मंदी की गिरफ्त में फंसे शेयर बाजारों के कारण आम निवेशकों का इक्विटी फंडों के प्रति आकर्षण भले ही कम हो गया हो पर पर एक्सचेंज-ट्रेडेड फंडों (ईटीएफ) को लेकर लोगों का आकर्षण नहीं घटा है।
हाल में बेंचमार्क असेट कंपनी (एएमसी) ने सेबी को सिल्वर एक्सचेंज-लिस्टेड फंड के लिए अपना ऑफर दस्तावेज दिया है। वह चांदी से जुड़ी अन्य सिक्योरिटीज में निवेश के लिए भी एक्सचेंज ट्रेडेड फंड लाना चाहती है, इसके लिए भी उसने सेबी में दरख्वास्त दी है।
हालांकि सेबी का नियम यही है कि कोई भी फंड सीधे चांदी में निवेश नहीं कर सकते क्योंकि सेबी इसके लिए किसी प्रकार की कोई सुरक्षा नहीं देता है। सेबी ने सोने को सिक्योरिटी का दर्जा दे रखा है पर भारत में अभी चांदी को अभी यह दर्जा नही मिला है। ठीक इसी तरह की अड़चन गोल्ड इटीएफ की शुरूआत करने के दौरान भी आई थी और इसी कारण उसके बाजार में उतरने में देर हुई थी।
ऐसे में कंपनी ईटीएफ निवेशकों का पैसे कहां लगाएंगी, इस सवाल पर बेंचमार्क के कार्यकारी निदेशक राजन मेहता कहते हैं कि निवेशकों का पैसा विदेशी सिल्वर ईटीएफ यूनिटों में लगाया जाएगा। और चूंकि यह निवेश फंड ऑफ फंड की श्रेणी में आता है। लिहाजा टैक्स एक कारक बन सकता है। बेंचमार्क एएमसी की इस योजना को सिल्वर बीईईएस कहा जाएगा और इस स्कीम के तहत हर यूनिट की कीमत 100 ग्राम चांदी की कीमत के बराबर होगी। इस फंड के लिए नए फंड ऑफर के दौरान एंट्री लोड 2.25 फीसदी रहेगा।
अगर ईटीएफ के संदर्भ में बात करें तो इस समय भारतीय बाजार में गोल्ड ईटीएफ हैं। राजन मेहता कहते हैं कि आमतौर पर जो सोने की ओर आकर्षित होते हैं या फिर निवेश के विकल्प तलाशते हैं वे चांदी को भी कम अहमियत नहीं देते हैं। साथ ही, चांदी सोने के मुकाबले कहीं ज्यादा वोलटाइल है यानी इसमें उतार-चढ़ाव ज्यादा होते हैं। यह पूछे जाने पर कि सिल्वर ईटीएफ में निवेश के क्या-क्या फायदे हैं, तो उनका कहना था कि सबसे पहले तो इसके भंडारण की कोई जरुरत नहीं पड़ेगी।
दूसरा यह कि निवेशक बतौर यूनिट इसकी खरीद बिक्री भी कर सकेंगे। किस तरह के निवेशकों को आकर्षित किया जाएगा, यह पूछने पर उनका कहना था कि जो लंबी अवधि में निवेश करना चाहते हैं, उनके लिए यह अच्छा रहेगा और हम ऐसे ही निवेशकों को आकर्षित करेंगे। चांदी के बाजार पर उनका कहना था कि भारत में इसका उत्पादन कम है जबकि मांग ज्यादा होने के कारण इसका भविष्य उवल है। स्टांसबेरी एंड एसोसिएट्स की रिपोर्ट ऐसे कारण बताती है जिनके चलते सिल्वर ईटीएफ में निवेश एक बढ़िया विकल्प हो सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक इस साल के रिटर्न पर नजर डालें तो चांदी ने सोने के 11.8 फीसदी के मुकाबले 22.6 फीसदी का रिटर्न दिया है। खासकर अमेरिका की बात करें तो वहां उधारी के संकट और ब्याज दरों में कटौती के कारण चांदी की खरीद के प्रति लोग खासे आकर्षित हुए हैं। मौजूदा कीमती धातुओं के दामों के बीच तुलना करें तो चांदी सबसे सस्ती नजर आएगी। सोने और चांदी के आपसी संबंध की बात करें तो 2005 के बाद से इस तारीख तक दोनों की कीमतों के बीच कुल 97.4 फीसदी का सह-संबंध रहा है जबकि सोने के मुकाबले उद्योग में चांदी का व्यापक इस्तेमाल होता है।
इसके अलावा इसकी विद्युत और थर्मल चालकता सबसे बढ़िया होती है। लिहाजा, इसका इस्तेमाल कई रुपों में होता है। नतीजतन चांदी की मांग कुल पांच से सात प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। फोटोग्राफी क्षेत्र की बात करें तो कुल 3420 लाख ओंस और जवाहरात में 2050 लाख औंस चांदी का इस्तेमाल होता है। भारत में इसके उत्पादन की बात की जाए तो महज 21 लाख ओंस का उत्पादन हो पाता है। लिहाजा, कुल 11 करोड़ औंस चांदी भारत को आयात करनी पड़ती है। विश्व स्तर पर भारत अमेरिका और जापान के बाद तीसरा स्थान है। इस प्रकार निवेश के लिहाज से यह एक फायदेमंद विकल्प है।
अगर हम चांदी की कीमत पर गौर फरमाएं तो पाएंगे कि 2003 के बाद से इसकी कीमतें तिगुनी हुई हैं और साल 2007 में तो इसकी कीमतों में कुल 47 फीसदी का इजाफा हुआ है। जाहिर है कि अगर चांदी की कीमत 50 डॉलर प्रति ओंस को पार कर जाए तो इसमें किसी को कोई आश्चर्य नही होना चाहिए। जबकि अगर हम इस साल के पहले महीने स्टॉक प्राइसेस ऑन मुंबई गोल्ड की बात करें तो यहां चांदी की कीमत उस समय 19,480 रुपये प्रति किलो थी जो अब इस वक्त (24 जुलाई को) 26,250 रुपये प्रति किलो है।
अगर इसकी हम सोने की कीमतों से तुलना करें तो इस साल जनवरी में सोने की कीमत 10705 रुपये प्रति किलो थी जो अभी 12695 रुपये प्रति किलो है। इस प्रकार यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि दोनो की कीमतों में किस तेजी से इजाफा हो रहा है। इसके अलावा चांदी की औद्योगिक खपत सोने के मुकाबले ज्यादा होने के कारण लोग इसे परिसंपत्ति के रुप में रखना पसंद कर रहे हैं। विकासशील देशों मसलन ब्राजील, चीन, भारत और यहां तक कि रूस जैसे देशों में भी वहां के परिवार इसका अपने पारिवारिक निवेश के रुप में लगातार इस्तेमाल कर रहे हैं।
1973 से 1980 के दौरान सोने की कीमतों में कुल 710 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया जबकि इसी दौरान अगर चांदी की कीमतों और गेन का जायजा लिया जाए तो इसमें 1,481 फीसदी का उछाल दर्ज हुआ है। तब मुद्रास्फीति की दर भी 8.2 फीसदी थी जबकि इस वक्त भी मुद्रास्फीति की दर काफी ज्यादा है। लिहाजा, कमोडिटी की बढ़ती कीमतों के कारण निर्माताओं को अपने उत्पादों की कीमतें बढ़ाने को मजबूर होना पड़ सकता है। यहां अमेरिकी की स्थिति ज्यादा अहम है क्योंकि उस पर प्रभाव का मतलब है अमूमन हर देश पर असर पड़ना।
और जिस तरह महंगाई चरम पर है उससे तो यही लगता है कि डॉलर के मुकाबले लोग सोने या चांदी में निवेश की ओर रुख करेंगे। जहां तक मुद्रा बाजार का सवाल है तो यहां शुरू से ही सोने और चांदी का दबदबा रहा है। अक्सर यह देखा गया है, खासकर पश्चिमी देशों में जब मुद्रास्फीति अपने चरम पर पहुंची है तब-तब लोगों का भरोसा डॉलर या पाउंड से उठा है और लोगों ने सोने और चांदी को मुद्रा के विकल्प में रखना मुफीद समझा है। जहां तक सोने का सवाल है तो इसकी मांग में इसके पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए किसी प्रकार की कमी की संभावना नहीं लगती है।
मगर चांदी की मांग का जहां तक सवाल है तो इसमें भी अब इजाफा ही होगा और कोई गिरावट शायद नहीं आएगी। निवेशकों ने मुद्रा और सोने के विकल्प के रुप में इसका निवेश के रूप में इस्तेमाल शुरू कर दिया है। नतीजतन जो निवेशक अब तक ईटीएफ के बाजार में नही रहे हैं, वे निश्चित तौर पर अब चांदी में निवेश करना चाहेंगे। चांदी एक विस्तीर्ण धातु है। लिहाजा, इसका भंडारण थोड़ा मुश्किल होता है। कारोबारी इसे यूनिटों यानी डिमैटरियलाइज्ड रुप में रखना ज्यादा पसंद करेंगे। जहां तक विश्व स्तर की बात है तो इस वक्त बारक्लेज सिल्वर ईटीएफ सबसे भरोसेमंद एक्सचेंज ट्रेडेड फंड है।
इसके अलावा पावरशेयर डीबी सिल्वर फंड भी जाना माना नाम है। चांदी के साथ खास बात यह है कि कीमत और रिटर्न देने के मामले में यह सोने को अच्छी टक्कर देती है लेकिन स्थिरता के मामले में यह सोने से उन्नीस पड़ती है। कार्वी कॉमट्रेड के कंट्री हेड अशोक मित्तल कहते हैं कि इस वक्त देश में गोल्ड ईटीएफ भी पूरी तरह अपने रंग में नहीं आया है जबकि यह थोड़ा ज्यादा तरल होने के कारण एक्सचेंजों में इसका कारोबार हो सकता है। पर इसमें तरलता कम रहेगी। लिहाजा, निवेशक सोने के बजाए चांदी में निवेश ज्यादा पसंद करेंगे। इस वक्त भारत में पांच एएमसी हैं जिन्होंने गोल्ड ईटीएफ लांच कर रखा है।
ये हैं-रिलायंस एएमसी, कोटक महिंद्रा, बेंचमार्क एमएमसी, यूटीआई और क्वांटम एएमसी। मेहता के मुताबिक फंड का ध्यान फिर भी सूचकांकों और क्वांटिटिव फंड की ही ओर रहेगा। क्वांटिटिव फंडों की जहां तक बात है तो इन्हें सेबी से पहले ही यह स्वीकृति मिल चुकी है कि यह सिटीग्रुप फर्स्ट इन्वेस्टमेंट की ओर से मिलने वाले क्वांटिटिव स्टॉक सेलेक्शन प्रारूप पर आधारित सिक्योरिटीज फंडों में निवेश कर सकता है।
यह योजना कब से लांच होगी, इस बारे में मेहता का कहना था कि सेबी से स्वीकृति मिलते ही फंड शुरू कर दिया जाएगा और हमें आशा है कि सोने के मुकाबले कम कीमत होने के कारण यह उन निवेशकों को भी आकर्षित करने में सफल होगा जो कम निवेश कर सकते हैं या फिर कम निवेश पर भी सुनिश्चित रिटर्न चाहते हैं। इसके अलावा चांदी की वोलैटिलिटी ज्यादा होने के कारण इसे शार्ट टर्म मुनाफे के रुप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि हेजिंग के सवाल पर उनका कहना है कि बाजार में चूंकि हर प्रकार की मानसिकता के निवेशक हैं। लिहाजा हेजिंग को रोक पाना थोड़ा मुश्किल जरूर है पर हमारी कोशिश रहेगी कि हम इसे दूर कर सकें।