बुधवार को हुए कारोबार में स्टरलाइट के शेयरों में 12 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इसकी वजह रही स्टरलाइट से एल्युमिनियम और पावर कारोबार को अलग करने का ऐलान।
इस कंपनी के स्टॉक में मंगलवार को भी 7.5 फीसदी गिरावट दर्ज की गई थी। शेयरों की कीमतों महज इसलिए गिरावट नहीं आई कि शेयर बाजार कंपनियों के अलग करने के तरीके से खुश नहीं था बल्कि एल्युमिनियम और कॉपर की कीमतों में आई गिरावट ने आग में घी का काम किया।
जून 2008 की शुरुआत से एल्युमिनिमय और कॉपर की कीमतों में क्रमश: 13 फीसदी और 10 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। इसकेअलावा जिंक की कीमतें भी 1782 डॉलर प्रति टन के स्तर पर है जो मार्च में इसकी अधिकतम ऊंचाई से 37 फीसदी कम है। गिरते एल्युमिनियम की कीमतों से हिंडाल्को के राजस्व पर असर पड़ सकता है।
यह पहले से ही जून की तिमाही में कमजोर रहा है। इसकी वजह एल्युमिनियम और कॉपर दोनों के वॉल्यूम में आने वाली गिरावट रही। रियलाइजेशन निश्चित रहा लेकिन कीमतों में करेक्सन हुआ है। अमेरिकी और यूरोपियन बाजार में मंदी की वजह से स्टील की कीमतों में भी गिरावट आ सकती है। विश्लेषकों का मानना है कि स्टील की कीमतों में हालिया गिरावट चीन में मंदी की संभावना और देश से बढ़ता निर्यात है।
घरेलू स्टील की कीमतों के बेहतर स्तर पर बने रहने की संभावना है और ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्टील की कीमतों की अपेक्षा 150 से 200 डॉलर प्रति टन कम हैं। स्थानीय स्तर पर स्टील की कीमतों में गिरावट से स्टील उत्पादकों पर तुरंत असर नहीं पड़ेगा और इसकी वजह स्टील के ज्यादातर सौदों के लंबी अवधि का होना है। पिछले साल भारत स्टील का शुध्द आयातक देश था।
बुधवार को कीमतों में आए करेक्सन से स्टील के शेयरों का कारोबार वित्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से चार से सात गुना केस्तर पर हो रहा है। मांग में तेजी से कमी आने की आशंका होने के चलते स्टील कंपनियों के आकर्षक मूल्य पर आ जाने की संभावना है।
हालांकि स्टरलाइट के शेयरों के कुछ समय तक कमजोर रहने की संभावना है क्योंकि बाजार के कुछ समय तक वेंदाता की हिस्सेदारी के कोंकना कॉपर को ट्रांसफर करने की वजह से परेशानी में रहने की संभावना है। विश्लेषकों का मानना है कि केसीएम के 3.5 अरब डॉलर की कीमत निर्धारित की गई है और इससे स्टरलाइट की हिस्सेदारी पर भी असर पडेग़ा।
हिंडाल्को में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी राइट इश्यू केबाद 43 फीसदी कम हो जाएगी और एल्युमिनियम की कीमतों से शेयर के मूल्यों पर और दबाव पड़ने की संभावना है।
टाटा कम्यु.- कमजोर संकेत
टाटा कम्युनिकेशन ने जून की तिमाही में संतोषजनक आंकड़ा अर्जित किया लेकिन कंपनी का शेयर यहां से कहीं जाता हुआ नजर नहीं आ रहा है। इस शेयर ने जनवरी से अब तक बाजार को अंडरपरफार्म किया है और इसमें 42 फीसदी की गिरावट आई है जबकि सेंसेक्स में 26 फीसदी की गिरावट ही देखी गई है। इस समय कंपनी के शेयर का कारोबार 445 रुपए पर हो रहा है।
टायको और टेलीग्लोब के अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लाभ में बदलने के पहले शायद यह दूसरा साल हो सकता है। ज्यादा फायदेमंद डाटा एकाउंट की राजस्व में हिस्सेदारी हो सकती है। वाइस सेगमेंट की जगह इंटरप्राइसेस बाजार के डाटा सेगमेंट पर ज्यादा फोकस जारी रह सकता है।
वैश्विक बाजार में प्रतियोगिता काफी गहरी है और राजस्व के बढ़ने में समय लग सकता है। इसलिए टाटा कम्युनिकेशन आशा कर रही है कि ज्यादा लाभ देने वाले डाटा राजस्व के बढ़ने से ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन बढेग़ा। जबकि ओवरऑल मिक्स में डाटा राजस्व के बढ़ने में समय लग सकता है।
जून की तिमाही में ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन पांच फीसदी ज्यादा रहकर 22.3 फीसदी के स्तर पर रहा और इसकी वजह नेटवर्क में आने वाली लागत रही। यह पिछली चार तिमाहियों में 450 से 460 करोड़ के दायरे में है और इसमें सालाना आधार पर 12 फीसदी कमी आई है। टॉपलाइन ग्रोथ भी कमजोर रही।
शुध्द बिक्री महज 1.5 फीसदी बढ़कर 863 करोड़ पर रही जबकि नॉन-वाइस कारोबार में करीब 13 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई। प्रति मिनट रियलाइजेशन में आने वाली 17 फीसदी गिरावट से वॉल्यूम ग्रोथ में नौ फीसदी की कमी देखी गई। जिससे कुल वाइस राजस्व नौ फीसदी घटकर 400 करोड़ पर रहा।
टाटा कम्युनिकेशन को अगले दो से तीन सालों में करीब 4,000 करोड़ के निवेश की जरूरत है। यह निवेश दो समुद्र के नीचे के केबल नेटवर्क इंटर एशिया केबल और यूरो एशिया केबल में किया जाएगा। जबकि बाईमैक्स के 110 शहरों तक पहुंचने की संभावना है जिसमें देरी हो रही है। इसके वाईमैक्स के स्पेस में भारती और रिलायंस से प्रतियोगिता का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा ब्राडबैंड सेगमेंट भी काफी प्रतियोगी है और इसमें जगह बनाने में समय लग सकता है।