इंफ्रास्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन क्षेत्र की कंपनी रितविक ने हाल ही में फंड की जरूरतों के लिए आईपीओ लाने के बजाए प्राइवेट इक्विटी के जरिए पैसा जुटाने का फैसला किया।
हालांकि हैदराबाद की इस कंपनी ने सेबी को अपने आईपीओ का रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस जमा कर दिया था लेकिन उसने बाजार के माहौल और वैल्युएशंस को देखते हुए अपना फैसला बदल दिया। ऐसा करने वाली रितविक अकेली कंपनी नहीं है।
ऐसी और भी कई कंपनियां हैं जिन्होने कैपिटल मार्केट के रेगुलेटर को अपना प्रॉस्पेक्टस तो फाइल किया लेकिन बाद में आईपीओ लाने का अपना फैसला बदल लिया। नियमों के मुताबिक किसी भी कंपनी के आईपीओ प्रॉस्पेक्टस को सेबी की मंजूरी मिल जाने के 90 दिन के भीतर उसे अपना आईपीओ लाना होता है और अगर वह ऐसा नहीं कर पाती तो कंपनी को मिली ये मंजूरी रद मान ली जाती है और उसे नए सिरे से सारी औपचारिकताएं करनी पड़ती हैं।
प्राइमरी बाजार पर नजर रखने वाली कंपनी दिल्ली की प्राइम डाटाबेस के मुताबिक ऐक्मे टेलि पावर (1200 करोड़), प्राइड होटल्स (250 करोड़), वासकॉन इंजीनियर्स (350 करोड़), टीसीजी लाइफसाइंसेस (175 करोड़), सूर्या फूड्स ऐंड एग्रो (136 करोड़), नील मेटल प्रोडक्ट्स (125 करोड़) और प्रिंस फाउंडेशंस (300 करोड़) ऐसी कंपनियां हैं जिन्हे आईपीओ लाने के लिए सेबी की मंजूरी मिल चुकी है लेकिन इसके बावजूद वो बाजार में नहीं उतर रही हैं।
जब बाजार में उथल पुथल मची रहती है तो कंपनी प्रबंधन, मर्चेन्ट बैंकर, रिटेल और संस्थागत निवेशक सभी बाजार से किनारा कर लेते हैं। एक प्रमुख इन्वेस्टमेंट बैंक के वरिष्ठ अधिकारी जो इस समय कंपनियों के आईपीओ के लिए रोड शो कर रहे हैं, के मुताबिक सवाल वैल्युएशन का होता है कि क्या बाजार इस वैल्युएशन को पचा पाएगा या नहीं। इसके अलावा बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि कंपनी आईपीओ लाने के लिए कितनी उत्सुक है यानी उसका समय और उसकी लिस्टिंग का समय।
इसके अलावा आईपीओ की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि बड़े संस्थागत निवेशकों की उस आईपीओ में कितनी रुचि है। बैंकरों का कहना है कि इस समय केवल रिटेल निवेशक ही नहीं संस्थागत निवेशक भी इस माहौल में पैसा लगाने में काफी सतर्कता बरत रहे हैं। हालांकि कंपनियों को बाजार से उम्मीदें भी बहुत हैं।
कई छोटी कंपनियों ने जिनके इश्यू छोटे हैं उन्होने इस बाजार में भी अपना आईपीओ लाने की हिम्मत दिखाई और ठीक ठाक सब्सक्रिप्शन भी मिला। मिसाल के तौर पर गोकुल रिफॉयल्स ऐंड सॉल्वेन्ट, अनूस लैबोरेटरीज और ऐश्वर्या टेलिकॉम के आईपीओ भी ऐसे बाजार में ठीक ठाक पैसा जुटा सके हैं।
साल 2007 में करीब 100 कंपनियों ने प्राइमरी बाजार से 34,179 करोड़ रुपए की उगाही की लेकिन 2008 के पहले चार महीनों में केवल 18 कंपनियां ही आईपीओ लाईं और उन्होने बाजार से कुल 14,908 करोड़ रुपए की रकम बटोरी। प्राइस डाटाबेस के पृथ्वी हल्दिया के मुताबिक आमतौर पर आईपीओ तभी लाए जाते हैं जब बाजार में स्थिरता हो या फिर सेकेन्डरी बाजार मजबूत हो।
पहले तो जनवरी में बाजार गिरा और इसके बाद बाजार में भारी उतार चढ़ाव से कई कंपनियां इस माहौल में बाजार में उतरने से कतराने लगी हैं। इस समय कम से कम 24 ऐसी कंपनियां हैं जो आईपीओ के लिए सेबी से मंजूरी ले चुकी हैं, अगर बाजार का माहौल ठीक होता तो ये कंपनियां आईपीओ लाने में जरा भी देरी नहीं करतीं।