रुपये के डॉलर के मुकाबले तेजी से कमजोर पड़ने से केंद्र की यूपीए सरकार की पेशानी में बल पड़ गए हैं और पहले ही खतरनाक स्तर पर जा पहुंची मुद्रास्फीति की दर के और बढ़ने की आशंका बन रही है, लेकिन यह स्थिति विदेशी संस्थागत निवेशकों(एफआईआई) के लिए वरदान बनकर आई है।
वे एक बार फिर भारतीय इक्विटी बाजार में निवेश करने के लिए कतार लगा रहे हैं। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार एफआईआई शेयर बाजार में अभी खरीद करना चाहते हैं। बाद में जब रुपया मजबूत होगा तो बिकवाली करेंगे।
सिंगापुर स्थित विदेशी फंड हेलियोस केपिटल मैनेजमेंट में फंड मैनेजर समीर अरोड़ा ने बताया कि वर्तमान स्थिति विदेशी फंडों के निवेश के लिए उपयुक्त है। पिछले एक सप्ताह में एफआईआई द्वारा बाजार में की गई खरीद के आकड़े सेबी के पास उपलब्ध हैं। इसके अनुसार उन्होंने घरेलू बाजार में 700 करोड़ की खरीद की है। इसके चलते शेयर बाजार करीब 600 अंक चढ़कर 17,353 पर जा पहुंचा है।
यह निवेश ऐसे समय में आया है जब बाजार बेहद अस्थिर है और निवेशकों का आत्मविश्वास डगमगाया हुआ है। हालांकि रुपये के कमजोर होने से विदेशी फंड्स को नुकसान भी हुआ है। उनके द्वारा पहले से ही किए गए निवेश राशि का मूल्यांकन भी कम हुआ है। अरोड़ा के अनुसार रुपये में हुई तेजी से गिरावट ने निवेशकों को झकझोर दिया है।
रुपये के मूल्य में हालिया गिरावट 1990 के दशक में पोखरण में किए गए परमाणु विस्फोट के बाद सबसे बड़ी है, तब पश्चिमी देशों ने भारत पर कई प्रतिबंध लगाए थे। उन्होंने कहा भले ही वर्तमान स्थिति में कुछ विदेशी निवेश बाजार को मिल जाए,लेकिन बाजार की कोई निश्चित दिशा तय करना मुश्किल है।
उधर, रुपये के अवमूल्यन पर सरकार की खामोशी से बाजार की चिंताएं और बढ़ रहीं हैं। एक पंजीकृत एफआईआई के सीईओ ने कहा कि अभी सरकार के पॉलिसी मेकर्स को रुपये के मूल्य में हुई इस बड़ी गिरावट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करना बाकी है। क्योंकि इससे अधिकतर निवेशकों के सामने दुविधा की स्थिति निर्मित हो रही है।
55 करोड़ डॉलर के पोर्टफोलियो का प्रबंधन करने वाली केआर चौकसे शेयर एंड सिक्यूरिटीज के सीईओ देवन चौकसे ने बताया कि देश से पेट्रो-डॉलर तेजी से बाहर जा रहा है। इसके चलते यह स्थिति कोई आश्चर्यजनक नहीं है। रुपये के कमजोर होने से शेयरों के दाम डॉलर की तुलना में कम होंगे।
सीमित दायरे के विदेशी निवेशक इन सस्ते शेयरों को खरीदकर फिर रुपये के मजबूत होने पर बेचकर लाभ कमा सकते हैं। तेल कंपनियों द्वारा अमेरिकी डॉलर से की गई तेल की खरीद के कारण शुक्रवार को रुपया डॉलर के मुकाबले अपने 13 माह के सबसे निम्नतम स्तर (42.90 रुपये प्रति डॉलर) पर था। हालांकि कारोबार की समाप्ति पर सुधार दर्ज किया गया ।