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ईएसआई फंड के लिए इकाइयां हो सकती हैं एक

Last Updated- December 07, 2022 | 12:05 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह एक निर्णय सुनाया कि अगर कई प्रतिष्ठानों में क्रियाशीलता को लेकर एकता है, प्रबंधन में एकता है, वित्तीय एकता है, भौगोलिक निकटता है, निरीक्षण और नियंत्रण में एकता है और अगर उद्देश्य भी समान हो, तो कर्मचारी राज्य बीमा कानून के तहत उसे एक इकाई के तौर पर माना जा सकता है।


यह तब भी लागू हो सकता है, जब उस प्रतिष्ठान की इकाइयों ने बिक्री कर कानून, दुकान और प्रतिष्ठान कानून और आयकर कानून के तहत अलग अलग पंजीकरण क्यों न करवाया हो। यह निर्णय तब सुमंगली बनाम ईएसआई के मामले में आया। मामला था कि एक ही परिसर में कंपनी की तीन इकाइयां चल रही थी और उनका पंजीकरण अलग अलग किया गया था। लेकिन कंपनी ईएसआई कोष अनुदान के लिए सारे कर्मचारियों को एक नहीं कर रही थी। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने कंपनी के इस रुख को नकार दिया।

गोदरेज इंडस्ट्रीज की अपील स्वीकृत

सर्वोच्च न्यायालय ने बम्बई उच्च न्यायालय के फैसले का खंडन करते हुए इस फैसले को खारिज कर दिया है कि गोदरेज के हेयर डाई पर 105 प्रतिशत उत्पाद शुल्क लगाया जाए। वैसे इस बात पर भी लंबे समय तक विवाद रहा था कि यह हेयर लोशन है या डाई। कंपनी ने यह तर्क दिया था कि वह एक जहरीला डाई था और उसके इस्तेमाल करने के लिए अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। वह एक लोशन मात्र नहीं था। सर्वोच्च न्यायालय इस बात से सहमत था और उसने कंपनी की अपील को स्वीकृत कर लिया। उसी समय एक नियम बनाया गया, जिसमें हेयर डाई के स्टेटस के बारे में संशोधन किया गया।

सीमा शुल्क प्राधिकार के आदेश रद्द

पिछले सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय ने सीमा शुल्क प्राधिकार के निर्णय को रद्द करते हुए इंडियन रेयॉन एंड इंडस्ट्रीज के तर्क को खारिज करते हुए कहा कि अगर दो अधिसूचनाओं के आधार पर लाभ मिल रहा हो तो कोई भी कंपनी इनमें से एक के आधार पर ही लाभ ले सकती है। कंपनी को इंट्री बिल के मामले में तीन बार कारण बताओ नोटिस भेजा जा चुका था। कंपनी ने दूसरी अधिसूचना के बारे में मांग की जब पहली अधिसूचना उपयुक्त नहीं रह गयी। न्यायालय ने इस अपील को लेकर राजस्व अथॉरिटी के पक्ष को स्वीकार किया और कहा कि कंपनी को एक अधिसूचना के तहत ही लाभ मिल सकता है और विकल्प बदल भी नहीं सकता है।

पेशगी धन की जब्ती अवैध

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह डीएलएफ यूनिवर्सल लि. को कहा कि वे एकता सेठ के द्वारा दिल्ली में एक फ्लैट खरीदने के लिए चुकाई गई पेशगी की रकम का आधा हिस्सा वापस करे। एकाधिकार एवं प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार आयोग ने कहा था कि ये कंस्ट्रक्शन कंपनियां फ्लैट की अनुमानित रकम मनमाने ढंग से तय कर ग्राहकों से लेती हैं, जो सही नहीं है। इसमें यह भी कहा गया था कि पेशगी की रकम को जब्त करना अवैध है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुमानित राशि की मांग समझौते का एक हिस्सा है और पेशगी की अदायगी कार्य अनुबंध के तहत ही होना चाहिए। बिना किसी कानून का हवाला देते हुए न्यायालय ने पेशगी की रकम का आधा हिस्सा लौटाने का आदेश दे दिया।

टाटा फाइनेंस की याचिका खारिज

सर्वोच्च न्यायालय ने टाटा फाइनेंस की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कंपनी ने उपभोक्ता अदालत के उस आदेश के खिलाफ मामला दायर किया था, जिसमें यह कहा गया था कि अमुक व्यक्ति को गाड़ी के  पुनराधिकार प्राप्त करने के लिए 7.55 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करे।

कंपनी के द्वारा दायर याचिका में राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत और महाराष्ट्र राज्य उपभोक्ता आयोग के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत कंपनी को 7.55 लाख से ज्यादा की रकम, 50,000 रुपये का अतिरिक्त शुल्क 15 प्रतिशत ब्याज के साथ देने को कहा गया था। उपभोक्ता आयोग ने इस बात को महसूस किया था कि टाटा कंपनी ने उस व्यक्ति से गलत तरीके से गाड़ी वापस करवा ली थी और उस आदमी की एक बड़ी बचत राशि उसमें बर्बाद हो गई थी।

सेल के खिलाफ अपील खारिज

काल्टा खदान में ट्रांसपोर्टिंग लौह अयस्क की निविदा में एक कांट्रेक्टर ने स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस अपील को खारिज कर दिया। दरअसल टेक्नो-कमर्शियल और प्राइस बिड क्राइटेरिया के तहत इस निविदा में किसी को भी योग्य नहीं पाया गया था और इसलिए सेल ने पांच बार निविदा आमंत्रित करवाई थी। निविदा देने वालों में समझौता के आधार पर उड़ीसा उच्च न्यायालय ने एक पार्टी को यह कांट्रेक्ट दे दिया था। इस प्रक्रिया को बाद में चुनौती दी गई, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस अपील को खारिज कर दिया।

First Published - July 21, 2008 | 12:32 AM IST

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