अब म्युचुअल फंड हाउस अपनी छोटी अवधि वाली योजनाओं के साथ (एफएमपी) खुदरा निवेशकों को बड़े पैमाने पर अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।
पिछले महीने म्युचुअल फंडों ने इस तरह की स्कीमों के लिए न्यूनतम निवेश की सीमा 50,000 से घटाकर 5,000 से 10,000 रुपए के बीच कर दी। म्युचुअल फंडों की नजर उन जमाकर्ताओं पर है जो बैंकों की फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) में अपना पैसा जमा करते हैं।
उदाहरण के लिए फ्रैंकलिन टेम्पलटन और टाटा म्युचुअल फंड ने न्यूनतम निवेश की सीमा 10,000 रुपये रखी है जबकि एसबीआई, जेएम फाइनेंशियल और रिलायंस म्युचुअल फंड ने यह राशि 5,000 रुपये निश्चित की है।
निवेश की न्यूनतम राशि की सीमा घटाने की वजह बताते हुए एसबीआई म्युचुअल फंड के प्रमुख(फिक्स्ड इनकम)पारिजात अग्रवाल ने कहा कि एफएमपी को और ज्यादा आकर्षक बनाने केलिए हमने न्यूनतम निवेश की सीमा में कमी की है। जहां तक मिलनेवाले रिटर्न की बात है तो एफएमपी, फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में ज्यादा रिटर्न देते हैं।
उदाहरण के लिए भारतीय स्टेट बैंक और आईसीआईसीआई बैंक अपनी 3 से 6 महीने वाले लघु अवधि की जमा योजनाओं पर क्रमश: 7 और 6.25 प्रतिशत का सालाना रिटर्न देते हैं जबकि हाल में लांच किए गए एफएमपी ने तीन महीनेवाली योजना पर 10.25 से 10.5 प्रतिशत तक के रिटर्न देने का संकेत ( एफएमपी केवल संकेत दे सकती हैं, रिटर्न की गारंटी नहीं) दिया है।
इसके उलट लंबी अवधि के लिए दोनों यानी फिक्स्ड डिपॉजिट और एफएमपी लगभग एक समान रिटर्न देते हैं। उदाहरण के लिए एक साल की फिक्स्ड डिपॉजिट पर अधिकांश बैंक 9.75 प्रतिशत के आसपास रिटर्न दे रहे हैं जबकि कुछ बैंक जैसे आईसीआईसीआई 390 दिन की फिक्स्ड डिपॉजिट पर 10 प्रतिशत का विशेष रिटर्न देते हैं।
दूसरी तरफ लोटस मैंनेजमेंट, सुंदरम बीएनपी पारिबास और बिड़ला सन लाइफ ने 10 से 11 प्रतिशत के बीच रिटर्न देने का संकेत दिया है। एक और बात जो एफएमपी के साथ जुड़ी है, वह है करों का अपेक्षाकृत कम बोझ।
फिक्स्ड डिपॉजिट से मिलने वाले रिटर्न को उस व्यक्ति की व्यक्तिगत आमदनी से जोडा जाता है और अगर वह व्यक्ति अधिकतम करों की श्रेणी में आता है तो उसको फिक्स्ड डिपॉजिट से मिलने वाले रिटर्न पर 33.99 प्रतिशत (सरचार्ज और एजुकेशन सेस मिलाकर) का आयकर अदा करना पड़ेगा जबकि अगर डिविडेंड ऑप्शन का चयन किया जाता है तो एफएमपी से लघु अवधि पर मिलनेवाले रिटर्न पर 14.16 प्रतिशत कर देना पड़ेगा।
दीर्घावधि में एफएमपी को इंडेक्सेसन का लाभ भी मिलता है। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर एफएमपी की अवधि एक साल के भीतर पूरी हो रही है तो उस स्थिति में उस स्थिति में निवेशक को बिना इंडेक्सेशन के10 प्रतिशत का कर देना पड़ेगा जबकि इंडेक्सेशन के साथ 20 प्रतिशत का कर देना पड़ेगा।
इसके अलावा अगर एफएमपी एक साल से अधिक की अवधि की है तो उस स्थिति में निवेशक को दोहरे इंडेक्सेशन का लाभ मिलेगा। एफएमपी में एक और विकल्प है जिसके तहत आप इंटरवल फंड के जरिए एक लघु अवधि वाले एफएमपी से दूसरे एफएमपी में अपने निवेश को स्थानांतरित कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए मासिक या तिमाही का एक विकल्प आप के पास उपलब्ध होगा जिसमें कि अगर आप ने अवधि पूरी होने पर अपनी राशि नहीं ली है तो उस स्थिति में यह राशि स्वयं अगली अवधि में चली जाएगी।जहां तक खतरे की बात है तो पिछले दो सालों के दरम्यान एफएमपी रिटर्न बढ़ाने के लिए रियल एस्टेट और एनबीएफसी में निवेश कर रही थीं।
लेकिन इन क्षेत्रों में आई मंदी को देखते हुए एफएमपी अब थोड़ी सतर्क हो गई हैं। सुदरम बीएनपी पारिबास के प्रमुख (फिक्स्ड इनकम)के रामकुमार का कहना है कि एफएमपी अब पहले से ज्यादा सुरक्षित हो गई है क्योंकि अधिकांश रियल एस्टेट और एनबीएफसी में निवेश करने से परहेज क रने लगे हैं।