सरकार आईएफसीआई के 928 करोड़ रुपये के वैकल्पिक परिवर्तनीय ऋण पत्र को इक्विटी में बदल सकती है।
इस कदम से गैर बैंकिंग वित्तीय संस्था को रणनीतिक निवेशक आकृष्ट करने में मदद मिलेगी। सरकार इस संस्था की 15 प्रतिशत हिस्सेदारी अपने पास रखेगी।
एक बार यह प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद आईएफसीआई अपने रणनीतिक निवेशकों के हाथों 26 प्रतिशत हिस्सेदारी बचने के लिए फ्रेश शेयर जारी करेगी। संस्था की बोर्ड मीटिंग के बाद मुख्य कार्यकारी अधिकारी(सीईओ) अतुल कुमार राय ने बताया कि बोर्ड मीटिंग में रणनीति निवेशकों को शामिल करने और सरकार द्वारा रोके वैकल्पिक परिवर्तनीय ऋण पत्र पर चर्चा हुई। इसमें कई कानूनी और प्रक्रिया से जुड़ी हुई जटिलताएं हैं।
इन पर चर्चा के लिए बोर्ड 12 जून को दोबारा बैठक कर रहा है। इससे पहले जब सरकार ने रणनीति निवेशकों को आकृष्ठ करने के प्रयास बंद कर दिए थे तो उसने इस बारे में सरकार को अवगत करा दिया था। इसके बाद संस्था ने रणनीति निवेशकों को आकृष्ट करने की कोशिश फिर से प्रारंभ करने और सरकार द्वारा रोके गए वैकल्पिक परिवर्तनीय ऋण पत्र को इक्विटी में बदलने के विकल्प तलाशने के लिए अर्नेस्ट और यंग एंड सेंट्रम की सेवाएं ली थी।
बोर्ड की बैठक में इन दोनों संस्थाओं की सिफारिशों पर चर्चा हुई, लेकिन इस बारे में कोई निर्णय नहीं हो सका। वर्तमान में सरकार के पास आईएफसीआई का कोई शेयर नहीं है, लेकिन वह दशक के शुरुआत में उसके पास ऋणपत्र थे, यह एनबीएफसी के बेलआउट पैकेज का एक हिस्सा था। इस कंपनी के बोर्ड में उसका एक नामिनी है। वह भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) और आईडीबीआई के मार्फत इस पर नियंत्रण रखती है जो इस संस्था के शेयर धारक हैं।
एलआईसी ने पहले ही अपनी हिस्सेदारी 11.39 प्रतिशत से घटाकर 8.39 प्रतिशत कर ली है। आईएफसीआई ने पिछले साल रणनीतिक निवेशकों से बोली मंगाई थी। लेकिन बाद में इसे वापस लेनी पडी क्योंकि प्रबंधन में नियंत्रण के सवाल पर इसका विरोध किया गया था। एक बोलीकर्ता ने सरकार को जारी ऋणपत्र में अस्पष्टता और भविष्य में उसकी भूमिका को लेकर सवाल उठाए थे। सूत्रों के अनुसार आईएफसीआई ने प्रबंधन में नियंत्रण को लेकर व्याप्त अवरोधों को दूर करने के संकेत दिए हैं।