निजी क्षेत्र की अग्रणी बीमा कंपनी आईसीआईसीआई प्रूडेन्शियल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के नए खुदरा कारोबार से प्राप्त होने वाले प्रीमियम में मार्च महीने के दौरान केवल 20 प्रतिशत की वृध्दि हुई।
और मार्च 2008 में समाप्त हुई तिमाही में इसमें 40 प्रतिशत की बढ़त देखी गई।इससे आईसीआईसीआई प्रूडेन्शियल के वर्ष 2007-08 की विकास दर 70 प्रतिशत से नीचे आर् गई। प्रथम 11 महीनों के लिए विकास की औसत दर 80 प्रतिशत थी।
मार्च के नतीजों से किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुचने की बात करते हुए उद्योग पर निगाह रखने वालों का मानना है कि शेयर बाजार के हाल को देखते हुए जीवन बीमा उद्योग का विकास वर्तमान वित्त वर्ष में धीमी हो सकती है।वर्ष 2007-2008 में निजी क्षेत्र की जीवन बीमा कंपनियों की प्रीमियम-आय में लगभग 80 प्रतिशत की वृध्दि होने का अनुमान है। फरवरी के अंत तक यह लगभग 90 प्रतिशत था।
मार्च 2008 की तिमाही में यूनिट लिंक्ड बीमा योजनाओं (यूलिप) के औसत प्रतिफल में 6 से 30 प्रतिशत तक की गिरावट आई। इस दौरान सेंसेक्स में भी लगभग 23 प्रतिशत की गिरावट आई। कई योजनाओं के प्रदर्शन बाजार के मुकाबले खराब रहे।
हालांकि, यह देखते हुए बीमा योजनाएं दीर्घकालीन होती हैं, उद्योग के फंड प्रबंधकों के लिए तीन महीने का प्रतिफल शायद ही कोई महत्व रखता है।इसके बावजूद, अगर प्रीमियम से होने वाली आय में कमी आती है तो इसका प्रभाव बाजार पर कुछ हद तक हो सकता है क्योंकि वर्तमान में बेची जाने वाली तकरीबन 85 प्रतिशत जीवन बीमा योजनाएं यूलिप होती हैं। निजी क्षेत्र के बीमाकर्ता अधिकांशत: यूलिप बेचने पर ही बल देते हैं।
इन प्रीमियम से प्राप्त औसतन 50 प्रतिशत राशि का निवेश इक्विटी में किया जा रहा था और शेष का ऋण उपकरणों में। हालांकि, फंड प्रबंधकों का कहना है कि धीरे-धीरे इक्विटी में निवेश का हिस्सा बढ़ा कर 80-90 प्रतिशत किया जा रहा है। अनुमानों के मुताबिक वर्ष 2007-2008 में जीवन बीमा कंपनियों द्वारा बाजार में 55,000 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है।
दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में जीवन बीमा कंपनियों के वितरण चैनलों में आक्रामक रुप से विस्तार चल रहे होने से निजी क्षेत्र की जीवन बीमा कंपनियों के इस वर्ष के जनवरी और फरवरी माह के प्रीमियम में 95 प्रतिशत की वृध्दि हुई है। प्रत्येक पॉलिसी का वार्षिक प्रीमियम (टिकट साइज) भी उद्योग के औसत टिकट साइज 24,000-25000 रुपये वार्षिक प्रति पॉलिसी के बराबर ही रहा है।
इससे उद्योग पर निगाह रखने वालों को अचुभा हुआ है। क्योंकि उनका अनुमान था कि जीवन बीमा कंपनियों के छोटे शहरों में प्रवेश करने पर टिकट साइज छोटा होगा। हालांकि अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। इससे पता चलताहै कि छोटे शहरों में भी धन है।