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आरआईएल में एक-चौथाई इक्विटी योजनाओं का 5 फीसदी से कम निवेश

Last Updated- December 15, 2022 | 3:23 AM IST

प्रत्येक चार में से एक डाइवर्सिफाइड इक्विटी योजनाओं का जुलाई के अंत तक अपने कुल निवेश का 5 प्रतिशत से कम रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) में निवेश था। मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी का शेयर अपने मार्च के निचले स्तरों से दोगुना और दिसंबर 2016 के बाद से तिगुना हो गया है। कंपनी का 31 जुलाई तक निफ्टी-50 सूचकांक पर 14 प्रतिशत का भारांक था और उसका बाजार पूंजीकरण भारत की सूचीबद्घ कंपनियों के कुल बाजार पूंजीकरण के 10 प्रतिशत के आसपास था।
प्राइमएमएफडेटाबेस डॉटकॉम के आंकड़ों से पता चलता है कि 180 इक्विटी योजनाओं (इंडेक्स फंडों, एक्सचेंज-ट्रेडेड फंडों और सेक्टोरल/थीमेटिक फंडों समेत) में से 44 का आरआईएल में निवेश 5 प्रतिशत से कम था। इनमें 16 लार्ज-कैप और लार्ज एवं मिड-कैप फंड भी शामिल हैं। करीब आधी योजनाओं की इस शेयर में 7 प्रतिशत से कम भागीदारी है।
अन्य योजनाओं में 26 की आरआईएल में निवेश भागीदारी 10 प्रतिशत से ज्यादा थी। टाटा लार्ज कैप फंड और टाटा इंडिया टैक्स सेविंग्स फंड की 14-14 प्रतिशत प्रति हिस्सेदारी दर्ज की गई। 180 योजनाओं में से करीब 110, या 60 प्रतिशत से ज्यादा की आरआईएल में 5 से 10 प्रतिशत के बीच शेयरधारिता थी।
आरआईएल में शेयरधारिता में वृद्घि फंड प्रबंधकों के लिए चुनौती खड़ी कर रही है, क्योंकि सक्रिय फंडों को किसी खास योजना में एक शेयर में 10 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी रखने की अनुमति नहीं है। इसके अलावा, व्यक्तिगत तौर पर फंड हाउस इस सीमा को नरम बना सकते हैं, जो खास सीमा से ऊपर शेयर खरीद से रोकती है।
इसका मतलब है कि यदि भारांक 10 प्रतिशत के पार जाता है तो फंड प्रबंधकों को शेयर की तेजी में भागीदार बनने का अवसर नहीं मिलेगा। विश्लेषकों का मानना है कि आरआईएल में ज्यादा भारांक से वे लार्ज-कैप योजनाएं अधिक प्रभावित होंगी जो अपने कुल निवेश का 80 प्रतिशत हिस्सा बाजार मूल्य के लिहाज से प्रमुख-100 शेयरों में लगाती हैं।

First Published - August 17, 2020 | 12:19 AM IST

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