भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय ने इंडियन डिपॉजिटरी रिसिप्ट्स (आईडीआर) में विदेशी संस्थागत निवेशकों की भागीदारी पर अपनी सहमति प्रदान कर दी है।
आईडीआर, वैश्विक डिपॉजिटरी रिसिप्ट्स का भारतीय समकक्ष है जो कि विदेशी कंपनियों को भारतीय बाजारों से पैसा जुटाने में का अवसर प्रदान करता है। इस फैसले की अधिसूचना जारी किए जाने से पहले इस प्रस्ताव को मंजूरी केलिए कंपनी मामलों के मंत्रालय के पास भेजा गया है।
सूत्रों का कहना है कि कपंनी मामलों के मंत्री इस बात पर भी विचार विमर्श करेंगे कि क्या अप्रवासी भारतीयों को आईडीआर में खरीददारी की अनुमति दी जाए या नहीं क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय दोनों को सिध्दांत रूप में इस पर कोई आपत्ति नहीं है।
उल्लेखनीय है कि इस प्रस्ताव के मूल प्रपत्र में भारतीय मूल केव्यक्ति और भारतीय नागरिक को आईडीआर में निवेश करने की अनुमति प्रदान की गई थी। पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड, सेबी ने आईडीआर जारी करने की न्यूनतम राशि 50 करोड़ रुपये तय की है जबकि खुदरा निवेशकों द्वारा निवेश किए जाने की न्यूनत राशि को बढ़ाकर 2 लाख रुपये तक कर दिया गया है।
गौरतलब है कि अप्रवासी भारतीय और विदेशी संस्थागत निवेशकों को इस तरह के इंस्ट्रमेंट में निवेश करने केलिए रिजर्व बैंक की अनुमति लेनी पड़ती है। इस पूरे घटनाक्रम पर नजर रख रहे नजदीकी सूत्रों का कहना है कि कुछ सप्प्ताह पूर्व लिए गए इस फैसले से लोगों की आईडीआर में दिलचस्पी फिर से बढ़ सकती है।
एक कॉर्पोरेट ट्रीजरर ने इस बारे में कहा कि इस तरह की सुविधा हो जाने से कंपननियांजो कि अब तक डॉलर नियंत्रित सिंडीकेट से ही उधार लिया करती हैं, उनकों अन्य करेंसी में भी उधार लेने की सुविधा मिल सकेगी जिससे कि मुद्राओं में आ रहे उतार-चढ़ाव की स्थिति से बचा जा सकेगा।
गौरतलब है कि आईडीआर की शुरूआत भारत में वर्ष 2004 में की गई थी लेकि न रिजर्व बैंक से मंजूरी मिलने में देरी और तरलता की कमी केकारण इसकी शुरूआत नहीं की जा सकी थी। इससे पहले रिजर्व बैंक ने आईडीआर को विदेशों में अमेरिकी डिपॉजिटरी रिसिप्ट्स और ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसिप्ट्स की तर्ज पर सूचीबध्द अंडरलाइंग इक्विटी शेयर में तब्दील करने पर अपनी आपत्ति जताई थी।