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खेती की जमीन का उद्योग के लिए इस्तेमाल पड़ा महंगा

Last Updated- December 10, 2022 | 11:21 PM IST

हरियाणा में उद्योग के लिए खेती की जमीन का इस्तेमाल करने वाली छोटी एवं मझोली इकाइयों को राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाले कर लाभ से वंचित रहना पड़ेगा।
राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला दिया है। राज्य सरकार ने ऐसी इकाइयों से बिक्री कर का लाभ वापस ले लिया था। बड़ी तादाद में लघु इकाइयों ने इस फैसले को चुनौती दी। वे उच्च न्यायालय की शरण में चली गईं।
राज्य सरकार ने यह दलील दी कि इकाइयों ने भूमि इस्तेमाल में बदलाव की अनुमति हासिल करने के लिए टाउन ऐंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट से लिए जाने वाले प्रमाणपत्र पेश नहीं किए। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के तर्क को खारिज कर दिया और कर लाभ वापस लिए जाने के उसके आदेश को अवैध करार दे दिया।
राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। सर्वोच्च न्यायालय ने उसकी अपील स्वीकार करते हुए कहा कि ये इकाइयां न सिर्फ प्रमाण पत्र पेश करने में विफल रहीं, बल्कि इनमें से कुछ इकाइयों ने औद्योगिक उद्देश्य के लिए जमीन के इस्तेमाल से जुड़े तथ्यों को भी छिपाया। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के फैसले का समर्थन किया।
मोटर दुर्घटना
सर्वोच्च न्यायालय ने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी की  अपील स्वीकार कर ली। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस बीमा कंपनी को आदेश दिया था कि वह सड़क दुर्घटना के भुक्तभोगी को मुआवजा दे। यह व्यक्ति एक जीप में नि:शुल्क यात्रा कर रहा था। एक ट्रक ने इस जीप को टक्कर मार दी और उस यात्री की मौत हो गई।
मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाया कि ट्रक मालिक इस व्यक्ति के परिवारजनों को 3 लाख रुपये के मुआवजा का भुगतान करे। लेकिन मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक अपील पर सुनवाई करते हुए यह देनदारी ट्रक मालिक के बजाय बीमा कंपनी पर थोप दी।
बीमा कंपनी सर्वोच्च न्यायालय की शरण में चली गई और उसने यह दलील दी कि मृतक व्यक्ति बीमा के दायरे में नहीं था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने मुआवजे की जिम्मेदारी बीमा कंपनी पर थोपे जाने के वक्त कोई कारण स्पष्ट नहीं किया। इसके अलावा मृतक व्यक्ति नि:शुल्क यात्रा कर रहा था और वह बीमित नहीं था।
अस्थायी कर्मचारी
सर्वोच्च न्यायालय ने पीवीके डिस्टिलरीज की अपील पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले को निरस्त कर दिया। मामला यह था कि पीवीके डिस्टिलरीज ने एक कर्मचारी को यह कहते हुए नौकरी से निकाल दिया कि वह एक ठेकेदार द्वारा रखा गया अनियत कर्मचारी था। श्रम अदालत ने पाया कि कर्मचारी महेंद्र राम पूर्ण रोजगार और पिछला वेतन पाने का हकदार था।
इलाहबाद उच्च न्यायालय ने भी इस तर्क का समर्थन किया। लेकिन डिस्टिलरी ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर कर दी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उस इकाई पर ऐसा भार थोपा जाना अनुचित है जो रुग्ण हो गई और लंबे समय तक बंद रही तथा नए प्रबंधन ने कामकाज संभाल लिया। सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि यह कर्मचारी उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत पिछले वेतन का महज 50 फीसदी पाने का हकदार है।
होर्डिंग के लिए मुआवजा
एक विज्ञापन कंपनी द्वारा बनाए गए होर्डिंग और स्काई साइन को हटाए जाने का मामला बीमा दावे के दायरे में आ सकता है। ‘हाबिया एडवरटाइजिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस लिमिटेड’ मामले में विज्ञापन कंपनी ने म्युनिसिपल अधिकारियों द्वारा उसके होर्डिंग को हटाए जाने के खिलाफ आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन उसे विफलता हाथ लगी।
इसके बाद वह बीमा कंपनी से लगभग 20 लाख रुपये का मुआवजा वसूलने के प्रयास में राज्य उपभोक्ता आयोग में चली गई। उसके दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि जब विज्ञापन कंपनी आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की शरण में जा चुकी है तो फिर वह एक ही मुद्दे को उपभोक्ता आयोग के समक्ष नहीं उठा सकती।
इस तरह राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष भी विज्ञापन कंपनी की अपील को ठुकरा दिया गया। इसके बाद वह सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गई। सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि बीमा अनुबंध के तहत विज्ञापन कंपनी बीमा कंपनी से मुआवजे का दावा बरकरार रख सकती है।

First Published - April 6, 2009 | 1:31 PM IST

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