शेयर बाजार की मंदी भारतीय कंपनियों को नए नए तरीकों से परेशान कर रही है।
टाटा मोटर्स,महिंद्रा एंड महिंद्रा लि. समेत 13 अन्यं भारतीय कंपनियों विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बांड यानी एफसीसीबी के मामले में भी निवेशकों की मार झलनी पड़ रही है।
दरअसल इन कंपनियों में निवेशकों ने एफसीसीबी के जरिए निवेश किया था और जब इन बांडों को शेयरों में तब्दील करने का समय आया तो निवेशकों ने बाजार की हालत को देखते हुए इन बांडों को शेयर में तब्दील कराने के बजाए अपना पैसा वापस लेना ज्यादा मुनासिब समझा।
एफसीसीबी जारी करने वाली कंपनियों में रेनबैक्सी, भारत फोर्ज लि. जैसी कंपनियां भी शामिल हैं जिन्हे निवेशकों के इस फैसले से कर्ज जुटाने की जरूरत पड़ सकती है जिससे इन्हे अपने मुनाफे में दस फीसदी तककी कटौती झेलनी पड़ सकती है।
गौरतलब है कि बांबे स्टॉक एक्सचेंज के सूचकांक में साल की शुरूआत से ही मंदी का दौर रहने के चलते ऐसा हो रहा है। जनवरी में संवेदी सूचकांक में 16.4 फीसदी की गिरावट रहने के चलते फरवरी का महीना विदेशी निवेश के लिहाज से सूना रहा।
जबकि पिछले पांच सालों के दौरान भारतीय कंपनियों ने परिवर्तनीय बांडों के जरिए कुल 20 अरब डॉलर के विदेशी फंड जुटाए थे,जिनमें ज्यादातर बांड अगले 18 से 24 महीनों में मैच्योर होने वाले थे। वॉकहार्ट फर्मास्युटिकल के बांड का रिडम्पशन अक्टूबर 2009 में होना है।
बाजार में मंदी का आलम बना रहा तो फिर इससे इक्विटी में तब्दील न करने वाले बांड होल्डरों की झड़ी लग जाएगी,क्योंकि उनके लिए फिर खुले बाजार से शेयर खरीदना ज्यादा फायदेमंद हो जाएगा,बजाए इसके कि वो शेयरों के लिए एक प्रीमियम अदा करें।
अरबिंदो,ऑर्किड,एचसीसी,होटल लीला समेत कई कंपनियां जिन्होंने बाजार से अपने साइज और कैश-फ्लो के मुकाबले ज्यादा ऋण ले रखा है,के लिए तरलता जोखिम का खतरा हो सकता है जब एफसीसीबी होल्डर रिडंपशन के लिए आएंगे। वरना फिर स्टॉक कीमतों में इजाफा जारी रह सकता है। सबसे खास बात यह है कि इन कंपनियों के द्वारा तरलता जोखिम झेलने पड़े उन कंपनियों के स्टॉक कीमतों परा ज्यादा प्रभाव पड़ेगा जिनके एफसीसीबी ज्यादा बेहतर हैं।
ये बांड अगर तब्दील नही होते हैं तो कंपनियों के पास दूसरा विकल्प है कि वो तब्दील कीमतें कम कर दें,क्योंकि बाजार में इक्विटी डायलूशन का दौर चल रहा है और जिससे शेयरधारकों पर प्रभाव पड़ेगा। इसके अलाावा कंपनियों के पास दूसरा विकल्प यह है कि वो कम प्रीमियम की अदायगी पर ही तब्दील किए जाने वाले बांड जारी करें। हालांकि इससे प्रति शेयर आय के साथ-साथ मौजूदा इक्विटीधारक दोनों प्रभावित होंगे।
इसके अलावा दो अन्य विकल्प यह हैं कि कंपनियां प्लेन वनिला डेट में इजाफा करें,जो खासा मुश्किल होगा और इस बाबत निवेशकों को लुभाने के लिए बड़ी मात्रा में ब्याज अदा करनी होगी,जो खासा मुश्किल है। इस कदम से कंपनी के मुनाफे बुरी तरह से प्रभावित होंगे। अंत में,कंपनियों के पास एक विकल्प और है कि वो इक्विटीयों में इजाफा करे दें,ताकि बढ़े हुए डेट की भरपाई हो सके।