हालांकि इन एशियाई देशों में विदेशी मुद्रा के भंडार पिछले चार माह से ही लगातार कम होते जा रहे हैं। अर्थशास्त्री इस स्थिति को अधिक गंभीर नहीं मान रहे हैं। उन्होंने कहा कि दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में एक दशक पहले आए आर्थिक संकट की पुनरावृत्ति होने की उम्मीद बिलकुल कम है क्योंकि इन देशों के पास विदेशी मुद्रा अच्छी खासी मात्रा में है। सिटीग्रुप ग्लोबल के बाजार विशेष मोह सियांग सिम ने बताया कि मुद्रा के अनियंत्रित प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए रिजर्व बैंकों ने अपनी ब्याज दरों में इजाफा किए जाने से ही इन एशियाई देशों में विदेशी मुद्रा की पर्याप्त मात्रा में एकत्र नहीं हुई है।
विदेशी मुद्रा के भंडार में आई इस कमी का सबसे बड़ा कारण यह है कि विदेशी निवेशक यहां के शेयर बाजार से अपना धन निकाल रहे हैं। साथ ही यहां की केंद्रीय बैंके अपनी-अपनी स्थानीय मुद्रा के अवमुल्यन को रोकने के लिए डॉलर बेच रहीं हैं। भारत में अगस्त के माह में विदेशी मुद्रा के भंडार 10 अरब डॉलर घटकर 289.46 अरब डॉलर ही रह गया। इसकी सबसे बड़ी वजह रिजर्व बैंक द्वार रुपये का अवमूल्यन रोकने के लिए बाजार में डॉलर झोंकना रहा। हालांकि इसके बाद भी डॉलर के मुकाबले रुपया 1.3 रुपये गिरा। इसके साथ ही जारी वर्ष में अब तक विदेशी संस्थागत निवेशक बाजार से 8 अरब डॉलर निकाल चुके हैं। स्टैंडर्ड एंड पुअर्स रेटिंग और एडवाइजरी फर्म के मुख्य अर्थशास्त्री सुधीर गोकरण ने बताया कि रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप के नतीजे सार्थक रहे हैं और यह उचित भी रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस स्थिति पर तेल की बढ़ी कीमतें और वर्तमान वित्तीय संकट इस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। स्थानीय मुद्रा के अवमुल्यन के साथ विदेशी मुद्रा के भंडार के कम होने की स्थिति 1997 में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में आए संकट के समान ही है। हालांकि दोनों स्थितियों में प्रमुख अंतर यह है कि अब सभी देश काफी तेज गति से विदेशी मुद्रा के भंडारों में इजाफा किया है और छोटी अवधि के बाहरी डेट कम कर लिए हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष(आईएमफ) के भारत में स्थानीय प्रतिनिधि संजय पार्थ ने बताया कि अब बाजार में आने वाली प्रमुख समस्याएं बाहर से आ रहीं हैं और एशियाई बाजार में कहीं और आई सुनामी की लहरों का सामना कर रहे हैं। यहां सबसे अहम बात यह है कि केंद्रीय बैंकों द्वारा विनिमय दर पर किए जा रहे प्रभावों का असर ज्यादा व्यापक नहीं है। वे रिजर्व बैंकों द्वारा अपनी मुद्रा को अवमुल्यन से बचाने के लिए डॉलर बेचे जाने पर टिप्पणी कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पहले आए संकट की प्रमुख वजह विदेशी पूंजी का जोखिम के क्षेत्रों में निवेश और कमजोर घरेलू वित्तीय संस्थानों का मुद्रा में आ रहे उतार चढ़ाव को नियंत्रित करने में नाकामी एवं घरेलू क्रेडिट विस्तार था। इस समय ये आठ एशियाई अर्थव्यवस्थाएं गुईडोटी नियम का पालन कर रहीं हैं। यह नियम कहता है कि अगर देशों के पास इतनी मात्रा में विदेशी मुद्रा होनी चाहिए कि वह अपने विदेशी कर्जों को 12 माह के भीतर ही उतार सके। इसी सिध्दांत पर चलते हुए भारत ने अपने व्यापार घाटे और शॉर्ट टर्म ऑब्लिगेशन के बाद 180 अरब डॉलर का सरप्लस रिजर्व रखा है।