयंत्रों से दिल्ली को ऑक्सीजन आवंटन के केंद्र के फैसले का स्थानीय प्रशासन द्वारा सम्मान नहीं किया जा रहा है और इसे तत्काल सुलझाने की जरूरत है। अदालत ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह ऑक्सीजन ला रहे वाहनों को पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराये और समर्पित कॉरिडोर स्थापित करे।
बंबई उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ नागरिकों और बिस्तर से उठने में असमर्थ नागरिकों के लिए घर-घर जाकर टीकाकरण की मांग करने वाली याचिका पर भी सुनवाई जारी रखी है। इस मामले की सुनवाई 6 मई तक के लिए स्थगित कर दी गई। इससे पहले, सरकारी अस्पतालों की खस्ता हालत से चिंतित इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के पांच शहरों में पूर्ण लॉकडाउन लगाने का आदेश दिया था और राज्य द्वारा कोविड की स्थिति के कुप्रबंधन को लेकर नाराजगी जताई क्योंकि प्राइवेट लैब्स को कोविड जांच की भी अनुमति नहीं है। इलाहाबाद के खंडपीठ ने सख्त आदेश देते हुए कहा था कि वह तमाशबीन नहीं रहेगी क्योंकि महामारी के दौरान भी लोगों की आवाजाही पर नियंत्रण नहीं लगाना राज्य सरकारों की अपनी राजनीतिक मजबूरी भी है।  
हालांकि इस आदेश के एक दिन बाद ही उच्चतम न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी थी। दो अन्य उच्च न्यायालयों, गुजरात और तेलंगाना ने भी कोविड मामलों में वृद्धि और आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी की ओर संज्ञान लिया है।
तेलंगाना उच्च न्यायालय ने भी राज्य को पूर्ण लॉकडाउन लगाने के फैसले पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। गुरुवार को मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने ऑक्सीजन की कमी के साथ-साथ कोविड इलाज के लिए अहम दवा रेमडेसिविर को कहीं और भेजने से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट का भी स्वत: संज्ञान लिया। मद्रास उच्च न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल के निवेदन को दर्ज किया कि तमिलनाडु में कभी भी ऑक्सीजन की आपूर्ति की कमी नहीं दिख सकती है, भले ही यहां संक्रमण के अप्रत्याशित मामले क्यों न दर्ज किए जाएं।
तमिलनाडु सरकार ने यह आश्वासन दिया है कि सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त बेड उपलब्ध होंगे और प्राइवेट अस्पतालों में ज्यादा ही बेड उपलब्ध होंगे।

First Published - April 22, 2021 | 11:18 PM IST

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