डॉलर की मजबूती की वजह से भारतीय शेयर बाजार दुनिया के अन्य प्रमुख बाजारों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।
डॉलर में यह मजबूती 15 जुलाई के बाद से आनी शुरू हुई है, जिससे घरेलू शेयर बाजारों में भी रौनक आने लगी है। पिछले एक महीने के दौरान डॉलर में आई तेजी की वजह से बंबई स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में क्रमश: 14 और 12 फीसदी की तेजी आई है।
इसके उलट ब्राजील और रूस, जो जिंसों के प्रमुख निर्यातक हैं, वहां के बाजारों में इस दौरान तकरीबन 10-21 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि ब्रिटेन के एफटीएसई 100 में इस दौरान 4 फीसदी की तेजी आई है, जबकि प्रमुख एशियाई बाजारों में शुमार हांगकांग और जापान के बाजारों में भी गिरावट का रुख रहा है।
चीन के शेयर बाजार की बात करें, तो इसमें इस दौरान करीब 15 फीसदी की गिरावट आई है। 15 जुलाई से पहले डॉलर दुनिया के प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले काफी कमजोर था और 22 अप्रैल को यह न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया था। विश्लेषकों के मुताबिक, दुनियाभर के कमोडिटी और इक्विटी बाजारों में यूएसडीएक्स (अमेरिकी डॉलर) को हेज फंड के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
उन्होंने बताया कि जब डॉलर कमजोर होता है, वे दुनियायभर के बाजारों में कमोडिटी और इक्विटी शेयर खरीदते हैं, लेकिन जब डॉलर मजबूत होने लगता है, तो वे बिकवाली में जुट जाते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, दुनियाभर में विदेशी मुद्रा विनिमय का तकरीबन 89 फीसदी डॉलर में ही किया जाता है। यही वजह है कि डॉलर को कमोडिटी और इक्विटी बाजारों में हेज फंड के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
हेलियस कैपिटल के फंड मैनेजर समीर अरोड़ा ने बताया कि यह सच है कि निवेशक इन दिनों उस देशों की ओर रुख कर रहे हैं, जहां कामेडिटी की खपत ज्यादा है, बजाय कमोडिटी निर्यातक देशों के। अमेरिकी डॉलर में मजबूती आने की एक वजह यह भी है। यही वजह है कि भारतीय शेयर बाजारों में मजबूती बनी हुई है। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत कामोडिटी के निर्यात की अपेक्षा खपत ज्यादा मात्रा में करता है।
नेटवर्थ स्टॉक ब्रोकिंग के रिसर्च प्रमुख दीपक एस. का कहना है कि दुनियाभर में डॉलर की हेज फंड के तौर पर खरीदारी की जा रही है, यही वजह है कि कमोडिटी की कीमतों में गिरावट आई है। उन्होंने बताया कि भारत कमोडिटी का निर्यातक देश नहीं होने की वजह से यहां निवेश हो रहा है। डॉलर के मजबूत होने से घरेलू बाजार में आईटी कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है।
वर्ष 2005-08 के दौरान डॉलर में कमजोरी का रुख रहा, जिसकी वजह से भारतीय बाजारों में तेजी नहीं देखी गई। डॉलर की मजबूती की वजह से 15 जुलाई के बाद सेंसेक्स के आईटी सूचकांक में करीब 8.50 फीसदी की तेजी दर्ज की गई है।