भारत की जेलों में 2016 और 2020 के बीच कैदियों की संख्या बढ़कर 3,71,848 हो गई है। कैदियों की यह संख्या देश की जेलों की 4,14,033 की कुल क्षमता का 90 फीसदी है। इसी बीच जेल में मौजूद विचाराधीन कैदियों की संख्या में 26 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इनमें से एक-चौथाई लोग एक साल से जेल में हैं। अभी विचाराधीन कैदियों के वर्ष 2020 तक के ही नवीनतम आंकड़े उपलब्ध है।
विचाराधीन कैदियों की संख्या ऐतिहासिक रूप से बहुत अधिक बढ़ गई है। यह संख्या ऐसे समय बढ़ी है जब न्यायालयों (जिला अदालतों, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय) में न्यायाधीशों के अधिकांश पद खाली पड़े हुए है। ऐसे में इस साल 1 अप्रैल तक प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर अदालतों में न्यायाधीशों का अनुपात 14.4 है। वही यूरोप में प्रत्येक 10 लाख जनसंख्या की आबादी पर 210 न्यायाधीश और अमेरिका में 150 न्यायाधीश हैं।
अब से 18 साल पहले न्यायमूर्ति वी एस मल्लीमठ की अध्यक्षता में आपराधिक न्याय प्रणाली के सुधारों पर बनी समिति ने प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर भारत के न्यायाधीशों की संख्या 50 तक बढ़ाने की सिफारिश की थी।
केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने जयपुर में 18वीं अखिल भारतीय विधिक सेवा प्राधिकरण बैठक में कहा कि भारत की अदालतों में 5 करोड़ लंबित मामले हैं और दो साल में 2 करोड़ मामले निपटाने का लक्ष्य रखा गया है।
इसी कार्यक्रम में भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण ने न्यायपालिका में बड़ी संख्या में खाली पदों और अपर्याप्त बुनियादी सुविधाओं को इस अव्यवस्था के लिए जिम्मेदार ठहराया। न्यायालयों में बहुत पद खाली हैं। निचली अदालतों में कुल 24,521 स्वीकृत पदों में से 5,180 यानी 21 फीसदी पद खाली हैं।
उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में 1,108 स्वीकृत पदों मे से 34.4 फीसदी खाली हैं। कानून मंत्री के दो साल में दो करोड़ मामलों के निपटारे के लक्ष्य को हासिल करने के लिए देश के 20,068 न्यायाधीशों में से प्रत्येक न्यायाधीश को विभिन्न अदालतों में 499 मामलों को एक साल में निपटाना होगा।
लंबित मामलों को देखते हुए यह एक लंबा आदेश लग सकता है। नैशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड के अनुसार निचली अदालतें 4 करोड़ 20 लाख मामलों से जूझ रही हैं। उच्च न्यायालयों के समक्ष 5 करोड़ 90 हजार और उच्चतम न्यायालय के समक्ष 72,062 मामले लंबित हैं।