पिछला सप्ताह भारतीय म्युचुअल फंड उद्योग के लिहाज से अभूतपूर्व रहा है। करीब एक दर्जन से ज्यादा लिक्विड फंडों की शुध्द परिसंपत्ति मूल्यों(एनएवी ) में गिरावट देखने को मिली है।
उदाहरण के लिए मिरे एसेट मैंनेंजमेंट कंपनी के छह लिक्विड प्लस फंड के एनएवी में सोमवार को 7.50 रुपये की गिरावट आई जबकि शुक्रवार को इसमें 6 रुपये तक की गिरावट आई है यानी दो दिनों में ही 13.50 रुपए गिरावट। इसी तरह कई अन्य लिक्विड फंड प्लस को भी इसी तरह का नुकसान उठाना पडा है।
इस गिरावट के पीछे कारण यह है कि संस्थानों की तरफ से इन फंडों पर रिडेम्पशन का दबाव बन रहा था जिसके कारण कि फंड हाउस ने लिक्विड फंडों को बाजार में जो भी कीमतें मिल रही थी, उसी पर बेचना बेहतर लगा जिससे कि इस तरह का घाटा देखने को मिल रहा है।
बाजार में कुछ इस तरह की भी अफवाह थी कि कुछ फंडों ने डीफाल्ट तक कर दिया। उल्लेखनीय है कि लिक्विड फंड अल्ट्रा शॉर्ट-टर्म फंड होते हैं जोकि कंपनियों द्वारा बैंक डिपॉजिट के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किए जाते है। लिक्विड फंड के विपरीत जोकि सिर्फ शार्ट-टर्म वाले एक साल या उससे कम की अवधि वाले पेपर्स में निवेश करते हैं, लिक्विड प्लस फंड अपने पोर्टफोलियो का बहुत बडा हिस्सा लांग-टर्म पेपर्स में बेहतर रिटर्न पाने के लिए निवेश करते हैं।
लिक्विड फंडों के ओपन-एंडेड होने के कारण निवेशक किसी भी समय इससे अपना निवेश निकाल सकते हैं। एक फंड हाउस के वरिष्ठ कार्यकारी ने कहा कि रिडेंप्शन के कारण सबसे ज्यादा घाटा शॉर्ट-टर्म फंडों को हुआ है। इसका कारण कॉर्पोरेट क्लाइंटों के बीच बढ़ती चिंता है। अब इसमें खुदरा निवेशक भी रिडेंपशन के दौर में शामिल हो गए हैं और इस महीने की शुरूआत से लेकर अब तक करीब 30,000 करोड़ रुपये निकाले जा चुके हैं।