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भारी पड़ सकती है एसआईपी की किस्त में देरी

Last Updated- December 07, 2022 | 4:46 PM IST

अभी हाल में ही जब रतन गायकवाड़ म्युचुअल फंड में अपने निवेश का नवीकरण करवाने जा रहे थे तो उस समय उनके दोस्तों ने उन्हें एसेट मैंनेजमेंट कंपनियों में सीधे तौर पर निवेश करने की सलाह दी।


इसके पीछे यह तर्क दिया गया कि डिस्ट्रीब्यूटर को दिए जानेवाले एंट्री लोड पर वह 2.25 प्रतिशत की बचत कर पाएंगे। मालूम हो कि इस साल 4 जनवरी को सेबी ने म्युचुफल फंड में सीधे तौर पर किए जानेवाले निवेश पर एंट्री लोड को समाप्त करने की घोषणा की थी।

28 वर्षीय गायकवाड ने समझा कि उनके दोस्तों ने एक बेहतरीन तरीका बताया है और ऐसा करने में कोई ज्यादा मुश्किल भी नहीं है, सीधे फंड हाउस जाइए और कुछ जरूरी फॉर्म भरकर निश्चिंत हो जाना है। लेकिन हाल यह हैं कि पिछले तीन महीनों में गायकवाड़ को ऐसा कर पाने का समय नहीं मिला है।

जिस योजना के सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिए निवेश करते आ रहे थे उस योजना का अप्रैल में नवीनीकरण होना था। लेकिन समय से ऐसा न कर पाने के कारण उनकी एसआईपी  (10,000 रुपये)की किस्त बीच में टूट गई। अंत में वो पिछले सप्ताह अपने डिस्ट्रीब्यूटर के पास एसआईपी को पुन: शुरू कराने के लिए पहुंचे।

एसआईपी के  संबंध में एक सर्टिफाइड वित्तीय योजनाकार कार्तिक झावेरी ने बताया कि निवेश करने के लिए एसआईपी एक बेहतर तरीका है लेकिन इसे नियमित नहीं जमा करने से आपके कुल कॉर्पस यानी बाद में कुल मिलने वाली पूंजी पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। गायकवाड़ के मामले में कुछ ऐसा ही हुआ। सेवानिवृति पाने के समय तक एक बेहतर कॉर्पस बनाने के लिए उनको अगले 30 सालों तक निवेश करना होगा।

अगर म्युचुअल फंड उनको औसतन सालाना 15 प्रतिशत का भी रिटर्न देती है तो उस 13वें महीने में 10 हजार की किस्त जमा न कर पाना उनको बहुत भारी पड़ेगा क्योकि इस वजह से उनके कुल कॉर्पस में 5.76 लाख रुपये की कमी आ जाएगी। उधर 2.25 प्रतिशत का एंट्री लोड की बचत भी अगले 29 सालों में कुल 12,954 रुपये बैठती है।

यानी उनका शुध्द नुकसान हुआ 5.76 लाख-12,954 रुपए यानी 5.63 लाख रुपए। गायकवाड़ ने शायद यह भी सोचा हो कि मंदी के इस दौर में उनके रिटर्न पर ज्यादा असर नहीं होगा लेकिन मंदी के बाजार में एसआईपी में बने रहने में ही समझदारी है।

एक संपत्ति प्रबंधक का कहना है कि एसआईपी के रिटर्न में तभी ज्यादा फर्क पड़ता है जब आप अपनी किस्त किसी कारण से न दे पाएं खासकर मंदी के दिनों में क्योकि बाजार जब पलटता है तो आपके यूनिट ज्यादा होने की वजह से रिटर्न भी बढ़ जाते हैं। एक महत्वपूर्ण और कि एसआईपी के जरिए निवेश करने से बाजार में चल रहीं उठा-पटक से भी सुरक्षा मिलती है।

क्योकि आपके पैसे का निवेश रुक रुक कर टुकड़ों में होता है ना कि एकमुश्त । उदाहरण के लिए टाटा इन्फ्रास्ट्रक्चर द्वारा जनवरी से शुरू होनेवाले 8 महीनों की अवधि के लिए मिलनेवाले रिटर्न पर गौर किया जाए। टाटा इन्फ्रास्ट्रक्चर में पिछले 8 महनों में 10,000 रुपये प्रति महीने वाले एसआईपी में -6.33 प्रतिशत की गिरावट आई होगी।

दूसरी तरफ 80,000 रुपये के एक बार के निवेश पर लगभग 30.47 प्रतिशत का घाटा लगा होगा। हालांकि यह भी सही है कि जब बाजार में कारोबार अच्छा चल रहा होता है तो उस समय एक बार किए जानेवाल निवेश एसआईपी से बेहतर रिटर्न देता है।

गायकवाड़ को हुए 5.76 करोड रुपये का घाटा महत्वहीन नहीं है यहां तक कि उन्हें 30 वर्षों तक उनके निवेश पर मिलनेवाले सालाना 15 प्रतिशत कंपाउंड रिटर्न के बाद मिले 5.6 करोड़ रुपये के लिहाज से भी महत्वहीन नहीं है। इस घाटे का कारण गायकवाड़ द्वारा प्रारंभ के वर्षों में भुगतान न कर पाना रहा। अगर उन्होंने यह 26वीं साल या 31वीं किस्त में ऐसा किया होता तो उन्हें सिर्फ 20,114 रुपये का घाटा लगा होता दीर्घ अवधि की तुलना में संयुक्त रूप से एक बार में किया गया कार्य ज्यादा फायदेमंद होता है।

First Published - August 13, 2008 | 10:03 PM IST

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