पिछले कुछ वर्षों सें एफएमसीजी क्षेत्र से मिलने वाली औसत आय की वजह से इस क्षेत्र के स्टॉक की रेटिंग में कमी आई है। परिणामस्वरूप बाजार में इस क्षेत्र के स्टॉक पिछड़ गए हैं।
देर से ही सही लेकिन इस क्षेत्र की मजबूत वापसी बाजार की कमजोर परिस्थितियों के दौरान हुई है जब निवेशक रक्षात्मक स्टॉक की खरीदारी को तरजीह दे रहे थे।पिछले कुछ वर्षों से जिस बड़ी समस्या से उपभोक्ता वस्तुओं (एफएमसीजी) के निर्माता जूझ रहे थे वह थी लागत मूल्यों में हो रही बढ़ोतरी।
इन कंपनियों द्वारा किए जाने वाले अपेक्षाकृत अधिक कारोबार से परिचालन मार्जिन में इजाफा नहीं हुआ क्योंकि इनमें से अधिकांश कंपनी मजबूत होती अर्थव्यवस्था के बावजूद कीमत नहीं बढ़ा पायी।मॉर्गन स्टैनली के एक अध्ययन के अनुसार कोलगेट और नेस्ले जैसी कंपनियों ने लागत मूल्यों में हुई बढोतरी के मद्देनजर अपने उत्पादों की कीमतों में वृध्दि की लेकिन डाबर और गोदरेज जैसी कंपनियों के लिए ऐसे कदम उठाना कठिन था।
एफएमसीजी के क्षेत्र में बाजार में सेबसे बड़ी कंपनी हिंदुस्तान यूनीलीवर ने औसत मूल्यों में 10 प्रतिशत की बढोतरी की लेकिन यह बढ़ी लागत मूल्यों की भरपाई करने के लिए पर्याप्त नहीं था। उत्पाद शुल्क में दो प्रतिशत की कमी की बजट में की गई घोषणा से कंपनियों को थोड़ी राहत मिलेगी। इसके परिणामस्वरूप, एफएमसीजी कंपनियों को अपना मार्जिन बरकरार रखने में सक्षम होना चाहिए या अगले कुछ वर्षों में उन्हें अपना मार्जिन बढ़ाने में मदद मिलेगी।
निश्चय ही कमोडिटी के मूल्यों में होने वाली वृध्दि से कंपनियों का मार्जिन कम होगा क्योंकि अर्थव्यवस्था के मंदी के दौराने वे शायद ही उत्पादों की कीमतों में वृध्दि कर पाएं।ऐसा अनुमान है कि एफएमसीजी कंपनियों की आय में वर्ष 2008-10 के दौरान 13-24 प्रतिशत की चक्रवृध्दि होगी। इनके स्टॉक का कारोबार वर्तमान में अनुमानित आय के मुकाबले 11-25 गुना पर किया जा रहा है। नेस्ले और हिंदुस्तान यूनीलीवर सबसे महंगे स्टॉक हैं जबकि आईटीसी और डाबर का कारोबार 20 गुना पर किया जा रहा है।
शेयरों का बाइबैक: सही समय
गुजरात फ्लोरोकेमिकल्स जो 789 करोड़ रुपये की कंपनी है का कहना है कि यह अपने शेयर 300 रुपये के अधिकतम मूल्य पर वापस खरीदेगी। इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि इसके शेयर की कीमतों में भारी गिरावट आई है। पिछले सप्ताह यह 52 सप्ताह के निम्तम स्तर 175 रुपये पर आ गया और वर्तमान में इसका कारोबार 191 रुपये पर किया जा रहा है।
जबतक बाजार में जबर्दस्त मजबूती नहीं आती है तब तक 300 रुपये के स्तर तक इसका शीघ्र वापस पहुंचना असंभव सा लगता है। प्रबंधन शेयरों की वापस खरीदारी क्यों करना चाहता है यह सब जानते हैं: वे बचे नकदी का सदुपयोग शेयर खरीदने में करना चाहते हैं जिनका कारोबार उनके वास्तविक मूल्य से कम पर किया जा रहा है। बाजार में चल रही वर्तमान मंदी प्रबंधन के लिए एक महान अवसर है जब वे शेयरधारकों को यह समझा सकते हैं कि उनके स्टॉक की कीमत बाजार द्वारा दर्शायी जा रही कीमतों से कहीं अधिक है।
प्रवर्तकों के लिए भी शेयर खरीद कर अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का उचित अवसर है। 2,858 कंपनियों के बीएसआरबी के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि पिछले एक वर्ष में वैसी कंपनियों की प्रतिशतता में कोई बदलाव नहीं आया है जहां कंपनी के प्रवर्तकों के पास कंपनी के 50 प्रतिशत से अधिक शेयर हैं, यह लगभग 51 प्रतिशत ही बना हुआ है। जिन कंपनियों के पास अधिक नकदी है वे निवेशकों से सीधे तौर पर शेयर खरीद सकते हैं।
जब प्रबंधन शेयरों के वापस खरीदारी की घोषणा करती है तो उन्हें इसी राह पर चलना चाहिए।वर्ष 2004 के जून महीने में रिलायंस एनर्जी के शेयर की वापस खरीदारी से शेयरधारकों का मोह भंग हुआ होगा। एक भी शेयर वापस नहीं खरीदे गए थे यद्यपि 525 रुपये प्रति शेयर की अधिकतम कीमत के हिसाब से 350 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।
मंगलवार को कंपनी नेफिर से 1,600 रुपये के अधिकतम कीमत पर वापस खरीदारी की शुरूआत की। शेयर की कीमत इस स्तर से कम होने की वजह से कंपनी द्वारा वापस खरीदारी न करने का कोई बहाना नहीं था। विदित हो कि मंगलवार को कंपनी के स्टॉक 1,300 रुपये के स्तर पर बंद हुए थे।हिंदुस्तान यूनीलीवर ने हाल ही में 630 करोड़ रुपये खर्च कर 207.13 रुपये के औसत मूल्य अपने शेयरों की वापस खरीदारी की थी।