क्लोज एंडेड फंड अब बाजार से गायब हो रहे हैं। सेबी के नए नियमों की वजह से अब फंड हाउस ऐसे फंड नहीं लाना चाहते।
दरअसल सेबी ने क्लोज एंडेड फंडों के लिए शुरुआती इश्यू खर्च लेने और एमॉर्टाइजेशन पर रोक लगा दी है जिससे यह फंड अपना आकर्षण खोते जा रहे हैं। पहले फंड हाउस इस तरह के फंडों पर निवेश का 6 फीसदी अपने वितरण और मार्केटिंग के खर्चों के लिए लेते थे।
पिछले साल इस तरह के ढेरों फंड अलग अलग नामों से बाजार में आए थे। लेकिन सेबी के नए नियमों के मुताबिक अब इस तरह के मार्केटिंग खर्चे फंडों को एंट्री लोड (आमतौर पर 2.25 फीसदी) से ही पूरे करने होंगे। बाजार के हालात के मद्देनजर वैसे भी नए फंड बाजार में कम आ रहे हैं लेकिन जो आ भी रहे हैं वो ओपन एंडेड हैं।
मार्गन स्टेन्ली म्युचुअल फंड के ईडी एंथोनी हरेदिया के मुताबिक सेबी के नए नियम से फंडों के अर्थशास्त्र पर असर पडेग़ा और उनकी योजनाओं पर भी इसका असर आ सकता है।
यही वजह है कि इस साल नए फंडों के विज्ञापन भी कम ही देखने को मिले हैं। पहले नए फंडों के लिए खूब प्रचार प्रसार होता था। लेकिन अब इस प्रसार का खर्च उन्हे खुद ही करना पड़ रहा है। हरेदिया के मुताबिक अब बम्पर विज्ञापन देखने को नहीं मिलेंगे। कई बार ये विज्ञापन फंड की किस्म पर भी निर्भर करते हैं। आम तौर पर किसी फंड के कुल कॉरपस में एक से दो करोड़ इस प्रसार पर खर्च किया जाता है, कभी कभी ये 20 करोड़ भी पहुंच जाता है।
इस साल आए कुल 32 नए इक्विटी फंडों में से केवल 5 क्लोज एंडेड हैं, वह भी सेबी के नए नियमों के ऐलान से पहले आ गए थे। और जो नए फंड आने हैं वो भी ओपन एंडेड ही हैं। पहले होने वाले प्रसार से फंड हाउसों ने ही नहीं डिस्ट्रिब्यूटरों ने भी खासी कमाई की है। तब कई डिस्ट्रिब्यूटर तो अपने फायदे के लिए निवेशकों का पैसा पुराने फंडों से निकलवाकर नए फंडों में लगवा देते थे।
वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन के धीरेन्द्र कुमार के सीईओ के मुताबिक फंडों की कीमतों में अब एकरूपता आ गई है। पहले डिस्ट्रिब्यूटर को प्रोडक्ट बेचने पर इंसेन्टिव मिलता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। इसके अलावा फंड का खर्च कम होने से इसका असर रिटर्न पर भी पड़ेगा।