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हरेक पोर्टफोलियो के लिए बढ़िया हैं बैंकिंग फंड

Last Updated- December 07, 2022 | 5:42 AM IST

पिछले कुछ वर्षों में बैंकिंग सेक्टर ने बहुत बढ़िया रिटर्न दिया है। 2008 को इसने 12,678.98 की नई ऊंचाई को छुआ था।


अगर चार साल पहले की बात करें तो यह 3,000 के स्तर के आसपास था।इतने वर्षों में बीएसई बैंकेक्स ने 35 प्रतिशत का वार्षिक प्रतिफल दिया है। पिछले वर्ष इसने 61 प्रतिशत का रिटर्न दिया जबकि सेंसेक्स द्वारा दिया गया रिटर्न मात्र 47 प्रतिशत था।

वर्ष 2000 से बैंकिंग उद्योग में सालाना 20 प्रतिशत की दर से विकास हो रहा है। ऐसा आकलन है कि आने वाले वर्षों में भारतीय बैंकों का विकास 35 प्रतिशत की सालाना दर से होगा। विकसित होती अर्थव्यवस्था में यह सेक्टर प्रत्यक्ष तौर पर लाभान्वित होता है। साल 2000 से देखें तो इसकी गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में काफी कमी आई है और यह 8 प्रतिशत से कम होकर आज की तारीख में 1 प्रतिशत रह गई है।

 विकास की रफ्तार बनाए रखने के लिए बैंकों को 14 अरब डॉलर की जरुरत होगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने अगले वर्ष से इस सेक्टर को विदेशी खिलाड़ियों के लिए खोल रही है। साल 2009 से विदेशी बैंकों को किसी भी भारतीय बैंक में 74 फीसदी हिस्सेदारी लेने की अनुमति होगी।

घरेलू बैंकों को आवश्यक पूंजी मिलने के साथ-साथ विदेशी बैंकों की विशेषज्ञता का लाभ मिलेगा जबकि विदेशी बैंकों को इस आकर्षक क्षेत्र में अपने पांव जमाने का मौका मिलेगा (नये बैंकों के लिए) और पहले से मौजूद विदेशी बैंकों को अधिक से अधिक ग्राहकों तक अपनी पहुंच बनाने में सुविधा होगी।

हाल के महीनों में अंतरराष्ट्रीय बैंकों जैसे सिटीग्रुप, एचएसबीसी, बैंक ऑफ अमेरिका, डॉयचे बैंक, द्वारा अच्छा-खासा निवेश किया है ताकि भारत में परिचालनों का विस्तार किया जा सके। इसके अतिरिक्त विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भी इस सेक्टर में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के पांच बैंक एफआईआई निवेश की सीमा नि:शेष कर चुके हैं जबकि तीन अन्य बैंक और निजी क्षेत्र के चार बैंक सतर्कता सीमा में हैं।

अब एफआईआई के लिए एक ही रास्ता नजर आ रहा है कि वे बैंकिंग एक्सचेंज ट्रेडेड फंड और बैंकिंग सेक्टर पर केंद्रित सेक्टर फंडों पर अपना कब्जा जमाएं। यही वजह है कि पिछले 12 महीनों के दौरान इक्विटी बैंकिंग फंडों के यूनिटों में औसत मासिक वृध्दि लगभग 24 प्रतिशत की रही है। बाजार में फिलहाल तीन सतत खुले इक्विटी बैंकिंग फंड उपलब्ध है और अन्य दो जल्द ही बाजार में उपलब्ध होंगे। चार फंड अनुमति की कतार में हैं।

बाजार में मौजूद तीन इक्विटी बैंकिंग फंडों की निवेश नीति, बाजार पूंजीकरण के आधार पर तरजीह देना और शेयरों का चयन भिन्न-भिन्न हैं। इन बैंकिंग सेक्टर फंडों के तहत विशुध्द रुप से बैंकिंग में ही निवेश करने का प्रावधान नहीं है। ये वित्तीय संस्थानों और ब्रोकरेज कंपनियों के शेयरों में भी निवेश कर सकते हैं।

इन तीन बैंकिंग फंडों के अतिरिक्त निवेश के लिए तीन बैंकिंग ईटीएफ भी बाजार में उपलब्ध हैं। इक्विटी वर्ग के अन्य फंडों की तरह सबसे बड़े ईटीएफ बैंकिंग ईटीएफ ने शुरुआत से अभी तक 36 प्रतिशत का रिटर्न दिया है। इसलिए अगर इक्विटी फंड आपको आकर्षक नहीं लगते हैं तो आप इस विकल्प पर विचार कर सकते हैं।

जेएम फाइनैंशियल सेक्टर फंड- प्रदर्शन में अस्थिरता   
              
इस श्रेणी का नवीनतम फंड लॉन्च होने के पहले वर्ष में ही निवेशकों की निगाह में आ गया। यद्यपि यह वर्ष 2007 की प्रतिस्पध्र्दा में अव्वल रहा लेकिन इसका प्रदर्शन पूरे साल एक जैसा नहीं रहा। एक तरफ साल 2007 में जहां निवेशकों को 95 प्रतिशत का रिटर्न मिला वहीं मार्च 2008 की तिमाही में उन्हें 33.36 प्रतिशत का ऋणात्मक प्रतिफल मिला है।

सभी श्रेणियों में आई गिरावट और बाजार के अधोमुखी होने की दशा में यह कहा जा सकता है कि इस फंड में गिरावट आना तार्किक है लेकिन जेएम फाइनैंशियल में बराबरी के फंडों की तुलना में ज्यादा गिरावट आई। रिलायंस में केवल 22.26 प्रतिशत की गिरावट आई।

आईसीआईसीआई बैंक की तरफ इस फंड का झुकाव कुछ अधिक रहा है। लॉन्च के कुछ समय बाद ही इसके पोर्टफोलियो में आईसीआईसीआई बैंक के शंयरों की हिस्सेदारी 32.49 प्रतिशत की थी। 11.57 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथा अभी भी यह शीर्षस्थ निवेश बना हुआ है।

फंड प्रबंधक ग्रोथ पर अधिक ध्यान दे रहे हैं इसलिए रिलायंस कैपिटल, इंडिया इन्फोलाइन और श्रेई इन्फ्रास्ट्रक्चर को बैंक ऑफ बड़ौदा, कॉर्पोरेशन बैंक और फेडरल बैंकों की तुलना में ज्यादा तरजीह दी जा रही है। उल्लेखनीय है कि अन्य दो फंडों के पोर्टफोलियो में बैंक ऑफ बड़ौदा, कार्पोरेशन बैंक और फेडरल बैंक का महत्वपूर्ण स्थान है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकिंग शेयरों जैसे महाराष्ट्र बैंक, जम्मू और कश्मीर बैंक तथा साउथ इंडियन बैंक को इस फंड ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी है।

यद्यपि फंड प्रबंधक ने आईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक, यस बैंक, आईडीएफसी, पीएफसी और महिन्द्रा ऐंड महिन्द्रा फाइनैंशियल सर्विसेज के शेयरों में लंबे समय से निवेश बनाया हुआ है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इस फंड की नीति खरीद कर निवेश बनाए रखने की है। फंड प्रबंधक ने एक्सिस बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, कर्नाटक बैंक, आईडीबीआई, कोटक महिन्द्रा बैंक और रिलायंस कैपिटल के शेयरों की खरीदारी की और उनसे बाहर भी हो गए।

निश्चय ही इस फंड का छोटा आकार फंड प्रबंधक को चालाक खिलाड़ी बनने की गुंजाइश प्रदान करता है। ग्रोथ का पीछा करना और निर्धरित मूल्य-लक्ष्य की प्राप्ति के बाद शेयरों को बेच देना फिर बाद में उसी शेयर की खरीदारी करना फंड प्रबंधक संदीप नीमा की अपनी अलग शैली है।

इसके अतिरिक्त एक और बात खास है कि जब फंड का प्रदर्शन बेहतर होता है तो यह प्रतिस्पध्र्दा में सबसे आगे होता है लेकिन जब प्रदर्शन बेहतर नहीं होता है तो यह बराबरी के फंडों की तुलना में कहीं ज्यादा पिछड़ जाता है। अगर आप इस फंड पर विचार कर रहे हैं तो उतार-चढ़ावों से निपटने के लिए खुद को पहले ही तैयार कर लीजिए।

रिलायंस बैंकिंग फंड- समय के साथ

सबसे पुराने और सबसे बड़े बैंकिंग सेक्टर फंड, रिलायंस बैंकिंग फंड, ने निवेशकों को निराश नहीं किया है। पिछले पांच वर्षों में इसने 42 प्रतिशत का सालाना रिटर्न दिया है। ऐतिहासिक तौर पर देखें तो अपने सूचकांक या बराबरी के फंडों की तुलना में इसमें अस्थिरता कम रही है।

एक अच्छा प्रदर्शन करने वाला फंड होने के बावजूद वर्ष 2007 में यह जेएम फाइनैंशियल के बाद दूसरे स्थान पर रहा। साल 2007 की दिसंबर की तिमाही में रिलायंस बैंकिंग ने 19.43 प्रतिशत का रिटर्न दिया वहीं जेएम फाइनैंशियल ने 28.52 प्रतिशत का  रिटर्न दिया था। लेकिन मार्च 2008 की तिमाही में जहां रिलायंस बैंकिंग में मात्र 22.26 प्रतिशत की गिरावट आई वहीं जेएम फाइनैंशियल 33.36 प्रतिशत लुढ़क गया।

रिलायंस बैंकिंग उच्च पीई वाले शेयरों जैसे एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक, यस बैंक, चोलामंडलम डीबीएस फाइनैंस और श्रेई इन्फ्रास्ट्रक्चर से दूर रहा है। परिणामस्वरुप साल 2007 में प्रदर्शन के मामले में यह पिछड़ गया लेकिन बाजार में आई गिरावट के दौर में इसमें कम गिरावट देखी गई।

गिरावट के समय रिलायंस बैंकिंग का उच्च नकदी तत्व महत्वपूर्ण सहारा साबित हुआ है।  रिलायंस परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी के अन्य सेक्टोरल फंडों की तरह यह फंड भी जरुरत होने पर पूरी तरह नकदी का सहारा ले सकता है।

हालांकि, रिलायंस बैंकिंग ने इस विकल्प का सहारा नहीं लिया है लेकिन प्रतिस्पर्ध्दी फंडों की तुलना में इसने नकदी में अपेक्षाकृत ज्यादा निवेश किया हुआ है। नकदी तत्व में इसने अपनी हिस्सेदारी लगातार बढ़ाई है। नवंबर 2007 में नकदी तत्व 14.52 प्रतिशत था जो फरवरी 2008 में 32 प्रतिशत के स्तर पर आ गया। जनवरी 2008 से इस फंड के तहत औसत लगभग 25 प्रतिशत नकदी तत्व रहा है।

मार्च 2008 में जब मूल्य में गिरावट आई और शेयरों की कीमतें ज्यादा उचित लगे तो फंड प्रबंधक ने एक्सिस बैंक और कोटक महिन्द्रा बैंकों के शेयरों की खरीदारी की। अधिक खर्चीले होने की वजह से शुरु में इन फंडों से दूरी बना कर रखी गई थी।

दिलचस्प बात यह है कि ब्रोकिंग शेयरों- इंडिया इन्फोलाइन, इंडियाबुल्स फाइनैंशियल सर्विसेज, आईएल ऐंड एफएस इन्वेस्टस्मार्ट और मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज की तरफ इस फंड का झुकाव अधिक है। लेकिन वित्तीय संस्थानों के शेयरों जैसे आईडीएफसी और आईएफसीआई को शामिल नहीं किया गया।

इस फंड की सबसे बड़ी खासियत है इसकी स्थिरता। फंड प्रबंधक की नीति ऐसा रिटर्न भले नहीं दिला पाएं जो सुर्खियों में रहे लेकिन लंबी समयावधि में इसका रिकॉर्ड बढ़िया रहा है।

यूटीआई बैंकिंग सेक्टर- सूचकांक के साथ-साथ

यूटीआई बैंकिंग सेक्टर फंड आमतौर पर एक औसत प्रदर्शन करने वाला फंड रहा है। फंड प्रबंधक गौतमी देसाई अवसरवादी निवेशक नहीं रहे हैं और वे बैंकिंग के बड़े शेयरों में निवेश करने को तरजीह देते हैं। यह फंड ब्रोकरेज कंपनियों के शेयरों से  दूर रहा है और पावर फाइनैंस कॉर्पोरेशन, एलआईसी हाउसिंग फाइनैंस और आईडीएफसी जैसे वित्तीय संस्थानों के शेयरों में तरजीही तौर पर निवेश करता रहा है।

अपनी नीतियों के कारण यह फंड पिछले वर्ष अपने बराबरी के फंड की तुलना में पिछड़ गया। सबसे निराशाजनक बात तो यह रही कि हाल के मंदी वाले दिनों में (मार्च 2008 की तिमाही में) इस फंड में 30.16 प्रतिशत की गिरावट आई वहीं रिलायंस बैंकिंग फंड में 22.26 प्रतिशत और जेएम फाइनैंशियल सर्विसेज में 33.36 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।

आश्चर्य की बात तो यह है कि जब यूटीआई बैंकिंग सेक्टर फंड की तुलना बैंकिंग एक्सचेंज ट्रेडेड फंड, बैंकिंग बीईईएस, से की गई तो अल्फा में कोई बढ़ोतरी नहीं पाई गई। दो वर्षों के वार्षिक रिटर्न लगभग 32 प्रतिशत रहा है जबकि बैंकिंग बीईईएस ने तीन वर्षों का प्रतिफल कहीं ज्यादा है। इसलिए तार्किक तौर पर कोई निवेशक वार्षिक खर्चे के रुप में दो प्रतिशत अधिक देकर इस फंड की खरीदारी क्यों करेगा जब दोनों के प्रतिफल लगभग एक जैसे हैं?

First Published - June 15, 2008 | 11:13 PM IST

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