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जेफरीज के क्रिस्टोफर वुड का Stock Market, Defence Stock और अमेरिकी डॉलर पर क्या है नजरिया?

Christopher Wood: अमेरिकी शेयर बाजार अब अपने अच्छे दौर को पार कर चुका है और आने वाले समय में अमेरिकी डॉलर की कीमत में गिरावट देखने को मिल सकती है।

Last Updated- May 23, 2025 | 9:53 AM IST
Valuations, fresh equity supply key risk to Indian stock market: Chris Wood

Market Outlook: बीते कुछ हफ्तों में दुनिया भर के वित्तीय बाजारों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला। इसकी वजह थी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ यानी शुल्क नीति से जुड़ी घोषणाएं। अब ज़्यादातर एक्सपर्ट्स का मानना है कि फिलहाल टैरिफ को लेकर जो डर बना हुआ था, वो अब खत्म होता दिख रहा है। इसकी वजह ये है कि कई देश अब अमेरिका के साथ बातचीत की मेज़ पर हैं।

जेफरीज में ग्लोबल इक्विटी स्ट्रैटेजी के हेड क्रिस्टोफर वुड ने अपनी हाल की रिपोर्ट ‘GREED & Fear’ में कहा है कि अमेरिकी शेयर बाजार अब अपने अच्छे दौर को पार कर चुका है और आने वाले समय में अमेरिकी डॉलर की कीमत में गिरावट देखने को मिल सकती है।

क्रिस्टोफर वुड का शेयर बाजार पर नजरिया

जेफरीज के ग्लोबल हेड ऑफ इक्विटी स्ट्रैटेजी क्रिस्टोफर वुड के मुताबिक, ग्लोबल शेयर बाजारों में अब एक बड़ा ब्रेकआउट देखने को मिला है। MSCI ऑल कंट्री वर्ल्ड इंडेक्स (जिसमें अमेरिका को छोड़कर बाकी दुनिया के शेयर शामिल हैं) ने 2007 से चली आ रही सीमित दायरे की ट्रेडिंग को तोड़ दिया है। यह इस बात का तकनीकी संकेत है कि वुड की रिपोर्ट GREED & Fear में बताया गया नजरिया सही साबित हो रहा है।

वुड बताते हैं कि 24 दिसंबर 2024 को अमेरिका ने MSCI वर्ल्ड इंडेक्स में 67.2% की सबसे ऊंची हिस्सेदारी हासिल की थी। यह उस समय की बात है जब “अमेरिकन एक्सेप्शनलिज़्म” यानी अमेरिका की खासियत को लेकर बाजार में काफी जोश था।

हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि अमेरिकी शेयर बाजार अब गिर जाएगा। लेकिन यह ज़रूर है कि 67% की हिस्सेदारी बहुत बड़ी है, जबकि अमेरिका की हिस्सेदारी दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था में केवल 26.4% है (डॉलर के हिसाब से)। इससे यह संकेत मिलता है कि अमेरिकी डॉलर अब लंबी अवधि की गिरावट के रास्ते पर है, जो वुड का मुख्य अनुमान भी है।

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क्रिस्टोफर वुड की डिफेंस शेयरों पर राय

क्रिस्टोफर वुड के अनुसार, ट्रंप की नीतियों ने यूरोप को जागरूक किया है। इसका ताजा सबूत है जर्मनी का घोषणा करना कि वह अपनी डिफेंस खर्च को जीडीपी के 5 प्रतिशत तक बढ़ाएगा। उनका मानना है कि बैंकिंग और डिफेंस क्षेत्र के शेयर यूरोपीय शेयर बाजार में निवेश के लिए जरूरी हैं। पहले जो सलाह दी गई थी कि यूरोपीय डिफेंस शेयर खरीदें और अमेरिकी डिफेंस शेयरों को बेचें, वह अब भी सही साबित हो रही है।

क्रिस्टोफर वुड का मूडीज़ के अमेरिकी रेटिंग डाउनग्रेड पर विचार

मूडीज़ द्वारा अमेरिका की रेटिंग घटाने का बाजार पर ज्यादा असर नहीं पड़ा, क्योंकि पहले से ही S&P और Fitch एजेंसियां अमेरिका की रेटिंग कम कर चुकी थीं। फिर भी, वुड मानते हैं कि यह डाउनग्रेड इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय होगा।

क्रिस्टोफर वुड की अमेरिकी डॉलर की भविष्यवाणी

क्रिस्टोफर वुड के मुताबिक, डॉलर कमजोर होने के कई कारण हैं। सबसे पहला कारण यह है कि खुद डोनाल्ड ट्रंप भी डॉलर को कमजोर देखना चाहते हैं। दूसरा कारण ट्रंप के अपने खास तरह के शासनशैली में है, जो काफी अनिश्चित और अप्रत्याशित है। हाल के हफ्तों में टैरिफ्स के बार-बार बदलने से यह अनिश्चितता और बढ़ी है, जिससे डॉलर की कीमतों में गिरावट आ सकती है।

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लेकिन सबसे बड़ा कारण जो लंबे समय तक डॉलर के कमजोर होने की संभावना बताता है, वह है अमेरिका की कोविड के बाद वित्तीय हालत का बिगड़ना। फेडरल रिजर्व के बड़ी मात्रा में नकदी देने की वजह से अमेरिका की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है। इसके चलते वित्तीय दबाव और कड़ी नीतियां अपनाई जा सकती हैं, जैसे यील्ड कर्व कंट्रोल (ब्याज दरों पर नियंत्रण) और शायद एक्सचेंज कंट्रोल भी। ये सभी कदम डॉलर के लिए नकारात्मक होंगे, खासकर यील्ड कर्व कंट्रोल।

क्रिस्टोफर वुड का एशियाई करेंसी पर विचार

क्रिस्टोफर वुड कहते हैं कि आने वाले समय में एशियाई देशों की मुद्राएं अमेरिकी डॉलर के मुकाबले मजबूत हो सकती हैं। यह वैसा ही है जैसे करीब 30 साल पहले एशियाई आर्थिक संकट के बाद हुआ था। इसका एक कारण यह भी है कि ट्रंप सरकार अपने देश के व्यापार घाटे को कम करने की कोशिश कर रही है। साथ ही, एशिया में लोग ज्यादा पैसे बचाते हैं, जो इन मुद्राओं को ताकत देगा। इसलिए एशियाई मुद्राएं डॉलर से बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं।

क्रिस्टोफर वुड का प्राइवेट इक्विटी पर नजरिया

क्रिस्टोफर वुड के मुताबिक, ट्रंप सरकार ने टैरिफ (शुल्क) को लेकर जो अचानक फैसला बदला, वह प्राइवेट इक्विटी यानी निजी पूंजी की इंडस्ट्री के लिए बहुत बड़ी राहत की बात है। प्राइवेट इक्विटी के पास दुनियाभर में 29,000 कंपनियां हैं, जिन्हें वे शेयर बाजार में लाना चाहते हैं। अगर अमेरिका में आर्थिक मंदी आती तो यह इंडस्ट्री और इसके मुख्य फंडर प्राइवेट क्रेडिट के लिए बहुत बड़ा खतरा होता।

उन्होंने बताया कि टैरिफ को लेकर जब अनिश्चितता थी, तब प्राइवेट इक्विटी इंडेक्स में भारी गिरावट आई थी। एसएंडपी की लिस्टेड प्राइवेट इक्विटी इंडेक्स करीब 27 प्रतिशत गिर गई थी, जो उस समय अमेरिकी बाजार में सबसे ज्यादा गिरावट थी। लेकिन अब, जब मंदी का खतरा कम हो गया है, यह इंडेक्स फिर से बढ़ रहा है।

क्रिस्टोफर वुड का कहना है कि अगर अमेरिका में मंदी आती है, तो प्राइवेट इक्विटी और प्राइवेट क्रेडिट दोनों को बड़ा नुकसान होगा। यह उन कंपनियों के लिए बुरी खबर है जिन्होंने अपने पैसे इन जगहों पर लगाया है। लेकिन अगर मंदी नहीं आती, तो प्राइवेट क्रेडिट में निवेश जारी रहेगा, जबकि प्राइवेट इक्विटी के मालिक अपनी जोखिम कम करने की कोशिश करेंगे।

इसके अलावा, एक नई रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिकी बैंकों ने गैर-बैंक वित्तीय संस्थाओं को कर्ज देना तेज कर दिया है। इसका मतलब यह है कि प्राइवेट क्रेडिट की मुश्किलें अब बैंकों तक भी पहुंच सकती हैं।

First Published - May 23, 2025 | 9:13 AM IST

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