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ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंडों में निवेश पर NBFC को नियामक से राहत की आस

आरबीआई ने एनबीएफसी व बैंकों को निर्देश दिया था कि वह ऐसी परिसंपत्तियों की 30 दिन के भीतर बिकवाली करे या उसके लिए पूरा प्रावधान करे, अगर वह इस समयसीमा का पालन न करना चाहता हो।

Last Updated- January 16, 2024 | 11:24 PM IST
Fund

ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंडों (एआईएफ) ने वित्तीय संस्थानों की तरफ से कोई खास निवेश निकासी नहीं देखी है जबकि अपने निवेश की बिकवाली या उसके लिए पूरा प्रावधान करने की भारतीय रिजर्व बैंक की समयसीमा इस हफ्ते खत्म हो रही
है। सूत्रों ने कहा कि उद्योग ने बैंकिंग नियामक को कुछ सुझाव दिए हैं, जिसके आधार पर वह कुछ निश्चित छूट या विस्तार मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है।

19 दिसंबर को आरबीआई ने वित्तीय संस्थानों व बैंकों पर एआईएफ में निवेश पर पाबंदी लगाई थी जहां किसी देनदार फर्म के साथ किसी तरह का डाउनस्ट्रीम लिंक हो या वहां उधार दिया किया गया हो। इसका मतलब यह है कि अगर बैंक या एनबीएफसी ने पिछले 12 महीने में फर्म को उधारी दी है तो वह ऐसे एआईएफ में निवेश नहीं कर सकता, जो उस फर्म में निवेश कर रहा हो। यह नियम नियामक ने संभावित तौर पर कर्ज भुगतान में डिफॉल्ट को रोकने के लिए नए कर्ज देने पर पाबंदी लगाने की खातिर जारी किया था।

आरबीआई ने एनबीएफसी व बैंकों को निर्देश दिया था कि वह ऐसी परिसंपत्तियों की 30 दिन के भीतर बिकवाली करे या उसके लिए पूरा प्रावधान करे, अगर वह इस समयसीमा का पालन न करना चाहता हो।

सूत्रों ने कहा कि अभी तक एनबीएफसी की तरफ से कैटिगरी-3 फंडों से निवेश निकासी हुई है, जो सूचीबद्ध कंपनियों में निवेश करता है जबकि इससे निवेश निकासी अपेक्षाकृत आसान होती है, जो पक्षकारों के बीच कुछ निश्चित करारों पर निर्भर करता है। उद्योग के अधिकारियों ने कहा, समयसीमा करीब आने के बाद भी कोई बड़ी निकासी नहीं हुई है।

असूचीबद्ध परिसंपत्तियों मसलन वेंचर डेट, इन्फ्रास्ट्रक्चर, रियल एस्टेट आदि से निवेश निकासी पर चर्चा शुरू हो चुकी है। हालांकि एनबीएफसी को डर है कि अगर वे प्रावधान के बजाय निवेश निकासी का फैसला लेते हैं तो उन्हें बड़ा घाटा उठाना पड़ सकता है। ये परिसंपत्तियां ज्यादातर कैटिगरी-1 व कैटिगरी-2 एआईएफ में हैं और इनसे निवेश निकासी मुश्किल है।

एक सूत्र ने कहा, कुछ एनबीएफसी द्वितीयक खरीदारों मसलन फैमिली ऑफिस, विदेशी निवेशकों आदि की तलाश कर रहे हैं, लेकिन प्राइस डिस्कवरी अहम मसला है। चूंकि एनबीएफसी के लिए नियामकीय अनिवार्यता निवेश निकासी की है, ऐसे में बाजार में मांगी जा रही छूट काफी ऊंची है, जिससे उन्हें 50 से 80 फीसदी तक की कटौती झेलने पड़ सकती है। इसकी वजह यह है कि ऐसे मामलों में परिसंपत्तियों को लेकर ड्यू डिलिजेंस के लले काफी कम समय होगा। उद्योग के सूत्रों के मुताबिक, एआईएफ उद्योग पर अनुमानित असर करीब 7 से 8 अरब डॉलर का हो सकता है।

दिसंबर में पीरामल एंटरप्राइजेज ने ऐलान किया था कि वह एआईएफ में निवेशित 3,164 करोड़ रुपये का समायोजन कैपिटल फंडों या प्रावधानों के जरिए करेगी। आईआईएफएल फाइनैंस को भी अपनी सहायक के जरिए किए 161 करोड़ रुपये के निवेश का खुलासा करना पड़ा था, जिसके लिए प्रावधान की दरकार होगी। एआईएफ की उद्योग निकाय इंडियन प्राइवेट इक्विटी ऐंड वेंचर कैपिटल एसोसिएशन को इस संबंध में जानकारी के लिए भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं मिला।

निशिथ देसाई एसोसिएट्स की लीडर नंदिनी पाठक ने कहा, अगर भविष्य में एआईएफ का गठन होता है तो आरबीआई पूंजी जुटाने के मामले में विनियमित इकाइयों के लिए आसान प्रक्रिया बना सकता है, जिसका इस्तेमाल पोर्टफोलियो कंपनियों में निवेश के लिए किया जाएगा, जिन्हें विनियमित इकाई के खाते में एनपीए के तौर पर वर्गीकृत किया गया है।

First Published - January 16, 2024 | 11:24 PM IST

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