बड़े उभरते बाजारों में भारतीय कंपनियों को ही निवेशकों की बेरुखी सबसे ज्यादा झेलनी पड़ रही है।
महंगाई दर को काबू में रखने के सरकारी कोशिशे कंपनियों के मुनाफे पर असर डाल रही हैं और इसका खमियाजा स्टील अथॉरिटी से लेकर ग्रासिम इंडस्ट्रीज तक को झेलना पड़ रहा है।
दूसरी सबसे बड़ी स्टील उत्पादक कंपनी स्टील अथॉरिटी यानी सेल फिलहाल अपनी अर्निंग्स के नौ गुना वैल्यू पर कारोबार कर रही है, जो 2008 की शुरुआत में रही इसकी वैल्यू से 41 फीसदी कम है। इसी तरह देश की तीसरी सबसे बड़ी सीमेन्ट उत्पादक कंपनी ग्रासिम की वैल्यू भी इस दौरान 32 फीसदी घटकर 8.5 गुना रह गई।
भारतीय बाजार की बात की जाए तो इसके प्राइस टु अर्निंग्स में इस दौरान 33 फीसदी की गिरावट देखी गई है। इसकी सबसे बड़ी वजह रही है विदेशी संस्थागत निवेशक जो साल 2000 के बाद पहली बार शुध्द बिकवाल रहे हैं और भारत में इनकी बिकवाली ब्राजील, रूस और चीन से ज्यादा रही है जहां ये दस फीसदी गिरकर 31 फीसदी पर आई है।
ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक मार्च के निचले स्तर से 13 फीसदी सुधरने के बावजूद निवेशक अब भारतीय बाजार पर कम भरोसा कर रहे हैं क्योंकि भारतीय कंपनियां रूस और ब्राजील की कंपनियों से कम कमोडिटी का उत्पादन करती हैं। यही नहीं भारत की जीडीपी दर भी चीन से कम है और यहां कोयले, तेल और कच्चे लोहे की कमी से महंगाई की दर काफी बढ़ चुकी है।
न्यू यार्क की आईएनजी ग्रुप एनवी की असेट मैनेजमेंट इकाई के इंटरनेशनल इक्विटीज और ग्लोबल ग्रोथ के हेड उरी लैंड्समैन के मुताबिक उन्हे भारत में निवेश करने की कोई तगड़ी वजह नहीं दिखाई देती।
वहां की आबादी और प्राकृतिक संसाधनों को देखते हुए महंगाई उनके लिए समस्या खड़ी कर सकती है और सरकार को जीडीपी की दर में कटौती देखनी पड़ सकती है, ब्रिक देशों में भारत ही ऐसा बाजार है जहां लैंड्समैन ने इस महीने की शुरुआत में बिकवाली करने के बाद अभी तक कोई निवेश नहीं किया है। ब्रिक देशों में भारत ही ऐसा देश है जहां की आर्थिक विकास दर इस साल लगातार दूसरी बार सुस्त रहने की संभावना है।