पिछले के छह महीने ब्रोकिंग फर्मों के लिए बहुत प्रतिकूल रहें हैं। सितंबर की इस दूसरी चुनौतीपूर्ण तिमाही में भी मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेस ने अपने प्रॉफिट ऑफ्टर टैक्स में सिक्वेंशियल स्तर पर 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है और यह 27 करोड रुपये रहा।
हालांकि साल-दर-साल के हिसाब से कंपनी का पीएटी में 17 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। कपंनी के टॉपलाइन में सितंबर की दूसरी तिमाही में 3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई जबकि पिछले साल यानी 2007 की जून तिमाही में इसमें 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी।
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कंपनी के प्रमुख क्षेत्रों से आनेवाले राजस्व में 6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है जबकि कंपनी के इन्वेस्टमेंट बैंकिंग कारोबार में 11 प्रतिशत का घाटा हुआ है। हालांकि फंड आधारित कारोबार जैसे प्राइवेट इक्विटी और पोर्टफोलियो मैंनेजमेंट ने बेहतर प्रदर्शन किया और इसमें 54 प्रतिशत की बढोतरी हुई है।
कंपनी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 280 आधार अंकों के उछाल के साथ 40 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया जबकि वित्त वर्ष 2008 में यह 37 प्रतिशत था। कंपनी के मुनाफे में बढ़ोतरी का कारण बिजनेस मिक्स में परिवर्तन का होना रहा है और फीस आधारित और फंड आधारित कारोबार में जिसमें कि परिचालन खर्च कम होता है, में तेजी देखने को मिली है।
उदाहरण के लिए ब्रोकरेज कारोबार का कपंनी के राजस्व में सितंबर तिमाही में योगदान 69 प्रतिशत था जोकि वित्त वर्ष 2008 के 80 प्रतिशत की तुलना में काफी कम है। कपंनी अगले चार से छह महीनों में अपनी परिसंपत्ति प्रबंधन कपंनी को लांच करने की योजना बना रही है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेस की बाजार में हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2009 की पहले छमाही में लुढ़ककर 4.5 प्रतिशत के आसपास आ गया है जबकि वित्त वर्ष 2008 में यह 4.7 प्रतिशत के स्तर पर था। कपंनी इसका कारण बताते हुए कहती है कि इसने अपने क्लाइंटों को अनिश्चितता से भरे कारोबारी माहौल से दूर रहने के लिए कहा जिससे कारण कि वॉल्यूम में कमी आई है।
वित्तीय संकट से जूझ रहे शेयर बाजार को देखकर इसकी संभावना कम ही दिखती है कि निवेशक किसी जल्दबाजी में आकर निवेश करेंगे। फिलहाल मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विस के शेयरों का कारोबार 78.40 रुपये पर वित्त वर्ष 2009 अनुमानित अर्निंग्स के 10.5 गुना के स्तर पर हो रहा है।
दवा कंपनियां: पूरी तरह नहीं उबरीं?
जहां तक राजस्व की बात है तो सितंबर 2008 की तिमाही भारतीय दवा कंपनियों के लिए बेहतर रहना चाहिए। जेनरिक दवा कंपनियां और कांट्रेक्ट मैन्यूफैक्चरिंग और रिसर्च (सीआरएएमएस) दोनों के टॉपलाइन ग्रोथ में विदेशों और घरेलू बाजार में बेहतर प्रदर्शन के कारण 22-24 प्रतिशत तक की मजबूत बढ़ोतरी होनी चाहिए।
जून की तिमाही की तरह ही बेहतर राजस्व से ऑपेरटिंग मार्जिन में बढ़ोतरी दर्ज होनी चाहिए और विश्लेषकों का कहना है कि इसमें 80-100 आधार अंकों की बढ़ोतरी होनी चाहिए। हालांकि इस तिमाही में रुपये में आई गिरावट के कारण कुछ कंपनियों को मार्क-टू-मार्केट ट्रांजीशनल घाटा हो सकता है। उल्लेखनीय है कि जून से सितंबर की तिमाही केदौरान डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में 8 प्रतिशत तक की गिरावट आई है।
बहुराष्ट्रीय कपंनियों के राजस्व में बढ़ोतरी सपाट रह सकती है। उदाहरण के लिए ग्लेक्सोस्मिथलाइन ने अपने सूक्ष्म रसायन कारोबार को बेच दिया है जिसकी वजह से राजस्व के 4 प्रतिशत की दर से विकास करने की संभावना है जबकि खर्च में बढोतरी के कारण खर्च के मार्जिन के सपाट रहने की संभावना है।
करीब 6,976 करोड़ रुपये वाली रैनबेक्सी की बिक्री में 20 प्रतिशत की बढोतरी होने की संभावना है और साथ ही ऑपरेटिंग मार्जिन के भी बेहतर रहने की संभावना है। हालांकि परिचालन घाटे की वजह से बॉटमलाइन ग्रोथ में गिरावट दर्ज की जा सकती है।
सिपला के टॉपलाइन में अधिक बेस इफेक्ट के कारण 11-12 प्रतिशत की अपेक्षाकृत कम बढ़ोतरी होनी चाहिए। इस साल की जून की तिमाही में सिपला के टॉपलाइन ग्रोथ निर्यात में आई 50 प्रतिशत की बढोतरी के कारण 34 प्रतिशत रहा था। इसी तरह 5,001 करोड वाले डॉक्टर रेड्डी के टॉपलाइन ग्रोथ में इसके ब्रांडेड फॉर्मुलेशन का बहुत बडा योगदान होगा।
जून 2008 की तिमाही में फॉरम्यूलेशन का निर्यात 19 प्रतिशत के बराबर था। हाल में कंपनी द्वारा बीएएसएफ के यूएस फेसिलिटी के अधिग्रहण से कपंनी की बिक्री में जबरदस्त तेजी आएगी क्योंकि इससे कंपनी को अमेरिकी सरकारी टेंडर में भागीदारी का मौका मिलेगा।
जेनरिक और कस्टम केमिकल सिंथेसिस सेगमेंट दोनों में कारोबार करनेवाली कंपनी डिविस लैब्स की बिक्री में 26-26 प्रतिशत बढ़ोतरी होनी चाहिए जबकि ऑपरेटिंग मार्जिन में 35-50 आधार अंकों की बढ़ोतरी होने की संभावना है।