ब्याज दरों की अनिश्चितता के चलते म्युचुअल फंडों ने वित्तीय क्षेत्र में अपना एक्सपोजर घटा दिया है।
पिछले छह महीनों के दौरान यह पाया गया है कि भारत के शीर्ष दस म्युचुअल फंडों की स्कीमों (एसेट् अंडर मैनेजमेंट के टर्म में) का फाइनेंशियल सर्विस क्षेत्र की कंपनियों के शेयरों के प्रति रुझान घटा है। उनकी इस क्षेत्र की हिस्सेदारी में 14 फीसदी की कटौती दर्ज गई है और अब उनका निवेश हेल्थकेयर, टेलीकॉम समेत मेटल शेयरों में ज्यादा हो रहा है।
देश के दो सबसे बड़े बैंकों स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और आईसीआईसीआई बैंकों को भी म्युचुअल फंडों द्वारा उनकी हिस्सेदारी में सबसे बड़ी कटौती झेलनी पड़ी है। इस प्रकार फंडों ने एसबीआई से अपनी होल्डिंग में 16.1 फीसद औरआईसीआईसीआई बैंक से 7.1 फीसदी तक की होल्डिंग कम कर दी है। यह कमी जनवरी से लेकर जून तक के दरम्यान हुई है। जनवरी महीने में आईसीआईसीआई बैंक में 170 इक्विटी डाइवर्सिफाइड फंडों के कुल 3 करोड़ 58 लाख शेयर में थे।
लेकिन अब यह आंकडा गिरकर 3 करोड़ 32 लाख पर पहुंच गया है। स्टेट बैंक की बात करें तो जून के अंत तक इन फंडों ने इस बैंक से कुल हिस्सेदारी में से 16.1 फीसदी निकाल लिए हैं जिससे शेयरों की संख्या 99 लाख तक पहुंच गई है। जनवरी में शेयरों की संख्या 1 करोड़ 18 लाख थी। जनवरी से जून के बीच की बात करें तो इन्होंने वित्तीय क्षेत्रों की नेट एसेट् में पांच फीसदी की कमी कर दी है। यूटीआई म्युचुअल फंड ने अपने एक्सपोजर में कुल छह फीसदी की कमी की है।
इस बाबत फंड मैनेजरों का कहना है कि म्युचुअल फंड उद्योग उन शेयरों के प्रति काफी सतर्क रवैया रखेगा जो ब्याज दर के प्रति संवेदनशील होंगे। बात जाहिर सी है कि दहाई अंक की मुद्रास्फीति को काबू में करने के लिए आरबीआई सख्त मौद्रिक नीति अपना सकता है। लिहाजा ब्याज दर से प्रभावित शेयर मसलन बैंकिंग और रियल एस्टेट की बात करें, खासे प्रभावित होंगे। रिलायंस म्युचुअल फंड के एक सीनियर एक्जीक्यूटिव का कहना है कि पिछले छह महीनों के दौरान बैंकिंग और फाइनेंशियल सर्विसेज के बुनियादी तत्वों पर काफी असर पड़ा है।
इसके अलावा ब्याज दरों में उछाल का रुख बना हुआ है और मैक्रो परिदृश्य अभी भी अनिश्चित बना हुआ है। रुपये में गिरावट के चलते फार्मा के शेयरों में पिछले कुछ महीनों के दौरान उछाल देखने को मिला है। डीएसपी मेरिल लिंच के कॉरपोरेट स्ट्रैटजी के वाइस प्रेसीडेंट अनूप माहेश्वरी कहते हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पॉलिसी फ्रंट पर दबाव झेलना पड़ सकता है। इससे उनके मुनाफे पर असर पड़ना लाजिमी है और उन्हें मुनाफे के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है।
इन्वेस्टमेंट बुक पर मार्क-टू-मार्केट घाटे के आसार खासे बढ़े हैं। इसी का तकाजा है कि फंड मैनेजर बैंकिंग के शेयरों में निवेश कम कर रहे हैं। हालांकि इस साल के तुरंत बाद ये फंड इन सेक्टरों में अपना एक्सपोजर फिर से बढ़ा सक ते हैं। रिलायंस ग्रोथ फंड, जो कुल 4,856.16 करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों का प्रबंधन करता है, ने बैंकों और फाइनेंनसियल सेक्टरों के शेयरों से एक्सपोजर 5.21 फीसदी से घटाकर 1.61 फीसदी कर दिया है।