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डेट में निवेश करना पसंद कर रहे संस्थागत निवेशक

Last Updated- December 07, 2022 | 6:02 PM IST

विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) और म्युचुअल फंडों (एमएफ) ने मंदी के इस माहौल में निवेश के लिए ठिकाना तलाश लिया है।


वे अब डेट और प्राइमरी ट्रेजरी बिल के साथ कमर्शियल पेपर और जमा पत्र जैसे शॉर्ट टर्म कार्पोरेट पेपर में निवेश कर रहे हैं। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के आंकड़ों के  अनुसार 1 अगस्त से प्रारंभ हुए पखवाड़े में इक्विटी मार्केट कमजोर बना रहा।

इस दौरान सेंसेक्स महज  67 अंकों के इजाफे के साथ एक अगस्त 14,656 से बढ़कर 14 अगस्त को 14,725 तक ही पहुंचा।  नतीजतन एफआईआई ने शेयर बाजार से मुंह मोड़ते हुए इसी समयावधि में 561 करोड़ रुपये डेट मार्केट में लगाए जबकि इस दौरान इक्विटी बाजार से 7.2 करोड़ रुपये निकाले।

म्युचुअल फंड तो डेट इंस्ट्रूमेंट में शुध्द खरीददार रहे। उन्होंने कुल 3477 करोड़ रुपये की खरीदारी की जबकि इसी दौरान उन्होंने इक्विटी बाजार में 822 करोड़ रुपये की बिकवाली की। इसी समयावधि में पिछले वर्ष 2007 में एफ आईआई डेट और इक्विटी दोनों बाजारों में शुध्द बिकवाली कर रहे थे। इसका सबसे बड़ा कारण उस समय जापान की मुद्रा येन का अवमूल्यन था जबकि म्युचुअल फंड तब दोनों बाजारों में शुध्द खरीददार  थे।

डीलरों का कहना है कि एफआईआई ट्रेजरी बिल का रुख कर रहे हैं क्योकि इसमें निवेश कर उन्हें वैल्यूएशन और प्रोविजनिंग की कोई जरूरत नहीं रह जाती। दूसरी ओर सीपी यानी कॉमर्शियल पेपर (कंपनी द्वारा पैसे जुटाने के लिए जारी किए गए 15 दिन से एक साल वाले पत्र) और सीडी यानी सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (बैंकों द्वारा पैसे जुटाने को जारी किए गए 15 दिन से एक साल तक के पत्र) अच्छा रिटर्न दे रहे हैं।

डीलरों का कहना है कि इस समय रिजर्व बैंक की कड़ी मौद्रिक नीति के कारण तरलता तंगहाल है। लिहाजा ईल्ड कर्व(मैच्योरिटी तक ब्याज दरों का ग्रॉफ) कम हो गया है या फिर कई जगह उतना ही है। इस स्थिति में टी-बिल खरीदना समझदारी की बात है क्योंकि इसमें वैल्यूएशन की जरूरत नहीं होती।

अधिकांश दिनों में 91 दिनों के ट्रेजरी-बिल और 10 साल के पत्रों में ब्याज दर 9.05 से 9.10 फीसदी मिलती है। उन्होंने आगे बताया कि कंपनियां सीडी और सीपी छोटी अवधि के इंस्ट्रूमेंट के जरिए पैसे लौटाना पसंद कर रही हैं क्योंकि साल में 10 फीसदी ब्याज दर के बजाय तीन माह में 10-11 फीसदी ब्याज दर देना अधिक बेहतर है। अधिकांश बैंकें और म्युचुअल फंड अपनी कार्पोरेट हिस्सेदारी आकर्षक कूपन रेट के बाद भी बेचना नहीं चाहते। 

First Published - August 21, 2008 | 10:07 PM IST

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