इस साल की शुरुआत में विदेशी और घरेलू बाजारों में आई मंदी के बीच कई विदेशी संस्थागत निवेशकों ने बीएसई-500 की कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी दो फीसदी घटा दी हैं।
पिछली एक तिमाही में इन निवेशकों ने करीब 2.8 अरब डॉलर के शेयर बेचे हैं। बीएसई-500 की इन कंपनियों में अब एफआईआई हिस्सेदारी 17.8 फीसदी ही रह गई है। इस बिकवाली के बाद इन निवेशकों की हिस्सेदारी अब जून 2005 के लेवल पर गई है।
सिटीग्रुप की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीएसई के मार्केट कैप का 90 फीसदी बीएसई-500 की कंपनियों से आता है। लिहाजा इन आंकड़ों से साफ है कि विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे हैं जबकि पिछले पांच साल की तेजी के दौरान इन्ही निवेशकों ने भारतीय बाजार में 52 अरब डॉलर का निवेश किया था।
एक ओर जहां प्रमोटर खरीदारी कर बीएसई-500 की कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं, वहीं इन कंपनियों में पब्लिक होल्डिंग 9.4 फीसदी से घटकर 9 फीसदी रह गयी है। हालांकि प्रमोटरों की हिस्सेदारी में इजाफा कोई नई बात नहीं है क्योकि गिरते बाजार में वह ऐसा ही करते हैं लेकिन एफआई-आई ने पिछले तीन महीनों में सबसे बड़ी बिकवाली की है। जानकारों की मानें तो इसका श्रेय पी नोट्स पर लगी रोक को जाता है।
डीएसपी मेरिल लिंच के एमडी एन्ड्रयू हॉलैंड के मुताबिक पिछले कुछ दिनों में बाजार में आए सुधार से हिस्सेदारी को वापस ठीक करने का मौका मिला है लेकिन अगर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में गिरावट जारी रही तो अभी और करेक्शन आ सकता है और उभरते बाजारों से अभी और पैसा निकाला जा सकता है। जिन कंपनियों में एफआईआई की शेयरहोल्डिंग सबसे ज्यादा घटी उनमें प्रमुख हैं फर्स्ट सोर्स सोल्यूशंस जिसमें उनकी हिस्सेदारी 27.7 फीसदी (दिसंबर 07) से घटकर 5 फीसदी (मार्च 08) रह गई है।
इंडियाबुल्स फाइनेंशियल में भी इस दौरान हिस्सेदारी 46.74 से घटकर 34.2 फीसदी रह गई। सबसे ज्यादा असर पड़ा है एनर्जी सेक्टर में लेकिन ये इंडस्ट्रियल्स, टेलिकॉम, कंज्यूमर और मेटीरियल्स में बुलिश हैं जबकि घरेलू म्युचुअल फंडों ने इस दौरान अपनी 8 फीसदी की हिस्सेदारी बरकरार रखी है और इंडस्ट्रियल्स और कंज्यूमर सेक्टर उन्हे फिलहाल प्रिय हैं और उन्होने आईटी, फाइनेंशियल और एनर्जी सेक्टरों में बिकवाली की है।