एक आईपीओ में शेयरों के लिए एप्लाई करने के बाद जब रीना पाठक (नाम बदला गया) को न तो उस आईपीओ के शेयर मिले और ना ही रिफंड मिला तो उन्होंने कंपनी से इस बारे में शिकायत की।
कंपनी ने उन्हें मर्चेन्ट बैंकर से शिकायत दर्ज कराने को कहा। जब वह मर्चेन्ट बैंकर के पास गईं तो उस बैंकर ने कहा कि वह तो प्री इश्यू का बैंकर है और उसने अपना पल्ला झाड़ते हुए उन्हें एक और मर्चेन्ट बैंकर का पता थमा दिया जो पोस्ट इश्यू के मामले देख रहा था।
लेकिन जब वह इस बैंकर के दरवाजे पहुंचीं तो रीना पाठक से कहा गया कि उन्हें इश्यू के रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेंट (आरटीए)से संपर्क करना चाहिए। इसके बाद अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद रीना आरटीए से संपर्क नहीं कर सकीं और आखिर वह पहुंचीं लोकल इन्वेस्टर एसोसिएशन की शरण में।
इन्वेस्टर एसोसिएशन ऐसे ही तमाम मामले ले रही हैं, जिनमें निवेशक को आईपीओ के न शेयर मिले ना ही रिफंड। कई मामले ऐसे भी हैं जिनमें उन्हें शेयर एलॉट तो हुए लेकिन उन्हें आईपीओ के 3-4 साल बाद भी मिल नहीं सके।
सेबी इसी तरह की शिकायतों से निपटने के लिए इश्यू की बंदी और उसकी लिस्टिंग के बीच का समय 21 दिन से घटाकर 7 से 10 दिन करने के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। इन्हीं प्रस्तावों में एक प्रस्ताव ऐसा भी है जिसके तहत निवेशक को आईपीओ के शेयर के लिए एप्लाई करते समय पैसा अपने खाते से नहीं निकालना होगा। उसके खाते से पैसा तभी निकलेगा जब उसे शेयर एलॉट हो जाएंगे।
लेकिन इन्वेस्टर एसोसिएशनों का मानना है कि सेबी के ये प्रस्ताव बेशक बहुत ही अच्छे हैं लेकिन इस तरह की शिकायतों के लिए बाजार के इंटरमीडियटरीज को सबसे पहले जिम्मेदार बनाना चाहिए। सेबी से मान्य चेन्नई के एक एसोसिएशन के प्रेसिडेंट एके नारायण के मुताबिक बैंक एलॉटमेंट तक निवेशक का पैसा ब्लॉक रखने के लिए कुछ चार्ज भी करेगा जो निवेशक अपनी जेब से नहीं देना चाहते।
उनके मुताबिक यह खर्च रजिस्ट्रार या फिर इश्यूअर को वहन करना चाहिए। समय करने से 50-60 फीसदी समस्याएं खत्म हो जाएंगी लेकिन निवेशकों की ऐसी शिकायतों को दूर करने के लिए एक नोडल एजेंसी बनाई जानी चाहिए और ऐसे मामलों की देखरेख के लिए एक ऑम्बड्समैन नियुक्त किया जाना चाहिए।
सेबी ने पिछले महीने जारी एक सर्कुलर में साफ किया था कि आईपीओ के लिए एप्लाई करते समय पैन कार्ड की कॉपी देना अनिवार्य नहीं है। इसके पहले कई कलेक्शन सेंटर, एजेंट वगैरह एप्लिकेशन के साथ पैन कार्ड की कॉपी मांगते रहे हैं। इसी सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि सेबी को आईपीओ से जुड़ी शिकायतें लीड मैनेजर को फार्वर्ड कर दी जाएंगी जो सीधे शिकायतकर्ता से संपर्क करेंगें।
लेकिन कई मामलों में पाया गया कि ऐसी भेजी गई शिकायतों का जवाब लीड मैनेजर की जगह आईपीओ जारी करने वाली कंपनी दे रही हैं और लीड मैनेजर केवल कंपनी के जवाब को शिकायतकर्ता और सेबी के पास फार्वर्ड कर दे रहे हैं। सर्कुलर में मर्चेन्ट बैंकरों को ऐसा नहीं करने की सलाह दी गई है।
लेकिन इन्वेस्टर एसोसिएशनों का मानना है कि यह काफी नहीं है। उनका कहना है कि किसी भी आईपीओ में आरटीए की भूमिका अहम होती है लेकिन निवेशकों की शिकायतें दूर करने के मामलें में उनकी भूमिका बहुत ही निराशाजनक रही है। अगर किसी आईपीओ के लिए मिली एक लाख एप्लिकेशनों में 99 हजार ठीक से प्रॉसेस हो जाती है तो लोग बाकी की उन एक हजार एल्किशंस को बिलकुल भूल जाते हैं जिनमें कुछ समस्याएं रही हैं।
मुंबई के एसोसिएशन इंवेस्टर एजुकेशन ऐंड वेलफेयर एसोसिएशन के सेक्रेटरी प्रकाश शाह का कहना है कि सेबी को पहले उन पुराने आईपीओ से जुड़ी शिकायतों को देखना चाहिए जो कंपनियां अब लिस्ट भी हो चुकी हैं। उनका कहना था कि निवेशक को हमारे पास आने की जरूरत ही क्यों पड़नी चाहिए।
ऑल गुजरात इन्वेस्टर प्रोटेक्शन ट्रस्ट के चेयरमैन हेमन्त सिंह झाला के मुताबिक रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेंट से संपर्क कर पाना बहुत ही दुरूह काम हो जाता है। हम भी इस मामले में केवल उस आरटीए का पता देने भर की मदद कर पाते हैं, सेबी को लिखते हैं और शिकायत दूर किए जाने का इंतजार करते हैं।