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डीएलएफ-पूंजी की जरूरत

Last Updated- December 07, 2022 | 7:04 PM IST

देश की सबसे बड़ी सूचीबध्द प्रॉपर्टी कंपनी डीएलएफ ने निर्णय किया है कि वह अपने शेयरधारकों से क्वालीफाइड प्लेसमेंट के जरिए 10,000 करोड़ रुपए जुटाएगा।


यह काफी आश्चर्यजनक है क्योंकि गुड़गांव की इस कंपनी ने हाल ही में कहा था कि वह 600 रुपए की अधिकतम कीमत पर 2.2 करोड़ शेयरों का बायबैक करेगी। इस तरह वह कंपनी के बायबैक का आकार 1,100 करोड़ का है।

कंपनी को कैपिटल मार्केट से पूंजी जुटाने के  लिए बायबैक के बंद होंने के छह महीने बाद तक इंतजार करना है। बायबैक अभी शुरू भी नहीं हुआ है और इसके पूरे होनें में कम से कम तीन महीनें लगेंगे। इस केस में पूंजी जुटानें में अभी समय है और कंपनी सालाना बैठक का इस्तेमाल केवल जरूरी अनुमतियों के लिए कर रही है।

कंपनी के शेयरों की कीमतों में अपनी अधिकतम ऊंचाई 1,205 से 60 फीसदी से भी अधिक की गिरावट आई है और कंपनी केशेयर का कारोबार मौजूदा समय में 468 रुपए के स्तर पर हो रा है। कंपनी ने अभी एक साल पहले ही 525 रुपए की पेशकश पर आरंभिक सार्वजनिक पेशकश पूरी की थी।

डीएलएफ के जून तिमाही के परिणाम काफी परेशान करने वाले रहे और कंपनी का शुध्द कर्ज 13,200 करोड़ हो गया जबकि मार्च 2008 की तिमाही में कंपनी पर शुध्द कर्ज 10,000 करोड़ रुपयों का था। कंपनी की लेनदारियां भी 5,000 करोड़ से बढ़कर 5,800 करोड़ पर रही।

डीएलएफ के ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन में करीब 10 फीसदी की गिरावट देखी गई और यह 61.5 फीसदी के स्तर पर रहा। कंपनी की बिक्री 24 फीसदी सालाना आधार पर बढ़कर 3,850 करोड़ के स्तर पर रही और लेकिन इसमें क्रमिक गिरावट रही। कंपनी का शुध्द लाभ सालाना आधार पर 23 फीसदी ज्यादा रहा लेकिन उसमें भी क्रमिक गिरावट रही।

कंपनी का डीएएल (कंपनी जिसका मालिकाना हक डीएलएफ के प्रवर्तकों के पास है) से प्राप्त राजस्व पिछले कुछ तिमहियों से लगातार कम हो रहा है और अब कुल राजस्व में उसकी 40 फीसदी हिस्सेदारी है। डीएलएफ की सभी सेगमेंट रेजीडेंशियल, रिटेल और ऑफिस में उपस्थिति है।

बढ़ती ब्याज दरों और आईटी एवं आईडीईएस क्षेत्र से कम मांग की वजह से अगले कुछ सालों में कंपनी को कम वॉल्यूम का सामना करना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त पिछले तीन महीनों में संपत्ति पर ब्याज दरों में एक फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी हुई है जो घर खरीदने वालों को दूर रख रही है।

कंपनी के प्रबंधकों का मानना है कि छोटी अवधि में माहौल के कठिन बने रहने की संभावना है लेकिन मीडियम टर्म में हालत सुधर सकती है। विश्लेषकों का विश्वास है कि प्रॉपर्टी की कीमतों आगे सुधार हो सकता है। लेकिन अभी बाजार में आपूर्ति हो रही है जबकि मांग अभी भी कमजोर है।

फर्स्टसोर्स-अधिग्रहण से लाभ

फर्स्टसोर्स केशेयरों की कीमत में कुछ प्रवर्तकों द्वारा हिस्सेदारी बेचने की बातचीत के बीच तेज उतार-चढ़ाव देखा गया। मंगलवार को शेयरों की कीमत में 22.6 फीसदी के सुधार के बाद बुधवार को शेयरों की कीमत में 8.4 फीसदी की गिरावट देखी गई और यह 44.30 रुपए के स्तर पर आ गया।

कंपनी के शेयरों की कीमत में गुरुवार को भी गिरावट आई। 1,240 करोड़ की यह बीपीओ कंपनी खराब समय से गुजर रही है। जून 2008 की तिमाही में कंपनी की टॉपलाइन में महज सात फीसदी का सुधार देखा गया और यह 401 करोड़ पर रहा। इसकी वजह कलेक्शन कारोबार रहा जो अमेरिका टैक्स पेमेंट से संबंधित है। हालांकि इसमें कंपनी का कारोबार इतना अच्छा नहीं था जितने की आशा थी।

तेज करेंसी मूवमेंट की वजह से कंपनी ने मेडी एसिस्ट के अधिग्रहण के लिए एफसीसीबी पेशकश के जरिए जो 2750 लाख डॉलर जुटाए थे, उनका परिणाम 40 करोड़ की शुध्द हानि रही। जैसे जैसे रुपया पिछली दो तिमाहियों में कमजोर हुआ,फर्स्टसोर्स को अपने लाभ में गैर-परिचालन हानियां और लॉस स्टेटमेंट एकाउंट को दिखाना पड़ा। अगर रुपये में 39.50 के पहले और सुधार होता है तो हानियां पलट सकती हैं।

एफसीसीबी का कनवरशन 92.30 रुपए की कीमत पर 2012 में होना है। विश्लेषकों का मानना है कि मेडीएसिस्ट की खरीद के लिए दी गई कीमत ऊंची थी। हालांकि फर्स्टसोर्स को डाइवरसिफाइड प्रोडक्ट पोर्टफोलियो से लाभ हुआ है और इसके अतिरिक्त मेडीएसिस्ट का फर्स्टसोर्स से अधिक ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन है।

हेल्थकेयर, बैंकिंग, वित्त्तीय सेवाओं और टेलीकॉम में मजबूत उपस्थिति की वजह से कंपनी का पोर्टफोलियो काफी डाइवरसिफाई हैऔर कंपनी को बीपीओ उद्योग में आगे होने वाली वृध्दि का फायदा मिलना चाहिए। उद्योग पर नजर रखने वालों का कहना है कि भारतीय बीपीओ कंपनियां अभी वैश्विक बीपीओ बाजार में आठ फीसदी की हिस्सेदारी रखती हैं जबकि आगे भी वैश्विक मांग मजबूत रहनी चाहिए।

First Published - August 29, 2008 | 9:59 PM IST

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